मशीनें बीमार, अस्पताल लाचार

यह कैसी लापरवाही : पीएमसीएच प्राचार्य को जांच मशीनों के बारे में जानकारी नहीं पटना : बे के सबसे बड़े मेडिकल कॉलेज व अस्पताल में सिर्फ दवाओं और डॉक्टर की कमी से ही नहीं, बल्कि मशीनों की खराबी के चलते भी बदहाली है. इंडोर-आउटडोर मिला कर यहां हर दिन लगभग ढाई हजार मरीज पहुंचते हैं, […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 23, 2015 7:39 AM
यह कैसी लापरवाही : पीएमसीएच प्राचार्य को जांच मशीनों के बारे में जानकारी नहीं
पटना : बे के सबसे बड़े मेडिकल कॉलेज व अस्पताल में सिर्फ दवाओं और डॉक्टर की कमी से ही नहीं, बल्कि मशीनों की खराबी के चलते भी बदहाली है. इंडोर-आउटडोर मिला कर यहां हर दिन लगभग ढाई हजार मरीज पहुंचते हैं, मगर इनमें से अधिकांश मरीजों को छोटी-बड़ी जांच के लिए बाहर दौड़ लगानी पड़ती है.
सरकार की तरफ से नि:शुल्क उपलब्ध करायी गयी इन जांच सेवाओं के लिए गरीब मरीजों को बाहर में हजारों रुपये तक खर्च करने पड़ते हैं. यह स्थिति तब है, जब हाइकोर्ट ने इसको लेकर कई बार पीएमसीएच प्रशासन को फटकार भी लगायी है. पीएमसीएच प्रशासन ने इन मशीनों की मरम्मति को लेकर समय भी मांगा, मगर उनकी स्थिति अब भी जस-की -तस है.
आश्चर्य की बात है कि इनमें से कुछ मशीनें सिर्फ थोड़ी-बहुत खराबी के चलते बंद पड़ी हैं, वहीं कुछ मशीन टेक्नीशियन की कमी से नहीं चल पा रही. मंगलवार को प्रभात खबर रिपोर्टर ने कुछ विभागों में खराब पड़ी मशीनों का जायजा लिया.
कैंसर विभाग में कोवाल्ट मशीन लगभग डेढ़ साल से बंद पड़ी है. यह मशीन कैंसर मरीजों को रेडिएशन मुफ्त दी जाती है, लेकिन रेडिएशन सेफ्टी ऑफिसर के रिटायर्ड होने के कारण यह बंद पड़ी है. दरअसल, यहां नयी बहाली नहीं हो पायी है. विभाग की ओर से कई बार प्राचार्य को पत्र भेजा गया है, पर इसको लेकर कभी पहल नहीं की गयी.
केवल समीक्षा का दावा, धरातल पर प्राचार्य से लेकर कोई भी बताने को तैयार नहीं
पीएमसीएच की व्यवस्था बेहतर बनाने को लेकर हर दिन एचओडी के साथ मीटिंग होती है. इसका नेतृत्व प्राचार्य डॉ एस.एन. सिन्हा करते हैं, लेकिन आश्चर्य की बात है कि उनको भी विभागों में खराब पड़ी मशीनों की जानकारी है. जब इनसे दो-चार खराब मशीनों के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि हमें मशीन खराब या बंद होने की जानकारी नहीं है.
इसके लिए एचओडी से बात करना होगा. जब अस्पताल के बारे में प्राचार्य के पास ही अधूरी जानकारी होगी, तो उन मरीजों का क्या होगा, जो इलाज के लिए पहुंच रहे हैं. वहीं दबी जुबान से लोगों में चर्चा है िक मशीनों पर िकन्हीं का ध्यान नहीं रहता है. इसकी वजह से ही मरीजों को िबना इलाज कराये ही लौट जाना पड़ता है. वहीं मरीजों की मानें तो वहां के स्टाफ केवल छोटी-छोटी बातों पर मरीजों से झगड़ा करने को तैयार रहते हैं.
न्यूरो ओटी में भी सालों से खराब है मशीन
न्यूरो ओटी में वर्षों से रखी सी-आर्म इमेज इंटेसिफायर टीवी सिस्टम खराब है, जिस कारण चिकित्सकों को ओटी करने में परेशानी होती है. यह एक आधुनिक तकनीकी मशीन है, जिसके सहारे से ही ऑपरेशन थियेटर में कई महत्वपूर्ण कार्य हो सकते हैं अन्यथा नहीं.
जानकार के मुताबिक मशीन में मेजर दिक्कत होने में दो से तीन लाख रुपये सही करने में लगेंगे. यदि सही से अस्पताल प्रशासन इस पर ध्यान दे तो मशीनों से मरीजों को काफी मदद मिलेगी.
सी आर्म मशीन से क्या हैं फायदे
फायदा नंबर एक : पहला आर्थोपेडिक सर्जन इस मशीन का इस्तेमाल शरीर में किसी हड्डी को सही तरीके से बैठाने के लिए करते हैं, जिसमें कभी-कभी हड्डी में स्केल डालना, स्क्रयू कसना आदि कार्य सही तरीके से संपन्न हो पाते हैं. पहले यह एक्सरे में देखा जाता था, जिससे पता चलता था कि ऑपरेशन के दौरान कई गलतियां हो गयी हैं. फिलहाल ओटी चार में एक मशीन ठीक है.
फायदा नंबर दो : दूसरा इसे यूरोलॉजी चिकित्सा क्षेत्र में चिकित्सक प्रयोग करते हैं, मसलन दूरबीन विधि से किडनी या यूटेरस में स्टोन की समस्या का इलाज इसी मशीन के सहारे देखकर किया जाता है.
फायदा नंबर तीसरा : तीसरा इसे हृदय रोगियों के लिए भी प्रयोग किया जाता है, जिसमें बड़ी महत्वपूर्ण चीज एंजियोग्राफी संभव होती है, पेसमेकर लगाने के लिए भी इस मशीन का सहारा लिया जाता है.
जब बीएमडी भी खराब, तो कैसे होगी मरीजों के घनत्व की जांच
मेडिकल ओपीडी में बोन मिनरल डेनसिटी टेस्ट (बीएमडी) जांच के लिए लगाया गया, जो सालों से बंद पड़ा है. इसके लिए भी वहां एक नर्स को तैनात किया गया है. जानकारी ली गयी कि जब मशीन बंद पड़ी है, तो नर्स का यहां क्या काम, तो मालूम पड़ा कि मशीन की सुरक्षा उसी नर्स की जिम्मेवारी है.
मशीन गायब होगी, तो उसे ही जवाब देना पड़ेगा.आठ माह से टीएमटी बंद : मरीजों का ट्रेड मील टेस्टिंग (टीएमटी) जांच परिसर में हो सके, इसको लेकर लाखों रुपये की मशीन लायी गयी. अस्पताल प्रशासन की मानें तो मरीजों को परेशानी नहीं हो, इसको लेकर नर्सों की ट्रेंनिंग भी हुई. ट्रेनिंग में काफी पैसे खर्च किये गये. इसके बाद रिजल्ट जीरो है. इतना ही नहीं, एक नर्स की डयूटी भी वहां हर दिन लगायी जाती है.

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