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सत्ता हासिल करने के लिए किये जाते हैं गठबंधन : पप्पू यादव

बिहार विधानसभा चुनाव के नजदीक आने के साथ ही राज्य में सियासी सरगर्मी तेज हो गई है. जनता परिवार के विलय, राजद-जदयू के नजदीकियों एवं चुनावी माहौल में सियासी समीकरणों को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं जारी है. इन्हीं मुद्दों पर ‘प्रभात खबर डॉट कॉम’ के समीर कुमार ने सांसद पप्पू यादव उर्फ राजीव रंजन के […]

बिहार विधानसभा चुनाव के नजदीक आने के साथ ही राज्य में सियासी सरगर्मी तेज हो गई है. जनता परिवार के विलय, राजद-जदयू के नजदीकियों एवं चुनावी माहौल में सियासी समीकरणों को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं जारी है. इन्हीं मुद्दों पर ‘प्रभात खबर डॉट कॉम’ के समीर कुमार ने सांसद पप्पू यादव उर्फ राजीव रंजन के साथ खास बातचीत करते हुए उनकी राय जानने का प्रयास किया.पप्पू यादव मंगलवार को दिल्ली में अपनी नयी राजनीतिक पार्टी का एलान भी करने वाले हैं.पप्पू यादव से पूछे गये सवालों एवं उनके जवाबों के कुछ अंश..

सवाल – बिहार विधानसभा चुनाव से पहले गठबंधन को आप किस नजर से देखते है.

जवाब – इतिहास इस बात का गवाह है कि देश में गठबंधन हमेशा से सत्ता को हासिल करने के लिए किया जाता है. अपने स्वार्थो के लिए विभिन्न दलों के प्रमुख नेता आपस से गठजोड़ करते है. गठबंधन कभी भी गरीब वोटरों के हितों को ध्यान में रख नहीं किया जाता है. उदाहरण के तौर पर महाराष्ट्र में भाजपा के साथ गठजोड़ करने के लिए एनसीपी तैयार रही, जबकि बिहार में वह भाजपा के विरुद्ध मोर्चा तैयार करने में जुटी है. वहीं, बिहार में नीतीश व लालू दोनों की विचारधारा अलग-अलग है. बावजूद इसके गठजोड़ करने की कवायद दिखी. साफ है कि सत्ता को हासिल करने के लिए सिद्धांतों को पीछे छोड़ दिया जाता है. ऐसे में गठबंधन कभी भी गरीबों एवं समाज के पिछड़े लोगों को न्याय दिलाने में कामयाब नहीं हो सकता है.

सवाल – राजद-जदयू के बीच गठजोड़ को आप किस तरह से देखते है.

जवाब – लालू प्रसाद एवं नीतीश दोनों नदी के दो किनारे है. दोनों न तो राजनीतिक रूप से समान हैं न ही विचारधारा के स्तर पर समान हैं. ऐसे में इनके बीच राजनीति गठजोड़ संशय पैदा करने वाला है. सत्ता को हासिल करने के लिए दोनों एक साथ मंच पर आने की जुगत में लगे हैं. दोनों की अपनी-अपनी मंशाएं है. बिहार की जनता ने दोनों के शासनकाल को देखा है और अब इनको फिर से सत्ता में नहीं आने देगी. स्थिति को भांपकर इन्होंने एक साथ आने का फैसला किया है लेकिन उनके मंशूबे कामयाब नहीं होंगे.

सवाल – जीतनराम मांझी के साथ मंच साझा करने वाले पप्पू यादव आज राजनीतिक मंच पर उनके साथ खुद को कहां पाते हैं.

