नीतीश ने खींच दी अपनी लाइन, अब भाजपा के सामने चुनौती

पंकज मुकाती दिल्ली में सोमवार को बिहार के भविष्य के मुख्यमंत्री के चेहरे पर मुलायम सिंह ने मुहर लगा दी. ठीक उसी वक्त पटना में लगभग मुरझा देनेवाली गरमी में नीतीश कुमार जनता दरबार में अपना काम अपने अंदाज में करते दिखे. दरबार के बाद पत्रकारों के गंठबंधन और उसके नेता के सवालों को पूरी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 11, 2015 6:22 AM

पंकज मुकाती

दिल्ली में सोमवार को बिहार के भविष्य के मुख्यमंत्री के चेहरे पर मुलायम सिंह ने मुहर लगा दी. ठीक उसी वक्त पटना में लगभग मुरझा देनेवाली गरमी में नीतीश कुमार जनता दरबार में अपना काम अपने अंदाज में करते दिखे. दरबार के बाद पत्रकारों के गंठबंधन और उसके नेता के सवालों को पूरी तरह टाल गये. हर परिस्थिति में संयत और संयमित रहना ही उनकी खूबी है. वे कभी भी राजनीतिक महत्वाकांक्षा या कुछ पाने का अहंकार या खो जाने की चिंता को सार्वजनिक करते नहीं दिखाई दिये. एक आश्वस्त का भाव उनमें हमेशा दिखाई देता है. यदि ऐसा नहीं होता, तो दिल्ली में रविवार को गंठबंधन की बैठक के बाद वे पटना नहीं लौटते. नेता के तौर पर अपने नाम की मुहर लगवा कर ही आते, जैसा राजनीति में होता है.

गंठबंधन और नेता पर कई दिनों से उम्मीदों और आशंकाओं के बयानों की रैली-सी चल निकली थी. हालांकि, ये कार्यकर्ताओं, समर्थकों और पार्टी के प्रतिबद्ध नेताओं को टटोलने के अभ्यास से ज्यादा कुछ नहीं. गंठबंधन के शीर्ष नेता पहले ही नीतीश को नेता मान चुके रहे होंगे. लालू प्रसाद इस प्रदेश के सबसे दूरदर्शी राजनीतिज्ञ कहे जा सकते हैं. कोई भी कदम बिना मंजिल के वे नहीं उठाते, फिर यह मानना भूल है कि नीतीश से दोस्ती के वक्त उन्होंने नेता का विचार न किया हो. खैर, अब नीतीश के नेतृत्व में अगला चुनाव होगा. बिहार की राजनीति में नीतीश का चयन जितना आसान है, सीटों का बंटवारा उतनी ही मुश्किल. जदयू ने पिछले चुनाव में 118 सीटें जीती थीं और उतनी सीटें वह निश्चित रखना चाहेगा, वहीं राजद को पिछले चुनाव में सिर्फ 24 सीटें मिली थीं.

अब वह लोकसभा चुनाव की बढ़त के आधार पर 145 सीटें चाहता है. कांग्रेस भी इस गंठबंधन का हिस्सा है, उसे साधना भी एक चुनौती है, क्योंकि अब यह गंठबंधन भाजपा विरोध का गंठबंधन है. राजद समर्थकों का एक बड़ा वर्ग यह मानता है कि पिछले चुनाव में जदयू को मिली सीटें भाजपा के साथ होने के कारण मिली थीं. इस वर्ग का यह भी मानना है कि नीतीश अब उतने ताकतवर नहीं रहे. इसके पीछे लोकसभा चुनाव के प्रदेश के नतीजों को आधार माना जा रहा है. दूसरे पक्ष का मानना है कि वे नतीजे मतदाताओं का एक वक्ती फैसला थे. उसके बाद देश में जो भी विधानसभा चुनाव हुए हैं, उनमें भाजपा का ग्राफ गिरा है. बिहार में अब यह तय हो गया है कि चुनाव चेहरे पर होगा. यह भाजपा के सामने एक चुनौती है. नीतीश के सामने कौन? प्रदेश में भाजपा के पास किसी भी अन्य दल के मुकाबले ज्यादा वरिष्ठ नेता हैं. पार्टी के पास अनुभवी व जमीनी नेताओं की कमी नहीं है, रामविलास पासवान और उपेंद्र कुशवाहा के साथ आने के बाद पार्टी के पास जातिवादी स्तर पर भी मुकाबला करने को चेहरे और जमीन दोनों हैं. इसके बावजूद उसके पास कोई एक ऐसा नाम नहीं, जो मजबूती से पूरे प्रदेश का चेहरा बन कर उभर सके. पिछले आठ साल सत्ता में रहने के बावजूद भाजपा के सारे नेता नीतीश के शेडो बन कर रह गये. नेता खूब सारे उभरे, पर नेतृत्व नहीं उभर सका. आठ साल की सत्ता का यह नुकसान भाजपा को हुआ है. बहरहाल, राजनीति हो या कोई और मुकाबला उसके मैदान और प्रतिद्वंद्वी के तरीके से ही नियम तय होते हैं.

