50th anniversary of samporn kranti : संपूर्ण क्रांति के 50 वर्ष पूरे होने पर आंदोलन को याद करते हुए पूर्व मंत्री और कर्पूरी ठाकुर के सचिव रहे अब्दुलबारी सिद्दीकी कहते हैं कि हम सोये वतन को जगाने चले हैं-मुरदा वतन को जिलाने चले हैं. वर्ष 1974 में जेपी आंदोलन के दौरान यह गीत छात्र नौजवान गाया करते थे. हम इस गीत का जिक्र इसलिए कर रहे हैं कि मेरी समझ से छात्रों के उस आंदाेलन के जो मुद्दे थे, वे खत्म नहीं हुए हैं. आज भी वे सवाल जिंदा हैं, जिन्हें लोकनायक ने उठाया था. उन्होंने कहा कि मेरा मानना है कि सत्ता भी परिवर्तन का बड़ा हथियार है. आंदोलन के बाद मोरारजी देसाई के नेतृत्व में केंद्र में सरकार बनी. बिहार में कर्पूरी ठाकुर मुख्यमंत्री बने. गरीबों के बहुत सारे काम हुए. किसानों के लगान फ्री, महिलाओं को स्नातक की शिक्षा फ्री जैसी आम लोगों से जुड़ी योजनाएं लागू की गयीं. इसी आंदोलन की उपज लालू प्रसाद के हाथों में बिहार की बागडोर आयी, तो गरीब व कमजोर लोगों को जुबान मिली. हालांकि यह भी उतना ही सच है कि जेपी ने जिस संपूर्ण क्रांति का नारा दिया था, उस हिसाब से परिवर्तन नहीं हुआ.
कई बार जेल भी जाना पड़ा
सिद्दीकी कहते हैं कि जेपी आंदोलन से हम बहुत करीब से जुड़े रहे थे. कई बार जेल भी जाना पड़ा. आंदोलन के उस सफर में साथ देने वाले कई दोस्त अब इस दुनिया में नहीं हैं, पर कई अब भी साथ हैं. हम पटना के चांदमारी रोड और यारपुर के जोगिया टोली इलाके में रहते थे. नौजवान थे. मुहल्ले के लड़कों ने आंदोलन में जाने का फैसला लिया. मुझे लोग नेता कह कर बुलाते थे. मुझे बड़े नेताओं से मिलने की जिम्मेवारी सौंपी गयी. हमलोगों ने 18 मार्च को चांदमारी रोड पर एक टेंट लगाया. उसमें स्वत:स्फूर्त लोग जुटने लगे. बड़ी संख्या में महिलाएं आने लगीं. उनके लिए अलग से टेंट लगा. उन दिनों शिवानंद तिवारी छात्र आंदोलन के उभरते नेता थे. वह भी हमारे टेंट में आये. धीरे-धीरे हमारी पहचान बढ़ती गयी. इसी बीच जेपी से मिलना हुआ. पांच जून को गांधी मैदान में जेपी का प्रसिद्ध भाषण हुआ. रैली हुई. इसके बाद कई कार्यक्रम घोषित हुए. जेल भरो अभियान हुआ. हमलोग भी पकड़ाये. हमलोगों को फुलवारी जेल भेजा गया. फुलवारी जेल स्वीकार नहीं किया, तो बक्सर जेल भेजा गया. उसे भी स्वीकार नहीं किया. हमलोग बाहर आ गये.
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अखबारों में छपी खबर से नाराज हुए जेपी
कुछ अखबारों में खबर छप गयी कि पकड़े गये लोग पुलिस हिरासत से भाग गये. जेपी को जब इस बात की खबर मिली, तो वह नाराज हुए. उनकी सलाह पर सभी लोग स्वत: फुलवारी शरीफ जेल गये. इसके बाद एक बार भवेश चंद्र प्रसाद के आवास पर गुप्त बैठक तय हुई. उन दिनों रामविलास पासवान भी हमारे साथ थे. हम, पासवान जी, नरेंद्र सिंह समेत छह लोग भवेश चंद्र प्रसाद के आवास पर गये. इस बैठक की जानकारी पुलिस को मिल गयी. हमलोग जैसे ही पहुंचे, पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. हमसे नाम पूछा गया. हमने मोहन मिश्रा बता दिया. उन दिनों हमलोग भूमिगत रूप से एक अखबार ‘हमारा संघर्ष’ निकालते थे. उसकी प्रति हमारे हाथ में थी, लेकिन जैसे ही मुझे लगा कि हम पकड़ लिये गये हैं, हमने अखबार की प्रति को किनारे कहीं रख दिया, जिसे पुलिस देख नहीं सकी. इसके बावजूद पुलिस हमलोगों को वहां से लेकर कदमकुंआ थाने लायी. रात भर वहीं रखा गया.