पटना : बिहार विधानसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे को लेकर मारामारी खत्म हुई तो अब कौन कहां से चुनाव लड़ेगा इसकी दौड़ शुरू हो गयी. विभिन्नपार्टीकेप्रमुख नेताओं के घरों पर चुनाव टिकट मांगने वाले लोगों का तांता लगा है. कई लोग एक ही सीट पर दावेदारी कर रहे हैं. पहले दौर में उम्मीदवारों के एलान के बाद कोई नाराज होकर दूसरी पार्टियों को रुख कर रहा है तो कोई धरना देकर बैठा है, कोई परिवारवाद का आरोप लगा रहा है, तोकोईबड़े नेताओं पर अनदेखी करने का.
इन सबके बीच बिहार में जितनी पार्टियां चुनाव में उतरने की तैयारी कर रही हैं, उनका टिकट बंटवारे का फार्मूला परिवारवाद से होकर गुजरता नजर आता है. लगभग सभी प्रमुख पार्टियों के अध्यक्ष उम्मीदवारों के नाम के एलान पर अपने परिवार, प्रदेश अध्यक्ष के परिवार, सांसदों , विधायकों के रिश्तेदारों के आगे समर्पित नजर आ रहे हैं. खासकर क्षेत्रीय पार्टियां इस दौड़ में सबसे आगे हैं. एनडीए में सीट बंटवारे को लेकर समहति बनी तोअब टिकट बंटवारे को लेकर नाराजगी जाहिर हो रही है. गंठबंधन की गांठ अबतक बची है, सबको एक-दूसरे का साथ चाहिए लेकिन शर्तों के आधार पर सभी पार्टियां अपने उम्मीदवारों को उतारने के लिए सेफ सीट की तलाश में है, ताकि उनके रिश्तेदार, दूर के रिश्तेदार चुन कर विधायक की कुर्सी तक पहुंच जाए. आइये समझने की कोशिश करते हैं बिहार चुनाव में पार्टियां किसे तवज्जो दे रही है दमदार उम्मीदवार या नेताओं के रिश्तेदार.
जीतन राम मांझी का फार्मूला
एनडीए के गंठबंधन में शामिल जीतन राम मांझी की पार्टी के खाते में 20 सीटें आयी हैं,13 सीटों का एलान कर दिया गया है. जीतन राम मांझी के टिकट बंटवारे का फार्मूला उन उम्मीदवारों को टिकट देने का है जो पहले से विधायक रहे हैं. इसके अलावा मांझी अपने दोनों बेटों को भी सेट करने की कोशिश में हैं. उन्होंने अपने एक बेटे संतोष मांझी को कुटुंबा से टिकट दे दिया है. खबरें आ रही हैं कि वह अपने एक और बेटे प्रवीण मांझी को भी टिकट देने का मन बना रहे हैं. हालांकि इस पर अबतक कोई फैसला नहीं लिया गया है. अगर मांझी अपने दोनों बेटों को टिकट दे देते हैं तो मांझी भी उस सूची में शामिल हो जायेंगे जिन पर खुले तौर पर अपने परिवार को आगे बढ़ाने का आरोप लगता है. सूत्र बताते हैं कि जीतन राम मांझी अपने दामाद को भी ध्यान में रखकर आगे बढ़ रहे हैं. उनके दामाद ने कई मौकों पर पार्टी की तरफ से आधिकारिक बयान दिया है. ऐसे में उनके भी चुनाव लड़ने की संभावना जतायी जा रही है. इन दोनों को लेकर मांझी इसलिए चुप हैं क्योंकि दामाद को अपना पीए रखने के कारण वह विवादों में रहे और उनका बेटा प्रवीण हाल में ही पैसे के साथ गिरफ्तार हुआ था. वहीं पूर्व मंत्री और हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के नेता वृषिण पटेल अपने भतीजे के लिए भी टिकट के जुगाड़ में हैं.
राष्ट्रीय जनता दल या परिवार दल
राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव के हाथ में 100 सीटें हैं. इन सीटों पर कौन कहां से चुनाव लड़ेगा, इसका फैसला पूरी तरह से लालू यादव के हाथ में है. लालू अपने दोनों बेटों को पहले ही राजनीति में उतार चुके हैं. उन्होंने पहले ही साफ कर दिया था कि उनके दोनों बेटे उनकी राजनीतिक विरासत को आगे लेकर जायेंगे. लालू ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में तेजस्वी यादव को आगे बढ़ाया है. उनके दूसरे बेटे तेजप्रताप भी चुनाव मैदान में कूदने की तैयारी कर रहे हैं. सूत्रों से मिल रही जानकारी के अनुसार दोनों की सीटें भी तय कर दी गयी है. तेजस्वी यादव के लिए राघोपुर की सीट चुनी गयी है. राजद ने इस सीट को लेकर आपत्ति जतायी थी. इसी सीट से राबड़ी देवी को जदयू के सतीश कुमार ने हराया था. सतीश को शरद यादव का करीबी माना जाता है लेकिन इस सीट को लेकर जदयू अपना पक्ष मजबूती से नहीं रख सकी और यह सीट लालू के बेटे के खाते में चली गयी. लालू यादव अपनी बेटी मीसा भारती को भी मौका दे सकते हैं. कुल मिलाकर राजद में परिवारवाद का बोलबाला साफ नजर आता है. लालू के दो बेटे और एक बेटी की सीट पक्की है. इसके अलावा इस पार्टी में नेताओं के रिश्तेदारों का भी विशेष ध्यान रखा जा रहा है.
लोक जनशक्ति पार्टी
लोक जनशक्ति पार्टी को 40 सीटें मिली है. 40 में से 12 सीटों पर उम्मीदवारों का एलान किया जा चुका है. पार्टी के अध्यक्ष रामविलास पासवान और उनके बेटे चिराग पासवान पहले और कुछ रिश्तेदार पहले से ही सांसद की कुर्सी पर हैं. ऐसे में पार्टी प्रमुख अपने परिवार वालों को भूलना नहीं चाहते. पहली सूची में लोजपा प्रमुख के भाई व भतीजे को टिकट दिया गया है. जारी सूची में तीन लोग यानी 25 प्रतिशत पासवान के रिश्तेदार हैं.
सिर्फ तीन पार्टियां नहीं है, जिनमें परिवारवाद का बोलबाला है. राष्ट्रीय पार्टियों के सांसद और विधायक भी अपने बेटे-बेटियों की गोटी सेट करने में लगे हैं. टिकटों के एलान के साथ ही इनकी मानमनौवल और जोड़तोड़ शुरू हो चुका है. अभी तो उम्मीदवारों की घोषणा का पहला दौर ही शुरू हुआ है. अभी एक के बाद एक ऐसे कई दौर आयेंगे जब टिकट के उम्मीदवारों का एलान किया जायेगा. इस एलान के साथ परिवारवाद की नई कलई खुलती जायेगी. सभी राजनीतिक पार्टियां एक-दूसरे पर परिवारवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाती है. हाल में ही जीतन राम मांझी और रामविलास पासवान के बीच जुबानी जंग शुरू हुई थी, इसमें मांझी ने रामविलास पासवान पर परिवारवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाया था. लेकिन मांझी ने जब टिकट बंटवारे का एलान किया था उनमें अपने बेटे को भी एक उम्मीदवार के तौर पर आगे करके यह साबित कर दिया कि राजनीति में राज करने की नीति परिवारवाद के दम पर ही आगे बढ़ती है.