जवाब – नीतीश कुमार ने जीतन राम मांझी को जदयू से निकाल कर मांझी को ही नहीं बिहार के 18-20 प्रतिशत दलितों को भी अपमानित किया है. ऐसे में विचारधारा को ध्यान में रखते हुए मैंने उनका साथ देना बेहतर समझा और इसी को ध्यान में रखते हुए मैं आज भी उनके साथ हूं. मैं अति पिछड़ा वर्ग के साथ अन्याय होता नहीं देख सकता हूं व जीतन राम मांझी उनके साथ है और इस कारण वैचारिक स्तर पर मैं उनके साथ हूं. लालू-नीतीश के बीते 25 वर्षो के शासन के दौरान बिहार का नौजवान आज भी दूसरे राज्य जाकर अपनी जिंदगी जीने को मजबूर है. उनके पेट, थाली व हाथ सब खाली है. ऐसे में उनके बेहतर भविष्य के लिए मैं हरसंभव कोशिश करता हूं और आगे भी करता रहूंगा.

सवाल – भाजपा के साथ जुड़कर आपके इस कोशिश को आगे बढाने में क्या समस्या है.

जवाब – भाजपा एक ओर जहां धार्मिक भावनाओं को आगे बढाने का काम करती रही है वहीं नरेंद्र मोदी विकास की बात कर रहे हैं. दोनों को एक साथ लेकर नहीं चला जा सकता है. भाजपा को इस भरोसे में नहीं रहना चाहिए कि विकास की बात करते हुए धार्मिक भावनाओं को भी बढाने का काम किया जा सकता है. जब तक किसानों, आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों की समस्याओं को दूर नहीं किया जाएगा सत्ता में बने रहना मुश्किल होगा. बिहार में विकास का खाका जबतक भाजपा तैयार नहीं करेगी तबतक कोई गठबंधन संभव नहीं हो सकेगा. गठबंधन के लिए कॉमन मिनिमम प्रोग्राम तय किया जाना चाहिए. सर्व धर्म संभव की परिकृति को सरकार ही आगे बढ़ा सकती है.

सवाल – आगामी चुनाव में नीतीश-लालू के सत्ता में नहीं आने की सूरत में बीते 25 वर्षों के दौरान बिहार में जो सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ी गई वह कमजोर या खत्म नहीं हो जाएगा.

जवाब – सामाजिक न्याय का मतलब पारिवारिक न्याय नहीं होता है. बल्कि सामाजिक न्याय का मतलब होता है हर परिवार में न्याय की परिकल्पना, हर हाथों को काम, दलालों व विचौलियों का राज खत्म. जबकि बीते 25 वर्षो के कथित लोकतांत्रिक सरकार के शासन के दौरान तंत्र हम पर भारी दिखा है. सामाजिक न्याय के नाम पर शोषण नहीं बल्कि संपूर्ण न्याय मिलना चाहिए. नीतीश-लालू ने सामाजिक न्याय के नाम पसमंदा-गैर पसमंदा, दलित-महादलित, माय-गाय जैसे अनेक विभत्स चेहरा पेश किया है. सामाजिक न्याय की कल्पना गौतम बुद्ध, लोहिया, जयप्रकाश नारायण से सीखने की जरूरत है. सामाजिक न्याय की बात करते हुए भ्रष्ट नेताओं का राज, बिचौलियों, शिक्षा माफिया इत्यादि को बढावा दिये जाने को जनता अब बर्दाश्त नहीं करेगी.

सवाल – अब तक आप इन्हीं लोगों के साथ रहकर सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ते आए हैं, आज आप साथ नहीं हैं.

जवाब – लालू एवं नीतीश के गलत वक्त पर मैं उनके साथ था और हरसंभव मदद की. लेकिन आज लालू पप्पू के नहीं हुए. आज नीतीश पप्पू के नहीं हुए. मैंने कहा मांझी को सीएम बनाओ तो लालू यादव के पेट में दर्द होने लगा. मैंने मांझी का समर्थन आंख बंदकर किया और मैं इस मामले पर बहुत साफ था. मैं व्यापक समर्थक कर व्यापक गठबंधन का प्रयास कर रहा था. मैं विचारों से जुड़ा था और वैचारिक स्तर पर साथ आने की बात कर रहा था. लेकिन मेरी बातें पसंद नहीं की गई और आज मैं उनके साथ नहीं हूं. बढ़ेगा बिहार, बदलेगा बिहार मैं बदलूंगा बिहार. हर बिहारी को बिहार में वापस लाना मेरा मकसद है और मैं यह काम करके रहूंगा.

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