मगध विश्वविद्यालय में 12 प्राचार्यो की अवैध तरीके से नियुक्ति करने का मामला, निगरानी ने पायीं 15 गड़बड़ियां
पटना: मगध विश्वविद्यालय में तत्कालीन कुलपति प्रो. अरुण कुमार के कार्यकाल में हुए प्राचार्य बहाली घोटाला मामले में निगरानी ने भी अपनी जांच रिपोर्ट हाइकोर्ट में सौंप दी. कोर्ट ने इस गड़बड़ी में शामिल मगध विवि के पूर्व कुलपति, 15 प्राचार्य समेत सभी 25 लोगों को दोषी मानते हुए इन पर एफआइआर करने का आदेश […]
पटना: मगध विश्वविद्यालय में तत्कालीन कुलपति प्रो. अरुण कुमार के कार्यकाल में हुए प्राचार्य बहाली घोटाला मामले में निगरानी ने भी अपनी जांच रिपोर्ट हाइकोर्ट में सौंप दी. कोर्ट ने इस गड़बड़ी में शामिल मगध विवि के पूर्व कुलपति, 15 प्राचार्य समेत सभी 25 लोगों को दोषी मानते हुए इन पर एफआइआर करने का आदेश दिया है.
निगरानी थाना ने 18 मई को सभी 25 अभियुक्तों पर नामजद एफआइआर भी दर्ज कर ली है. परंतु इनकी गिरफ्तारी में देरी हो रही है. इससे सभी अभियुक्तों को बचने या भागने का समय मिल रहा है. निगरानी ने अपनी जांच रिपोर्ट में 15 प्रमुख मुद्दों को बताते हुए पूरी बहाली प्रक्रिया में बड़े स्तर पर हुई धांधली को उजागर किया है.
रिपोर्ट का निष्कर्ष यह
निगरानी ने अपनी जांच रिपोर्ट में कहा है कि मगध विवि के कुलपति, कुलसचिव, उपकुलपति, बैठक अधिकारी, सहायक के साथ-साथ चुने गये 15 प्राचार्यो तथा चयन समिति के 6 सदस्यों (कुलपति सहित) ने इस पूरी नियुक्ति प्रक्रिया में अपने पद का भ्रष्ट दुरुपयोग किया है. अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए सांठ-गांठ कर न सिर्फ प्राचार्य जैसे महत्वपूर्ण पद को प्राप्त करने में सफलता हासिल की बल्कि आपराधिक षड्यंत्र के तहत संचिकाओं में हेर-फेर करते हुए रोस्टर का अनुपालन न कर मनमाने ढंग से पदों की रिक्ति का प्रकाशन कुछ व्यक्तियों को नियुक्त करने के लिए पहले से तैयार योजना के आधार पर किया. बिना सरकार और कुलाधिपति को सूचना दिये नियुक्ति प्रक्रिया शुरू की. इसमें सफल होकर अनियमित रूप से वेतन प्राप्त करते रहे. इससे सरकारी राजस्व की हानि हुई है.
15 प्रमुख गड़बड़ियां मिलीं, जो करतीं हैं कारनामा का खुलासा
2011 में शिक्षा विभाग ने पत्र संख्या-559 के जरिये नियुक्त पर रोक लगायी थी. फिर भी नियुक्ति का विज्ञापन निकाला गया और इसकी सूचना विभाग को नहीं दी गयी. उच्चतम न्यायालय को भी इसकी सूचना नहीं दी गयी थी तथा अपर महाधिवक्ता के मंतव्य का गलत अर्थ लगाकर यह विज्ञापन जारी किया गया.
विवि में 26 जून 2012 को हुई सिंडिकेट की बैठक में लिये गये निर्णय के अनुसार 3 सितंबर 12 को ही चयन समिति का गठन दिया गया था. फिर भी कुलपति ने 24 सितंबर 12 को फिर से अकादमी काउंसिल की बैठक कर मनमाने चयन समिति का गठन किया.
विवि अधिनियम के प्रतिकूल पांचवें नंबर के वरीय प्रिंसिपल श्रीकांत शर्मा को चयन समिति का सदस्य बनाया गया. जबकि सबसे वरिष्ठ प्रिंसिपल को सदस्य बनाना चाहिए था.
कुलपति ने शिक्षा विभाग से चयन समिति में सदस्य के लिए कोई पत्रचार नहीं किया.
4 मई, 2012 को अखबारों में नियुक्ति का विज्ञापन निकलने के बाद कुलपति ने इसकी फाइलों में 5 मई को संशोधन किया.
रोस्टर का अनुपालन नियुक्ति में नहीं किया गया. सरकार के निर्देशों के विपरित कुलपति ने रोस्टर पंजी तैयार करते हुए बिना बैकलॉग के मनमाने ढंग से बिना रोस्टर प्लाइंट के ही पिछड़ा वर्ग महिला के लिए 1 पद की रिक्ति निकाली गयी और श्रीमती पूनम का चयन किया गया.
जांच के दौरान अभ्यर्थियों के आवेदन का स्क्रूटनी कर बनाया गया मास्टर चार्ट उपलब्ध नहीं कराया. ताकि यह पता नहीं चल सके कि चयन समिति ने नंबर दिया था भी या नहीं.
कुलपति ने लाभ पहुंचाते हुए सामान्य वर्ग के छठे नंबर के अभ्यर्थी शशि प्रताप शाही को चुना गया. चौथे नंबर के कृष्णनंदन प्रसाद सिंह की अधिसूचना बाद में भविष्य में होने वाली रिक्ति के लिए निकाली गयी.
बीबी लाल की रिपोर्ट में भी 12 प्रिंसिपलों की बहाली में बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार किया गया है. इस रिपोर्ट का भी उल्लेख किया गया है.
12 प्रिंसिपलों को नियुक्ति में पदस्थापन स्थल नहीं दिया गया था. सभी अभ्यर्थियों को इसकी सूचना कैसे दी गयी, इसका उत्तर विवि ने नहीं दिया.
नियुक्त प्राचार्यो के 60 दिनों में अनापति पत्र और विरमन पत्र के साथ योगदान करने के निर्देश के बावजूद विभिन्न तिथियों को कुलपति और कुलसचिव के कार्यालय में आकर योगदान देने से सबूत मिले हैं. इसे कुलसचिव ने स्वीकार भी किया है.
पूरी नियुक्ति प्रक्रिया को शुरू करने में कुलाधिपति से कोई अनुमति नहीं ली गयी. विज्ञापन निकालने के 20 दिन बाद कुलाधिपति को इससे संबंधित पत्र भेजा गया.
पहली अधिसूचना निकालने के दो महीने बाद भविष्य में उत्पन्न होने वाली रिक्तियों की अधिसूचना निकाली गयी. इसमें बगैर रोस्टर के फिर से पिछड़ा वर्ग के महिला के पद पर उषा सिन्हा को अधिसूचित किया गया, जो नियम के खिलाफ है.
एक चुने हुए अभ्यर्थी दलबीर सिंह को बिना रोस्टर के सिख अल्पसंख्यक पद पर चयन समिति ने चुना. जबकि इस पद के लिए आरक्षण में कोई प्रावधान नहीं है. इनके नाम की अनुशंसा गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी की बैठक में नहीं हुई थी.
चयन समिति के सदस्य जो दिल्ली, लखनऊ और मधेपुरा से आये थे, वे मगध विवि के अतिथि गृह में नहीं ठहरे थे. इस संबंध में विवि ने कोई जानकारी नहीं दी.