बिहार में आकार ले रहा है मजबूत तीसरा मोर्चा, मांझी पर सबकी निगाह
पटना : बिहार की राजनीति नयी करवट ले रही है. कल तक महागंठबंधन बनाम एनडीए की दिख रही दो ध्रुवीय राजनीति में अब तेजी से तीसरा मोर्चा आकार ले रहा है. इसी कडी में आज नये-नये समाजवादी पार्टी में शामिल हुए व एक समय में बिहार के कद्दावर नेता रहे रघुनाथ झा व राष्ट्रवादी कांग्रेस […]
पटना : बिहार की राजनीति नयी करवट ले रही है. कल तक महागंठबंधन बनाम एनडीए की दिख रही दो ध्रुवीय राजनीति में अब तेजी से तीसरा मोर्चा आकार ले रहा है. इसी कडी में आज नये-नये समाजवादी पार्टी में शामिल हुए व एक समय में बिहार के कद्दावर नेता रहे रघुनाथ झा व राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता तारीक अनवर के बीच मुलाकात हुई है. दोनों नेताओं ने महागंठबंधन को आकार देने पर चर्चा की है. अब चर्चा यह है कि अगर मांझी एनडीए में भाजपा के सीट बंटवारे के फार्मूले से संतुष्ट नहीं हुए तो वे भी तीसरे मोर्चे की राह पकड सकते हैं. बहरहाल, इस सबसे सपा के अलगावा से आहत जदयू-राजद की बांछे खिल गयी हैं.
पप्पू भी हो सकते हैं तीसरा मोर्चा में शामिल
उधर, इस तीसरे गंठबंधन में पप्पू यादव की पार्टी भी शामिल हो सकती है. पप्पू ने भी जन अधिकार मोर्चा नामक अपनी पार्टी बनायी है और भाजपा पर उन्होंने गठजोड के लिए रणनीतिक दबाव भी बनाया, लेकिन बाहुबली वाली छवि के कारण भाजपा हाईकमान ने अबतक उन्हें साथ लेने का संकेत नहीं दिया है. अब चर्चा यह है कि सीटों पर बढते टकराव के बाद अगर जीतन राम मांझी की नाराजगी बढी तो वे इस प्रस्तावित तीसरे मोर्चे में शामिल हो सकते हैं.
पासवान व मांझी में सीटों व कद की लडाई
दरअसल, मांझी व लोजपा प्रमुख में खुद को ज्यादा बडा दलित नेता साबित करने की होड लगी हुई है. मांझी चाहते हैं कि उनकी पार्टी को एनडीए में पासवान से ज्यादा सीटें मिलें, क्योंकि उनके पास अभी 13 विधायक हैं, जबकि पासवान के पास एक भी विधायक नहीं है, ऐसे में उन्हें कम सीट दी जाये. हालांकि इन दोनों के बीच इस विवाद का एक अहम कारण नरेंद्र सिंह भी हैं. नरेंद्र सिंह जमुई के हैं और इस सीट को लेकर पासवान व मांझी आमने-सामने हैं. इनके बीच कांटी, साहेबगंज, चकाई व टिकारी सीट को लेकर भी विवाद है. ध्यान रहे कि लोकसभा के लिए पासवान के बेटे चिराग पासवान जमुई से ही निर्वाचित हुए हैं.
कल अमित शाह से मिलेंगे मांझी
मांझी के तीखे तेवर के बाद भले ही भाजपा के चुनाव प्रभारी अनंत कुमार ने आज उन्हें फोन कर समझाया हो और धैर्य रखने की सलाह दी हो, लेकिन उनका रुख नरम नहीं हो रहा है. इस सब के बीच बुधवार को वे भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से मिलेंगे और अपना पक्ष रखेंगे. अमित शाह उन्हें समझाने की कोशिश करेंगे और यह भरसक प्रयास होगा कि वे एनडीए में बने रहें. लेकिन, मांझी के राजनीतिक इतिहास को देखते हुए यह कहना मुश्किल है कि वे दूसरे की सुनेंगे या अपनी सुनायेंगे और मनवायेंगे या फिर अलग हो जायेंगे.
एनडीए व महागंठबंधन दोनों के लिए चुनौती
अगर बिहार में एक ऐसा तीसरा मोर्चा बनता है, जिसमें समाजवादी पार्टी व राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अलावा जीतन राम मांझी व पप्पू यादव की भी पार्टी शामिल हो जाती है, तो यह स्थिति न सिर्फ महागंठबंधन के लिए बल्कि एनडीए के लिए भी चिंता की बात होगी. महागंठबंधन के लिए सिर्फ सपा व राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी व पप्पू का गंठबंधन ही चुनौती हो सकता है, लेकिन अगर उसमें मांझी शामिल होते हैं तो वह एनडीए के लिए भी चुनौती हो जायेगा, क्योंकि मांझी खुद को बिहार में एनडीए के अहम नेता के रूप में पेश कर चुके हैं. और, अगर वे अचानक यूटर्न लेते हैं तो नुकसान तो एनडीए को होगा ही.
अगर मांझी व पप्पू की मौजूदगी वाला मजबूत तीसरा मोर्चा आकार लेता है तो वे दोनों प्रमुख गंठबंधन के स्पष्ट बहुमत पाने के रास्ते में रोडा भी अटका सकते हैं. और, सचमुच ऐसी सूरत बनती है, तो इनके समर्थन के बिना कोई सरकार बनेगी नहीं.