पटना/नयी दिल्ली: केंद्र की जाति आधारित जनगणना को अब तक सार्वजनिक नहीं किए जाने को लेकर चुनावी मुहाने पर खड़े बिहार में इस पर सियासत तेज हो गया है. एक ओर जहां मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने इसे तत्काल जारी करने की मांग की है. वहीं, हाल ही में एनडीए में शामिल हुए हिंदुस्तानी आवामी मोर्चा (सेक्यूलर) के संस्थापक एवं पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने भी सामाजिक आर्थिक जाति जनगणना को जारी करने की मांग की है. इन सबके बीच भाजपा ने इस मामले पर पलटवार करते हुए कहा है कि बिहार की जनता इस बार जातीय गणना की रिपोर्ट नहीं, विकास का रिपोर्ट कार्ड देख कर फैसला करेगी. भाजपा ने लालू व नीतीश को चुनौती देते हुए कहा कि अगर दोनों प्रमुख नेताओं में अगर हिम्मत है तो वे कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी एवं पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह से इस मामले पर सवाल पूछें. उधर, जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव ने कहा कि आगामी मानसून सत्र के दौरान यद मुद्दा लोकसभा व राज्यसभा दोनों सदनों में उठाया जाएगा.
गौर हो कि पिछले सप्ताह केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली और राव बिरेंद्र सिंह ने जाति आधारित जनगणना को जारी किया था पर विभिन्न जातियों, अल्पसंख्यकों और कमजोर वगोर्ं की आबादी से जुड़े आंकड़ों को सार्वजनिक करने से इनकार किया था. राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने केंद्र द्वारा जाति आधारित जनगणना को सार्वजनिक नहीं किए जाने पर साजिश का आरोप लगाते हुए धमकी दी थी वे इसको लेकर आगामी 13 जुलाई को राजभवन तक मार्च करेंगे.
लालू के बोल…
बीते दिनों राजद के 19वें स्थापना दिवस के अवसर पर पत्रकारों से बातचीत करते हुए लालू ने कहा, सभी को अपनी जाति की आबादी के बारे में जानने का अधिकार है. किसी जाति की आबादी को लेकर तरह-तरह के दावे किए जाते हैं पर जाति आधारित जनगणना के सार्वजनिक हो जाने पर असली तस्वीर सामने आ जाएगी.
नीतीश कुमार की मांग…
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा, जनगणना के द्वारा विभिन्न सामाजिक एवं आर्थिक आंकड़ों की गणना होता है. इसके साथ-साथ लोगों की मांग पर जाति आधारित जनगणना की गयी. अब जब जाति आधारित जनगणना हो गयी है तो इसे सार्वजनिक किया जाना चाहिये. उन्होंने कहा कि यह बात समझ से परे है कि आखिरकार जब जाति आधारित जनगणना हुई है तो उसके आंकड़ों को क्यों नहीं प्रकाशित किया जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि निश्चित रुप से ऐसा लगता है कि केंद्र सरकार में जो लोग बैठे हुए हैं, उनके इरादे ठीक नहीं हैं. नीतीश ने कहा कि जब मांझी को मुख्यमंत्री बनाते वक्त जाति का मुद्दा नहीं उठाया गया था और पार्टी ने जब उनको हटाया तो भाजपा जाति का नाम लेकर जदयू का आलोचना कर रही है. भाजपा से ज्यादा घनघोर जातिवादी कोई पार्टी नहीं है.
मांझी भी हुए बागी
मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के बाद जदयू के खिलाफ बागी तेवर अपनाने और हिंदुस्तानी आवामी मोर्चा सेक्युलर के नाम से नई पार्टी का गठन करने वाले जीतन राम मांझी ने सोमवार को कहा, जब जातिगत जनगणना के लिए आयोग बना, सर्वे हुआ तो इसे गुप्त रखने की क्या जरुरत, इसको सामने लाना चाहिए. एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर मांझी ने कहा, यह उनकी व्यक्तिगत राय है कि जातिगत जनगणनना की रिपोर्ट जारी की जाए. उन्होंने कहा कि जातिगत जनगणना को सार्वजनिक किए जाने से ये बातें भी सामने आयेगी कि देश में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक और महिलाओं की कितनी आबादी है. मांझी ने कहा कि चाहे वो किसी भी जाति के गरीब हो, इस रिपोर्ट से पता चलेगा कि कितने लोग भूमिहीन और मकानविहीन हैं. तभी तो इनकी स्थिति में सुधार के लिए प्रभावी निर्णय लिया जा सकता है.
लालू-नीतीश पर भाजपा का पलटवार
पूर्व उपमुख्यमंत्री व भाजपा के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी ने सामाजिक, आर्थिक व जातीय जनगणना पर उठ रहे सवालों पर पलटवार करते हुए लालू प्रसाद व नीतीश कुमार को चुनौती देते हुए कहा कि अगर हिम्मत है तो सोनिया गांधी व मनमोहन सिंह से सवाल पूछें. सामाजिक-आर्थिक और जातीय जनगणना शुरू कराने वाली यूपीए सरकार ने नवंबर 2011 में ही फैसला किया था कि धर्म, जाति और जनजाति से संबंधित आंकड़े जारी नहीं किये जाएंगे. बिहार की जनता इस बार जातीय गणना की रिपोर्ट नहीं, विकास का रिपोर्ट कार्ड देख कर फैसला करेगी. पूर्व उपमुख्यमंत्री ने कहा कि विकास की राजनीति पर नीतीश कुमार का भरोसा नहीं रहा, इसलिए वे भी जातीयता का कार्ड खेल रहे हैं. उन्होंने कहा, लालू प्रसाद से दोस्ती के बाद नीतीश कुमार बिहारी अस्मिता को छोड़ जातीयता की राजनीति पर उतर आए हैं. लालू प्रसाद को अगर आंदोलन ही करना है, तो वे बढ़ते अपराध, चौपट बिजली व्यवस्था और आत्महत्या के लिए किसानों को मजबूर करने वाले हालात के खिलाफ सड़क पर आएं.
सरकार को संसद में घेरने की तैयारी
नयी दिल्ली: सामाजिक-आर्थिक एवं जाति जनगणना 2011 में जाति के आंकड़े जारी नहीं करने के लिए सरकार को संसद के मानसून सत्र में विपक्ष की एकजुट घेराबंदी का सामना करना पड़ सकता है. कांग्रेस, माकपा, द्रमुक, सपा, राजद और जदयू जैसे दलों में इस मुद्दे पर एकजुटता बन रही है. सरकार ने स्पष्ट तौर पर इस बात से इनकार किया है कि जाति संबंधी आंकड़े नहीं जारी करने का बिहार के विधानसभा चुनावों से कोई लेना देना है. जदयू अध्यक्ष शरद यादव ने बताया कि यह मुद्दा लोकसभा और राज्यसभा दोनों ही सदनों में उठाया जाएगा. सरकार पर जाति संबंधी आंकड़े सार्वजनिक करने का दबाव बनाने के लिए संयुक्त रणनीति बनाने के उद्देश्य से अन्य दलों से भी बातचीत की जा रही है.