कैसे हो सफर सुहाना

सरकारी बसें चली नहीं, ऑटोवाले करते हैं मनमानी पटना : राजधानी की पब्लिक के लिए ट्रांसपोर्टेशन बेहतर बनाना था. इसको लेकर राजधानी की सड़कों पर नुरूम की 300 बसों को सड़कों पर उतारना था. नगर विकास व आवास विभाग ने इस योजना को पूरा करने की जिम्मेवारी बिहार अरबन इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट काॅरपोरेशन (बुडको) को दिया […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 25, 2015 6:48 AM
सरकारी बसें चली नहीं, ऑटोवाले करते हैं मनमानी
पटना : राजधानी की पब्लिक के लिए ट्रांसपोर्टेशन बेहतर बनाना था. इसको लेकर राजधानी की सड़कों पर नुरूम की 300 बसों को सड़कों पर उतारना था. नगर विकास व आवास विभाग ने इस योजना को पूरा करने की जिम्मेवारी बिहार अरबन इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट काॅरपोरेशन (बुडको) को दिया गया.
बुडको ने टेंडर निकाल कर टाटा मोटर्स को चयनित किया, जिसे तीन माह में 300 बसें उपलब्ध कराने का एकरारनामा किया. आलम यह है कि टाटा मोटर्स बसों को तैयार रखा है, लेकिन बुडको डिलीवरी लेने को तैयार नहीं है. इसका कारण है कि बुडको के पास अच्छे ऑपरेटर नहीं हैं. इस स्थिति में साल भर में सिर्फ 40 बसें ही दौड़ रही हैं.
बस क्यू सेल्टर बन कर तैयार, उपयोग शून्य
बुडको ने 300 बसें खरीदने की योजना बनायी, तो उसी दौरान राजधानी की सड़कों पर ट्रैफिक लाइट लगाने और बस क्यू शेल्टर बनाने का निर्णय लिया गया. पिछले वर्ष 14 अगस्त को राजधानी की सड़कों पर नुरूम की 20 बसों को उतारा गया है. उद्घाटन समाराेह में तत्कालीन नगर आवास विकास मंत्री और सचिव ने घोषणा की थी कि सभी बसों को तीन माह में सड़कों पर उतार दिया जायेगा, लेकिन अब तक मामला अधर में है.
नहीं मिल रहे अच्छे ऑपरेटर
नुरूम की बसों के परिचालन और रख-रखाव को लेकर एजेंसी की खोज की जा रही है. इसको लेकर टेंडर पर टेंडर निकाला जा रहा है, लेकिन बीडर टेंडर में शामिल ही नहीं हो रहे हैं. अभी हाल में 18 अगस्त को भी टेंडर की अंतिम तिथि तय की गयी थी, लेकिन इसमें भी एजेंसी शामिल नहीं हुई. इस स्थिति में बसों के परिचालन में परेशानी हो रही है और बसों की संख्या नहीं बढ़ायी जा रही है. चार माह पहले विभाग ने निर्णय लिया था कि नुरूम की बसों का परिचालन राज्य पथ परिवहन निगम से कराया जायेगा, लेकिन वह भी अधर में लटक गया है.
पटना : ‘नित्यानंद हर दिन जंकशन से बोरिंग रोड चौराहा जाने के लिए ऑटो को दस रुपये देते हैं. एक दिन आयकर गोलंबर से बोरिंग रोड चौराहा जाना पड़ा. तब भी ऑटो चालक ने दस रुपये ही वसूले. बहस करने पर ऑटो चालक ने कहा. यही भाड़ा है.’
यह िकसी एक िनत्यानंद की कहानी नहीं है, बल्कि हर रोज हजारों लोगों को ऐसी परेशानी झेलनी पड़ती है. राजधानी में ऑटो किराया को लेकर मनमानी जारी है. प्रशासनिक नियंत्रण नहीं होने से ऑटो चालकों यात्रियों से मनमाना किराया वसूल करते हैं. दिन तो दिन रात में सफर करने पर दोगुना किराया वसूला जाता है. ऑटो चालकों पर ना तो यूनियन का कोई नियंत्रण है ना ही प्रशासन का. करीब बीस वर्षों के लंबे अंतराल के बाद परिवहन विभाग व ट्रैफिक ने मिल कर ढाई साल पहले नवंबर 2012 को प्रति किमी रेट के हिसाब से किराया, तो तय कर दिया, लेकिन अब तक उसका क्रियान्वयन नहीं हो रहा है.
शिकायतों को दर्ज कराने का माध्यम नहीं
अब तक कोई ऐसी इकाई ही नहीं बनी है जो इस भाड़े के हिसाब-किताब को मॉनीटर कर सके.जहां आम लोग अपनी व्यथा और शिकायतों को दर्ज भी करा सके. इन सबके बीच आम लोग ऑटो यूनियन के रहमो-करम पर हैं और परेशानी उठा रहे हैं.
ऑटो का किराया
टेंपो-बिक्रम
पहला दो किमी- 5 रुपये
हर अगले किमी के लिए 2.5 प्रति किमी
ऑटो भाड़ा (रिजर्व)
पेट्रोल- पहला दो किमी- 15 रुपये (हर अगले किमी- 7.5 रुपये)
डीजल- पहला दो किमी- 12 रुपये (हर अगले किमी- 6 रुपये)

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