सियासत से अध्यात्म की ओर दो पूर्व विधायक

पटना: बिहार के दो पूर्व विधायकों में से एक ने अध्यात्म का रास्ता चुना तो दूसरे ने बुद्ध का दर्शन अपनाया. दोनों ने अपने राजनैतिक जीवन की शुरुआत भाकपा (माले) की उस दौर की राजनीति से की थी, जब संगठन की गतिविधियां भूमिगत तरीके से संचालित हुआ करती थीं. ये पूर्व विधायक हैं केडी यादव […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 7, 2015 5:56 AM

पटना: बिहार के दो पूर्व विधायकों में से एक ने अध्यात्म का रास्ता चुना तो दूसरे ने बुद्ध का दर्शन अपनाया. दोनों ने अपने राजनैतिक जीवन की शुरुआत भाकपा (माले) की उस दौर की राजनीति से की थी, जब संगठन की गतिविधियां भूमिगत तरीके से संचालित हुआ करती थीं. ये पूर्व विधायक हैं केडी यादव और एनके नंदा.

अध्यात्म की राह चुनने वाले पूर्व विधायक केडी यादव 1990 में पहली बार नालंदा जिले की हिलसा विधानसभा सीट से विधायक बने थे. बाद में वह राजद में चले गये थे. फिर नीतीश कुमार के साथ रहे. केडी अब आत्मा-परमात्मा, जीवन-मरण, सुख-दुख, अपना-पराया, प्रेम, करूणा, मानव कल्याण, गीता, रामायण, गुरु भाई वगैरह की बात करते हैं. 1980 के दौरान जब मध्य बिहार में सामंती उत्पीड़न के खिलाफ खेत-मजदूरों व भूमिहीनों का संघर्ष तेज था, तब केडी यादव की पहचान एक जुझारू युवा नेता के रूप में स्थापित हुई थी. उन्हें छोटा केडी के नाम से जाना जाता था. इंडियन पीपुल्स फ्रंट के जो सात विधायक पहली बार विधानसभा पहुंचे थे, उसमें केडी भी शामिल थे.

केडी यादव के आध्यात्मिक गुरु हैं भोला शाह. उनका दरबार उत्तरप्रदेश के देवरिया में है. उनके कुल 12 दरबार हैं और देश भर में 22 लाख शिष्य. केडी कहते हैं: अध्यात्म अब प्राथमिक बन गया है. इसी रास्ते से मनुष्य का भला होगा. यही मुक्ति का रास्ता है. यही आनंद का मार्ग है. यहां न जाति है न धर्म है. मनुष्यता के बंधन में सब बंधे हैं. यही सूत्र है कल्याण का. भोला शाह के देह त्याग के बाद कामय शाह दरबार के सरकार हैं. केडी उस दरबार में 17 लोगों के साहब-ए-लिबास में शामिल हैं. ये लोग दरबार के वक्त गेरूआ वस्त्र पहनते हैं. पहले वह नारा लगाते थे: दुनिया के मजदूरों एक हो. अब जुबान पर है: दुनिया के मानव एक हो.

अध्यात्म से सुधरेगी राजनीति

केडी को भरोसा है कि अध्यात्म से ही राजनीति सुधरेगी और उसकी दिशा मानव कल्याण का होगा. अभी राजनीति में जो विकृति है, उसकी वजह उसका आध्यात्मिक दर्शन से पूरी तरह कट जाना है. वह कहते हैं कि अध्यात्म की दो धाराएं हैं. एक धारा समाज से दूर आपको कंदराओं की ओर ले जाती है. दूसरी धारा समाज के बीच रहते हुए उसके बदलाव की बात करती है. राजनीति को निष्काम बनाने की कामना के साथ वह ह्य हम ह्य की राजनीति के साथ जुड़े हैं.

