छोटी जोतवालों को ध्यान में रख कर बने कृषि नीति : गिरिराज
पटना: बिहार एक ऐसा राज्य है, जहां कृषि पर सबसे ज्यादा आबादी निर्भर है. यहां जोत के आकार निरंतर छोटे हो रहे हैं. नदियों के छोर का सिंचाई में इस्तेमाल नहीं किया जा सका है. इसके साथ ही पारंपरिक खेती से मुंह मोड़ने में किसान अब भी कतरा रहे हैं. उनके लिए राज्य सरकार ने […]
पटना: बिहार एक ऐसा राज्य है, जहां कृषि पर सबसे ज्यादा आबादी निर्भर है. यहां जोत के आकार निरंतर छोटे हो रहे हैं. नदियों के छोर का सिंचाई में इस्तेमाल नहीं किया जा सका है. इसके साथ ही पारंपरिक खेती से मुंह मोड़ने में किसान अब भी कतरा रहे हैं. उनके लिए राज्य सरकार ने कोई प्रोत्साहन योजना नहीं बनायी. राज्य में बेहतर कृषि नीति बनाने की दरकार है, जिससे यहां के किसानों के हालात सुधर जाएं. ये बातें केंद्रीय लघु, सूक्ष्म और मध्यम उद्योग राज्य मंत्री गिरिराज सिंह ने कही.
वे बीआइए सभागार में बिहार में खस सहित अन्य सुगंधित पौधों की खेती पर राज्य स्तरीय कार्यशाला में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे. उन्होंने आगे कहा कि केवल श्री विधि-श्री विधि का जाप करने और ढैंचा आदि की खेती करा कर यदि सरकार सोचती है कि इससे किसानों का भला हो जाये तो यह गलत है. इससे केवल किसान ठगे जा रहे हैं. सिंह ने आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि बिहार में एवरेज किसान के पास दो एकड़ जमीन है. जमीन के आकार लगातार छोटे हो रहे हैं और सिंचाई का घोर अभाव है, जबकि बिहार में नदियों का छोर 3200 किमी से अधिक है.
यदि इसका ठीक से प्रबंधन हो तो सिंचाई की समस्या खत्म हो जायेगी. किसानों को भी सोचना होगा कि अब धान, गेहूं और मकई लगा कर काम नहीं चलने वाला. उन्हें वैकल्पिक तौर पर औषधीय पौधों की खेती करने की सोच रखनी चाहिए. इससे कम समय में ज्यादा आय होगी.
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में तकनीकी सत्र आयोजित किया गया जिसमें राज्य में सुगंधित पौधों की खेती करने के लिए खास टिप्स दिये गये. लखनऊ के वरीय वैज्ञानिक डॉ जमील अहमद, मिलिंद देशपांडे, जे मित्र, कृष्णा प्रसाद आदि ने संबोधित किया. किसानों के लिए भी अनुभव सुनाये गये जिसमें खेती के लाभ की जानकारी दी गयी. मौके पर प्रदेश के विभिन्न हिस्सों से आये किसान भी उपस्थित थे.