15.9 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

विप चुनाव : हाइकोर्ट का आदेश, 30 तक सीटों का कार्यकाल तय करे

पटना. बिहार विधान परिषद की स्थानीय निकायवाली 24 सीटों पर सात जुलाई को होनेवाले चुनाव को लेकर संशय खत्म हो गया है. पटना हाइकोर्ट ने चुनाव पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है. लेकिन, चुनाव लड़नेवालों की परेशानी इससे खत्म नहीं हुई. मुख्य न्यायाधीश एल नरसिम्हा रेड्डी और न्यायाधीश सुधीर सिंह के कोर्ट ने […]

पटना. बिहार विधान परिषद की स्थानीय निकायवाली 24 सीटों पर सात जुलाई को होनेवाले चुनाव को लेकर संशय खत्म हो गया है. पटना हाइकोर्ट ने चुनाव पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है. लेकिन, चुनाव लड़नेवालों की परेशानी इससे खत्म नहीं हुई. मुख्य न्यायाधीश एल नरसिम्हा रेड्डी और न्यायाधीश सुधीर सिंह के कोर्ट ने बुधवार को चुनाव आयोग से 30 जून तक अधिसूचना में तदनुसार संशोधन जारी करने को कहा है.

इसमें इस प्रकार की व्यवस्था हो कि प्रत्येक दो वर्ष पर एक तिहाई सदस्य का कार्यकाल खत्म हो सके. इसका मतलब यह हुआ कि कोर्ट ने चुनाव आयोग को यह तय करने को कहा कि 24 सीटों में यह तय कर ले कि जिन सीटों पर चुनाव कराये जा रहे हैं, उनमें किस सीट का कार्यकाल कितने समय का होगा. इसके लिए कोर्ट ने कहा कि आयोग पर निर्भर है कि वह किस प्रकार सीटों का कार्यकाल तय करे. लॉटरी से भी यह मामला तय किया जा सकता है. कोर्ट के निर्देश पर सात दिनों में आयोग को सभी सीटों के कार्यकाल को नये सिरे से परिभाषित करना होगा. वर्तमान में आयोग ने सभी 24 सीटों के लिए चुनाव कराने का आदेश दिया है. इन सीटों का कार्यकाल अभी छह वर्ष तक के लिए है. विधान पार्षद देवेश चंद्र ठाकुर ने जनहित याचिका दायर कर कोर्ट से कहा था कि गलत तरीके से स्थानीय निकाय कोटे का चुनाव कराया जा रहा है. राज्यसभा के तर्ज पर विधान परिषद की 24 सीटों पर एक तिहाई सदस्यों का मनोनयन किया जाये. कोर्ट ने निर्देश के साथ ही याचिका को निष्पादित कर दिया.

स्थानीय निकायों की इन 24 सीटों पर 1952 से चुनाव कराये जाते रहे हैं. 1976 में प्रत्येक दो साल पर एक तिहाई सदस्यों का कार्यकाल समाप्त होने का प्रावधान लागू हुआ. अरसे बाद 2003 में चनाव आयोग ने सभी 24 सीटों पर चुनाव कराने का आदेश दिया. सभी सीटों पर चुनाव कराया गया. दोबारा 2009 में छह साल के लिए चुनाव हुआ. अब 2015 में चुनाव कराया जा रहा है. चुनाव में स्थानीय कोटे से निर्वाचित होकर आनेवाले मुखिया, वार्ड पंचायत और जिला परिषद के सदस्य मतदाता होते हैं.
क्या है मामला
संविधान में व्यवस्था है कि राज्यसभा और विधान परिषद कभी भंग नहीं हो सकती. 1952 में पहला चुनाव कराया गया. इसके बाद जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 156 के तहत प्रदेश के राज्यपाल को अधिकार दिया गया कि वह चुनाव आयोग की राय से चुनाव के बाद सभी सदस्यों के कार्यकाल को निर्धारित कर दें. आयोग की राय के बाद राज्यपाल के आदेश से 17 जून, 1953 को विधान परिषद के सदस्यों को तीन भाग में बांट कर उनके कार्यकाल तय किये गये. विधान परिषद के मुख्य दरवाजे पर आम लोगों की उपस्थिति में लाटरी सिस्टम से छह जून 1953 को सीटों का कार्यकाल तय किया गया. इसके तहत एक तिहाई सदस्यों का कार्यकाल 1954 में, एक तिहाई का 1956 में और बाकी का 1958 में कार्यकाल समाप्त माना गया. यह सिलसिला शिक्षक, स्नातक और विधानसभा कोटे से होनेवाले विधान परिषद के चुनावों में चलता रहा और आज भी बरकरार है.

लेकिन, मनोनयन कोटे और स्थानीय निकाय कोटे के चुनाव में यह ब्रेक कर गया. स्थानीय कोटे की सीटों पर 1978 के बाद से चुनाव नहीं हुए. 2003 में तत्कालीन सीएम राबड़ी देवी के आदेश से छह साल के स्थानीय कोटे के चुनाव की अधिसूचना जारी हुई. इसके खिलाफ याचिका दायर की गयी. 2009 में सरकार ने भी याचिका दायर की. सबने माना कि त्रुटि हुई.

लेकिन, सुधार नहीं हुआ. चुनाव आयोग को इस संबंध में पत्र लिखे गये. इसी बीच मौजूदा चुनाव आ गया. देवेशचंद्र ठाकुर और भाजपा के बैजनाथ प्रसाद ने याचिका दायर की. हाइकोर्ट ने 21 मई को चुनाव आयोग से जवाब मांगा कि किस तरीके से चुनाव कराया जायेगा. कोर्ट ने फिर आयोग को 22 जून को हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया. चुनाव आयोग ने हलफनामा दायर नहीं किया. मंगलवार को फिर आयोग के निर्देश को चुनौती दी गयी. कोर्ट ने 1952 की चुनाववाली अधिसूचना की मांग की. कोर्ट को याचिकाकर्ता बैजनाथ प्रसाद की ओर से अधिसूचना पत्र दिखाये गये. इस आधार पर कोर्ट ने कहा स्थानीय निकाय कोटे का यह चुनाव सांविधानिक प्रक्रिया के तहत ही कराया जा सकता है. कोर्ट ने आयोग को 30 जून तक इस पर निर्णय लेने को कहा.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें