पहले चुनाव में कांग्रेस को भारी बहुमत
आजादी के बाद बिहार विधानसभा के लिए पहला आम चुनाव 1952 में हुआ था. पहले आम चुनाव में सीटों की कुल संख्या 276 थी. इसमें दोहरी सदस्यता वाली सीटों की संख्या 54 थी. ऐसी सीटों पर दो उम्मीदवार चुने जाते थे. अनुसूचित जनजाति के लिए 24 सीटें आरक्षित थीं. चुनाव की प्रक्रिया 1951 के अंत […]
आजादी के बाद बिहार विधानसभा के लिए पहला आम चुनाव 1952 में हुआ था. पहले आम चुनाव में सीटों की कुल संख्या 276 थी. इसमें दोहरी सदस्यता वाली सीटों की संख्या 54 थी. ऐसी सीटों पर दो उम्मीदवार चुने जाते थे. अनुसूचित जनजाति के लिए 24 सीटें आरक्षित थीं.
चुनाव की प्रक्रिया 1951 के अंत में शुरू हुई और 1952 के जनवरी में पूरी हुई थी. इसकी अधिसूचना 15 नवंबर, 1951 को जारी हुई थी और मतदान चार से 24 जनवरी तक संपन्न हुए थे. यानी राज्य में पहला चुनाव 21 दिनों में संपन्न हुआ था. तब लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ होते थे, विधानसभा चुनाव के बाद बिहार में कांग्रेस की सरकार बनी और श्रीकृष्ण सिंह मुख्यमंत्री बने. पेश है उस चुनाव सेजुड़े कुछ दिलचस्प तथ्य.
दलों के एजेंडे में अपने सपने तलाश रहे नौजवान
राज्य में युवा मतदाताओं की संख्या बहुत अधिक है. इसलिए हर पार्टी उन्हें अपनी ओर आकर्षित करने के लिए फेसबुक से लेकर ह्वाट्स एप्प तक का इस्तेमाल कर रही है. लेकिन, यह 21 वीं सदी का युवा वर्ग है जो राज्य, समाज और दुनिया को अपने नजरिये से देखता-समझता है और उसमें अपने सपनों को सच करने की कोशिश करता है. प्रभात खबर ने ऐसे युवा मतदाताओं के मन को टटोलने की कोशिश की.
मुख्य एजेंडा गायब
इस वर्ष होने वाले बिहार विधान सभा के चुनाव का मुख्य एजेंडा तो जैसे बिल्कुल गायब हो गया है. सिर्फपोस्टर वार चल रहा है. पोस्टरों के माध्यम से सभी अपने आप को अच्छा बताने में लगे हैं. कोई यह नहीं बता रहा है कि चुनाव में बहुमत मिलने पर वह क्या करेगा. जो रुपये चुनाव की घोषणा के पूर्व ही प्रचार में खर्च हो रहे हैं, उससे गांवों का विकास किया जा सकता है.
अब भी सैकड़ों ऐसे गांव हैं, जहां शुद्ध पेयजल नहीं है. लेकिन, यह सोचने वाला कोई नहीं है. कोई अपनी कुरसी बचाने तो कोई पाने में लगा हुआ है. जनता को क्या चाहिए, इसपर सोचने के लिए किसी के पास फुर्सत नहीं है. कुरसी के लिए पार्टियां कुछ भी कर सकती है. मुङो अब सोचना पड़ रहा है कि मैं अपना मत किसे दूंगा.
सौरभ कुमार, बीबीएम-एमयू
जनता से डर रहे नेता
चुनाव आते ही कई नेता सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों तक पहुंचने की कोशिश करते हैं. गली-मुहल्लों में घूम-घूम कर लोगों से मिलना उन्हें नहीं सुहाता है. अभी चुनाव की औपचारिक घोषणा नहीं हुई है, लेकिन हमारे राज्य के कई नेताओं ने सोशल मीडिया के माध्यम से अपने लिए प्रचार शुरू कर दिया है.
