बिहार में सात-आठ साल में विकास ने पकड़ी रफ्तार
पटना : भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार डॉ अरविंद सुब्रह्म ण्यम ने शुक्रवार को यहां कहा कि बिहार में पिछले 7-8 साल के दौरान अर्थव्यवस्था की रफ्तार अच्छी रही है. अगर यही रफ्तार 20 साल तक बनी रही, तभी बिहार विकसित राज्यों की श्रेणी में आ सकता है. हालांकि, बिहार को विकास के रास्ते […]
पटना : भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार डॉ अरविंद सुब्रह्म ण्यम ने शुक्रवार को यहां कहा कि बिहार में पिछले 7-8 साल के दौरान अर्थव्यवस्था की रफ्तार अच्छी रही है. अगर यही रफ्तार 20 साल तक बनी रही, तभी बिहार विकसित राज्यों की श्रेणी में आ सकता है.
हालांकि, बिहार को विकास के रास्ते में आनेवाली अपनी मौजूदा समस्याओं या रुकावटों से बेहद संघर्ष करने की जरूरत है. इन बड़ी अड़चनों में गरीबी, भूखमरी, कम शिक्षा दर और अन्य मुद्दे शामिल हैं.
आद्री की सहयोगी संस्था आइजीसी की ओर से होटल मौर्या में आयोजित आर्थिक सर्वेक्षण 2014-15 के एक दिवसीय आउटरीच सत्र को संबोधित करते हुए उन्होंने देश की आर्थिक स्थिति, चुनौतियां और संभावनाओं पर विस्तार से प्रकाश डाला. कहा कि 2015 में देश की विकास दर 8.1 से 8.5 के बीच रहने की संभावना है.
बिहार में असीम संभावनाएं
डॉ सुब्रह्म ण्यम ने बिहार को आर्थिक रूप से सशक्त बनने के लिए अपने दम पर आगे बढ़ने की सलाह भी दी. कहा, किसी भी विकसित देश या राज्य के इतिहास को हम देखें, तो पायेंगे कि उसने अपने बलबूते और अपने संसाधनों को विकसित करके ही तरक्की हासिल की है. बिहार में भी असीम संभावनाएं हैं. बस जरूरत है, इन्हें विकसित करने की. इसके लिए अच्छी शासन प्रणाली और सक्रिय समाज की भी जरूरत है.
जापान, दक्षिण कोरिया जैसे कई देश ऐसे हैं, जिनके पास कोई ठोस संसाधन नहीं थे, फिर भी इन देशों ने अपनी क्षमता की बदौलत ही आज इतनी तरक्की हासिल की है. चीन ने अपनी विशाल जनसंख्या को मानव संसाधन के रूप में उपयोग करके विकास की राह प्रशस्त की. इन देशों से सीख लेकर अच्छी पहल की जा सकती है. बड़ी जनसंख्या को अगल-अलग क्षेत्रों में प्रशिक्षित करके निपुण बना कर अच्छा उपयोग किया जा सकता है.
उन्होंने कहा कि दूसरे राज्यों में भी कई योजनाओं में किये गये अच्छे प्रयोगों को भी आपस में साझा किया जा सकता है. बिहार में जनवितरण प्रणाली की सशक्त व्यवस्था काफी अच्छा उदाहरण है. आंध्र प्रदेश में इ-गवर्नेस, गुजरात और नैनो के अलावा ऐसे कई प्रयोग अलग-अलग राज्यों ने किया है. अगल-अलग राज्यों में हुए अच्छे प्रयोगों को साझा करने से पिछड़े राज्यों को इससे ज्यादा फायदा होगा. विकास के लिए यह बेहद जरूरी है.
सीएसएस की संख्या कम करना अच्छी बात
डॉ सुब्रह्म ण्यम के अनुसार, केंद्रीय प्रायोजित योजनाओं (सीएसएस) की संख्या कम करना अच्छी पहल है. बिहार जैसे राज्यों में चलनेवाले सीएसएस की संख्या को कम करके उन्हें इसके बदले में टैक्स शेयर या अन्य माध्यमों से अधिक आर्थिक सहायता दी जाये, तो यह ज्यादा अच्छा होगा. इससे हर राज्य अपनी परिस्थिति के हिसाब से योजनाएं तैयार कर सकता है. ये योजनाएं ज्यादा कारगर और फायदेमंद साबित होंगी.
14वें वित्त आयोग की अनुशंसा के कारण बिहार को सालाना करीब 10 हजार करोड़ रुपये के नुकसान होने के सवाल पर उन्होंने कहा कि बिहार से जुड़े आंकड़े का बहुत अध्ययन नहीं किया है. परंतु यह हो सकता है कि केंद्रीय टैक्स पुल से मिलनेवाले रुपये में एक-दो राज्यों को उतना नहीं मिला, जितना अन्य को.
सत्र में स्वागत संबोधन करते हुए आद्री के सदस्य सचिव डॉ शैबाल गुप्ता ने कहा कि पिछले नौ वर्षो से सेंटर फॉर पब्लिक फिनांस बिहार का आर्थिक सर्वेक्षण प्रकाशित करता आ रहा है. इसमें डॉ सुब्रह्मण्यम की इस पहल से हमलोगों को बिहार के वार्षिक आर्थिक सव्रेक्षण की तैयारी को दुरुस्त करने में मदद मिलेगी. साथ ही उनके अकादमिक योगदान की भी सराहना की.
सत्र के दौरान वित्त मंत्री विजेंद्र प्रसाद यादव, सीजीजी के प्रमुख रामेश्वर सिंह, वित्त के प्रधान सचिव रवि मित्तल, योजना सचिव दीपक प्रसाद समेत अन्य अधिकारी और कई कॉलेजों के अर्थशास्त्र विभाग के प्रोफेसर भी मौजूद थे. आद्री के प्रो प्रभात पी घोष ने धन्यवाद ज्ञापन किया.
आर्थिक रफ्तार की दर दो अंक तक पहुंच गई थी. हालांकि पिछले दो साल में इसमें थोड़ी कमी दर्ज की गई है.
बिहार को दिये टिप्स
– अपने संसाधन को विकसित करे
– शासन प्रणाली बेहतर रखे
– दूसरे राज्यों के अच्छे प्रयोगों को साझा करे
– केंद्र प्रायोजित योजनाएं कम हों
आर्थिक सव्रेक्षण में अब पर्यावरण का चैप्टर भी
आर्थिक सव्रेक्षण 2014-15 में इस बार नौ चैप्टर हैं. पहली बार पर्यावरण सव्रे पर भी एक चैप्टर जोड़ा गया है. पर्यावरण की चिंता को उजागर करने के लिए यह पहल की गयी है. डॉ सुब्रह्म ण्यम ने कहा कि चीन में पर्यावरण प्रदूषण का मुद्दा छोटे निकायों के चुनाव में भी बेहद प्रमुखता से उठाया जाता है, जबकि हमारे देश में यह राष्ट्रीय मुद्दा भी नहीं है. यह बेहद चिंता की बात है. पर्यावरण संतुलन पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है, तभी विकास की सही गति को प्राप्त किया जा सकता है.
आर्थिक सर्वेक्षण आउटरीच सेशन को संबोधित करते डॉ अरविंद सुब्रह्मण्यम. पास बैठे हैं आद्री के सदस्य सचिव डॉ शैबाल गुप्ता.