इबादत का होता है रमजान का महीना
निर्धन वर्ग के बीच खर्च करना खुदा का इबादतगरीब मजबूरों की सहयोग करना फर्ज होतासंवाददाता,गोपालगंजगरीब मजबूर लोगों को सहयोग करने से रोजा का पूरा लाभ प्राप्त होता है.इसलिए इस रोजा में भलाई की मोका नहीं छोडे. हाजी नब्बन कहते हैं क रमजान महीना इबादत का होता है. इस माह लोग अपनी आमदनी का कुछ हिस्सा […]
निर्धन वर्ग के बीच खर्च करना खुदा का इबादतगरीब मजबूरों की सहयोग करना फर्ज होतासंवाददाता,गोपालगंजगरीब मजबूर लोगों को सहयोग करने से रोजा का पूरा लाभ प्राप्त होता है.इसलिए इस रोजा में भलाई की मोका नहीं छोडे. हाजी नब्बन कहते हैं क रमजान महीना इबादत का होता है. इस माह लोग अपनी आमदनी का कुछ हिस्सा धन खैरात के रूप में निर्धन वर्ग के बीच खर्च करते हैं. इस धन को देने से इस वर्ग का कल्याण हो जाता है. सामाजिक दृष्टिकोण से एक महीने से कठोर तप से समाज में तमाम बुराइयों पर नियंत्रण पैदा होता है. सूयार्ेदय से सूर्यास्त तक पुरु ष व महिलाएं अधिकतर समय इबादत में ही लगाते हैं. जिसके कारण तमाम बुराइयों से बचे रहते हैं. रमजान माह में शाम को इफ्तारी की दावतें पूरे वर्ष लोग याद रखते हैं. माह के समापन पर चांद दिखाई देता है और दूसरे दिन ईद मनाकर एक-दूसरे से खुशी का इजहार किया जाता है. ईद का त्यौहार आपसी भाईचारे का प्रतीक है.मधुमेह रोगी भी खा सकते हैं खजूर वैसे तो खजूर शरीर के लिए काफी फायदेमंद है, लेकिन रमजान में इसकी अहमियत में चार चांद लग जाता है. इसका मुख्य कारण है कि इस्लाम के आखिरी नवी मोहम्मद स.अ. जब रोजा इफ्तार करते तो पहले निवाले में खजूर का इस्तेमाल करते. किसी कारणवश अगर खजूर न मिल पाता तो पानी से रोजा इफ्तार करते.इस्लाम धर्म के आखिरी पैगंबर की सुन्नत को अदा करने के लिए आज भी रोजेदार की यही कोशिश रहती है कि वह खजूर से रोजा इफ्तार करें. रमजान आते ही बाजारों में तरह-तरह की सजी-धजी दुकानें इसका प्रमाण हैं. हाजी नब्बन कहते हैं कि रमजान के माह में खजूर की बिक्र ी काफी बढ़ जाती है. इसके पीछे रोजेदारों द्वारा खजूर से रोजा इफ्तार करना है. खजूर शरीर में हीमोग्लोबिन की मात्रा बढ़ाता है तथा इसे मधुमेह रोगी भी खा सकते हैं.