लेकिन, इसमें सबसे रोचक बात यह है कि सोशल मीडिया फेंड्रली नेताओं का अकाउंट पीआर एजेंसी हैंडिल करती है. बिहार में भी सोशल मीडिया की माया में फंसे नेताओं का यही हाल है. इस तरह के चुनाव का क्या फायदा. जनता के पास आने से लोग डर रहे हैं. जनता के सवालों का जवाब जन प्रतिनिधियों के पास नहीं है. बस हरेक बार वादा और पुन: वादा अधूरा हो जाता है.
अमन सिंह, एनटीपीसी, बाढ़
विकास की बात कोई नहीं करता
चुनाव में एजेंडा का पता नहीं. विकास की बात कोई नहीं करता. विरोधी पार्टियां भी सिर्फ विरोध की राजनीति करती हैं. विरोध करने की कोई जायज वजह नहीं बताती हैं. कामोबेश सभी पार्टियों का चाल-चरित्र ऐसा ही हैं.
विपक्ष में जिसका विरोध करेंगी, सत्ता में आने के बाद वही काम करेंगी. विकास और राज्य हित की कोई बात हो तो राजनीति से ऊपर उठ कर लोगों को एक साथ आना होगा. यह चुनाव कई मायनों में दिलचस्प होने वाला है. राजनीतिक गतिविधियां जो भी चल रही हैं, उससे जनता को बहलाने का काम किया जा रहा है. आम लोग इस बात को अच्छी तरह समझ रहे हैं.
गोपाल शानु, छात्र-बीसीए, एएन कालेज
काम नहीं दिख रहा
इस चुनाव के बारे में मुङो कुछ समझ में नहीं आ रहा है. एक दूसरे के विरोधी अब साथ हो गये हैं और जो विरोधी थे,उन्होंने एक-दूसरे का हाथ थाम लिया है. ऐसा क्यों हुआ, यह बात मुङो समझ में नहीं आ रही है. पार्टियों की विचारधारा में इस स्तर का बदलाव कैसे आया, यह शोध का विषय हो सकता है.
चुनावी मैदान में अपना दम दिखाने को तैयार दल ये नहीं बता रहे हैं कि उनके पास विकास का एजेंडा क्या है. सरकार बनने पर पांच वर्षो में उनकी प्राथमिकताएं क्या-क्या होंगी. शिक्षा, स्वास्थ्य और सड़क के लिए उनके पास कोई ब्ल्यू प्रिंट है कि नहीं. सभी पार्टियों के नेता कह रहें हैं, हमने जो किया है, उसपर आप हमें वोट दीजिए. मुङो कोई काम दिख नहीं रहा है. मुङो समझ में नहीं आ रहा है कि किस काम के आधार पर मैं अपना वोट दूं.
राकेश कुमार, रेलवे में कार्यरत
दिलचस्प होगा चुनाव
विधानसभा चुनाव बड़ा ही दिलचस्प होने वाला है. इस चुनाव में मुङो अपने मत का प्रयोग करना है. राज्य में विकास का दौर चलता रहे. आने वाला समय बिहार के लिए बेहतर हो.
एजुकेशन हब के साथ-साथ अच्छी कंपनियां बिहार में अपना संयंत्र लगायें, ऑफिस बनायें जिससे यहां के लोगों के यहीं रोजगार मिले. उन्हें कमाने के लिए दूसरे राज्य का रुख नहीं करना पड़े. ऐसा होने पर राज्य का पैसा बाहर नहीं जाएगा, यहीं निवेश होगा.
सरकार किसी की भी बने, लेकिन उसका ध्यान इस ओर होना चाहिए, तभी प्रदेश का सही मायने में विकास होगा. मैं अपना वोट उसी उम्मीदवार और पार्टी को दूंगा जो अपने मेनिफेसटो में इन सब बातों का ध्यान रखेगी और काम कैसे होगा, उसका खाका पहले पेश करेगी.
विकास कुमार, छात्र-एमबीए, एलएन मिश्र