बौद्ध धर्म की दीक्षा लेंगे नंदा

पटना जिले में जन राजनीति का जाना-पहचाना नाम है एनके नंदा (नंद कुमार नंदा). वह पटना जिले की पालीगंज सीट से 2005 में फरवरी व अक्टूबर में हुए विधानसभा चुनाव में जीते. 2011 में वह माले छोड़कर जदयू में चले गये. लेकिन नंदा को लगता है कि तमाम राजनैतिक दल समाज से विमुख हो चुके हैं. वह कहते हैं: हमने देखा कि राजनीति जनता के सपनों के साथ छल कर रही है. हालांकि तकनीकी तौर पर वह जदयू में बने हुए हैं. उनकी राजनीति से ज्यादा सक्रियता बौद्ध दर्शन के प्रचार-प्रसार में है. नंदा के मुताबिक सामाजिक-राजनैतिक दुर्दशा का बड़ा कारण ब्राह्मणवादी व्यवस्था है. यह व्यवस्था बौद्ध दर्शन से खत्म होगी. जाति और धर्म की दीवार जब तक नहीं टूटेगी, तब तक हालात नहीं बदलेंगे.

रांची के रांची कॉलेज में स्नातक की पढ़ाई के दौरान 1974 में बिहार आंदोलन शुरू हुआ तो नंदा पढ़ाई छोड़कर आंदोलन से जुड़ गये. 1975 में पटना के दुल्हिन बाजार में भगत सिंह की याद में एक कार्यक्रम कराया. तब देश में इमरजेंसी लगी हुई थी. पुलिस ने नंदा को पकड़ लिया और फुलवारी जेल में भेज दिया. वहीं नक्सली नेताओं से पहली बार मुलाकात हुई. 1976 में जेल से निकले तो सीधे मध्य बिहार के धधकते खेत-खलिहानों में पहुंच गये. वह माले के पूर्णकालिक कार्यकर्ता बन गये. नंदा इन दिनों सामाजिक परिवर्तन लाने वाले फुले, पेरियार और डॉ भीम राव आंबेडकर के साथ बौद्ध दर्शन का अध्ययन कर रहे हैं. वह बाबा साहेब का यह वाक्य दोहराते हैं: हिंदू धर्म में जन्म लेना मेरे वश में नहीं था. पर हिंदू धर्म में नहीं मरना मेरे वश में हैं. वह कहते हैं: हम बौद्ध धर्म की दीक्षा लेने वाले हैं.

खगेंद्र प्रसाद : राजनीति से ऐसा मन उचटा कि राम में रम गये

हजारीबाग के बरकट्ठा विधानसभा सीट से भाजपा के विधायक हुआ करते थे खगेंद्र प्रसाद. 1990 और 1995 में लगातार दो बार जीतकर विधानसभा पहुंचे. सादगी और ईमानदारी की मिशाल. वर्ष 2000 के चुनाव में वह पराजित हो गये. मन को गहरा आघात लगा. उस आघात ने उन्हें राजनीति से विरत कर दिया. वह अध्यात्म की ओर मुड़े. ऋषिकेश चले गये. खगेंद्र प्रसाद से स्वामी ज्ञानानंद महराज का नया नाम मिला. पैतृक संपत्ति दिव्य कल्याण संस्था के नाम कर दी. घर का एक हिस्सा भाजपा को दे दिया. भाजपा के एलके आडवाणी सहित कई बड़े नेताओं ने कोशिश की कि खगेंद्र जी राजनीति में दोबारा आयें. पर उन्होंने इंकार कर दिया.

महेंद्र सिंह : कथावाचक से बने जननेता

ऐसे भी उदाहरण हैं जब साधु बनकर गांव-गांव रामायण सुनाने वाले महेंद्र सिंह का कायांतरण हुआ. 1979 में वह माले नेताओं के संपर्क में आये और कथा वाचक से जन नेता बने. 1990 में पहली बार अविभाजित बिहार में गिरिडीह के बगोदर सीट से विधानसभा पहुंचे थे. महेंद्र सिंह की छवि लड़ाकू और ईमानदार जन प्रतिनिधि की रही. विधानसभा में जब वह बोलते थे, तो पूरा सदन शांत होकर उनकी बातों को सुनता था. 16 जनवरी, 2005 को माओवादियों के एक हथियारबंद दस्ते ने गिरिडीह में ही उनकी हत्या कर दी थी.

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