यदि सामने नीतीश कुमार का चेहरा है, तो यह सवाल जरूर जनता से उठेगा कि एनडीए से सामने कौन है? एक तरह से ऐसे मुकाबले में जदयू गंठबंधन को थोड़ा-सा लाभ मिलेगा. अब तक अपनी बिसात व रणनीति में मजबूत माने जानेवाली भाजपा नीतीश कुमार के चेहरे का जवाब किस अंदाज में देगी, इसका इंतजार है. राजनीतिक विश्लेषकों का एक वर्ग नीतीश को बिहार चुनाव में कमजोर व अकेला मान कर चल रहा था. पर गंठबंधन और नीतीश के नेतृत्व पर लालू-सोनिया की मुहर के बाद तसवीर बदली-सी दिखाई दे रही है. नीतीश ने एक दम से फर्राटा भरा है. यह गति उनके ऊपरी मिजाज से मेल भी नहीं खाती, पर कॉरपोरेट कंपनी में बदलते राजनीतिक दलों और ब्रांड बनते नेताओं के इस दौर में चुनाव अभियान में बदलाव जरूरी है.

गंठबंधन का नेता चुने जाने के कुछ घंटे बाद ही नीतीश कुमार ‘बढ़ चला बिहार’ के साथ सामने आये हैं. इसमें पिछले 10 सालों के बिहार का ग्रोथ दिखाया गया है. साथ ही अगले 10 सालों में बिहार कैसा होगा, इस पर चर्चा का रास्ता खोला गया है. बिहार2025 जैसा विजन अभियान बिहार की राजनीति में पहली बार है. 400 सुसज्जित ट्रक या कहिए मोबाइल स्टूडियो से 40 हजार गावों को जोड़ना एक बड़ा सोच है. यह बिहार की जातिवादी राजनीति को विकास की राजनीति की ओर ले जानेवाला साबित हो सकता है. निश्चित ही अपने अनूठे सोच और अभियान वाली भाजपा ने बिहार के लिए बड़ी रणनीति बनायी होगी. बड़ी सफाई से 10 साल के विकास व भविष्य के विजन को नीतीश ने अपने नाम कर लिया है.

10 में से आठ साल भाजपा इस विकास यात्रा में जदयू के साथ थी, इसलिए विकास को झुठलाना उसके लिए नामुकिन है. भविष्य के सपने भी ‘बिहार2025’ के जरिये नीतीश अपने खाते में दर्ज करा चुके हैं. नकारात्मक प्रचार भी अब वोट का रास्ता नहीं बचा है. जिसने भी यह राह पकड़ी है, अपने ही हाथ जलाये हैं. भाजपा इस बार थोड़ा पिछड़ती दिख रही है, नेता, अभियान दोनों मामलों में. अब सबकी नजर भाजपा के अभियान पर ही है. हर कोई जानना चाहता है, आखिर भाजपा नीतीश का तोड़ क्या लाती है? क्या वह देर आये, दुरु स्त आये को साबित कर पायेगी?

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