पटना : बिहार विधानसभा चुनाव के नजदीक आने के साथ ही गठबंधन पर सियासत तेज हो गयीहै. सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री एवं जदयू से बाहर किये गये जीतनराम मांझी की गठबंधन में भूमिका को लेकर सभी दलों में मंथन तेज हो गया है. जीतनराम को अनेक राजनीतिक दलों की ओर से गठबंधन में शामिल होने के संबंध में दिये जा रहे निमंत्रण एवं संकेतों से चुनाव में उनकी अहम भूमिका निभाने की पूरी संभावना दिख रही है. अब तक जदयू के साथ मजबूत रिश्तों का दावा करते आ रहे राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने मांझी को जनता परिवार में शामिल होने का निमंत्रण देने के साथ ही इस बात का संकेत दिया है कि भाजपा को सत्ता से बाहर रखने के लिए जनता परिवार को मांझी की जरूरत है.
वहीं, भाजपा ने भी संकेतों में यह स्पष्ट कर दिया है कि बिहार विधानसभा चुनाव में पार्टी की जीत पक्की करने में मांझी अहम भूमिका निभा सकते हैं. बीते दिनों भाजपा के वरिष्ठ नेताओं की ओर से मांझी के संबंध में दिये बयानों से इसके स्पष्ट संकेत मिले हैं.
मालूम हो कि जनता परिवार के विलय के पूर्व राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद ने एक बार फिर भाजपा विरोधी सभी शक्तियों को एकजुट होने का आह्वान किया. दिल्ली रवाना होने के पहले लालू प्रसाद ने जनता परिवार की एकजुटता के लिए पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को भी न्योता दिया. उन्होंने कहा कि विलय हो या गंठबंधन, मांझी को भी साथ आने की आवश्यकता है. भाजपा के खिलाफ सभी शिक्तयों को साथ होने की आवश्यकता है. लालू प्रसाद के बयान से यह स्पष्ट हो रहा है कि राजद का मांझी के प्रति नरम रुख है.
लालू प्रसाद गुरुवार को सुबह विमान से दिल्ली के लिए रवाना हो गये. इधर, राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष व पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह खुल कर जीतन राम मांझी के पक्ष में उतर आये हैं. उन्होंने कहा कि यदि जीतन राम मांझी भाजपा के साथ चले जायेंगे, तो हमलोगों का नुकसान होना तय है. मांझी को साथ लेने की वकालत करते हुए उन्होंने कहा कि उनको मुख्यमंत्री बनानेवाले नीतीश कुमार हैं. भाजपा कहीं सरकार नहीं गिरा दे, इसलिए राजद ने मांझी को समर्थन दिया था, जिससे भाजपा को कोई अवसर नहीं मिला. जब मांझी को मुख्यमंत्री से हटा दिया गया है, तो यह कहा जा रहा है कि महादलित व्यक्ति को हटा दिया गया है. उन्होंने दलितों व गरीबों के पक्ष में 34 फैसले लिये थे, जिनको बदला जा रहा है.
इसी बीच, राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद के बयान के बाद जदयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह ने कहा कि लालू प्रसाद ने जो कुछ है, किसी-न-किसी दृष्टि से कहा है. इस पर मैं कोई प्रतिक्रिया नहीं दूंगा. लेकिन, पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को जिस प्रकार पार्टी ने सर्वोच्च पद दिया और उसके बाद जिस ढंग से उन्होंने काम किया व फिर पद छोड़ा, यह भूल पाना मुश्किल है. अगर जीतन राम मांझी प्रायिश्चत करते हैं और घर (जदयू) लौटना चाहते हैं, तो पार्टी इस पर गंभीरता से विचार करेगी. लेकिन, यह भी सत्य है कि मांझी ने जो कुछ पार्षद नीरज कुमार ने कहा कि जीतन राम मांझी जनता परिवार एकता प्रक्रिया की सूची में शामिल नहीं हैं. नीतीश कुमार ने उन्हेंमुख्यमंत्रीकी कुरसी के लिए चुना था, लेकिन वह भाजपा के हाथों की कठपुतली बन गये. उनके जदयू में आने का सवाल ही नहीं है.
उधर, बिहार विधानसभा चुनाव के पहले पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी भारतीय जनता पार्टी में शामिल को लेकर राजनीतिक हलकों में चर्चा हो रही है. इससे पूर्व मांझी के मुख्यमंत्री पद की कुर्सी खतरे में देख भी भाजपा ने मांझी की मदद का आश्वासन दिया था. उस वक्त जीतनराम मांझी ने पांव पीछे खींच लिए थे. अब एक बार फिर भाजपा की ओर से संकेत दिए जा रहे हैं, वे कभी भी भाजपा में शामिल हो सकते हैं. मोदी सरकार के एक साल पूरे होने के मौके पर निजी चैनल द्वारा आयोजित विशेष कार्यक्र म में केन्द्रीय संचार मंत्नी रविशंकर प्रसाद ने इस बात के संकेत दिए कि वे भाजपा में शामिल हो रहे हैं. केन्द्रीय मंत्री ने कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जीतनराम मांझी को यह सोचकर मुख्यमंत्री का पद सौंपा था कि वे मांझी को कुर्सी पर बैठाकर अपनी मनमानी करते रहेंगे, परन्तु कोई भी स्वाभिमानी व्यक्ति ऐसा नहीं करना चाहेगा. भाजपा के रुख से साफ है कि दिल्ली में मोदी लहर के वाबजूद अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में आप पार्टी ने जिस तरह से जीत हासिल की है उसको देखते हुए पार्टी बिहार में जीतन राम की भूमिका को नजरअंदाज नहीं करना चाहती है. फिर मांझी के पास दलित वोट बैंक भी है जिससे भाजपा को उनके साथ आने से फायदा मिल सकता है.
हालांकि, इन सबके बीच जीतन राम मांझी अनेक मंचों से यह साफ करते रहेहैंकि जिस पार्टी या गंठबंधन में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार रहेंगे, उसमें मैं शामिल नहीं होऊंगा. चुनाव से पहले किसी अन्य पार्टी के साथ गंठबंधन किया जाये, इस पर भविष्य में विचार किया जायेगा. फिलहाल ऐसी कोई संभावना नजर नहीं आ रही है. हिंदुस्तानी आवाम मोरचा (हम) बिहार विधानसभा चुनाव में 243 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहा है. लेकिन बिहार की राजनीति में उनकी भूमिका को लेकर मंथन तेज हो गया है ऐसे में गठबंधन की सियासत में उनकी भागीदारी कौन से रूप में नजर आयेगी यह वक्त ही बतायेगा.