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सीमांचल की सियासत में ओवैसी के मायने

पटना : बिहार विधानसभा चुनाव में सीमांचल की सियासत काफी मायने रखती है. लगभग 78 फीसदी अल्पसंख्यक मतदाताओं वाले इस इलाके में गरीबी और मुफलिसी आज भी बरकरार है. सियासतदानों के लिए ये इलाका वोट बैंक तो जरूर है. लेकिन इस इलाके के बारे में सोचने वाले राजनेता कम ही दिखते हैं. आजादी के बाद […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 24, 2015 9:28 PM

पटना : बिहार विधानसभा चुनाव में सीमांचल की सियासत काफी मायने रखती है. लगभग 78 फीसदी अल्पसंख्यक मतदाताओं वाले इस इलाके में गरीबी और मुफलिसी आज भी बरकरार है. सियासतदानों के लिए ये इलाका वोट बैंक तो जरूर है. लेकिन इस इलाके के बारे में सोचने वाले राजनेता कम ही दिखते हैं. आजादी के बाद से घूसपैठ और गरीबी की मार झेल रहे इस इलाके में अब किसी नेता के वायदे का असर नहीं होता. सीमांचल के अल्पसंख्यक वोटरों की प्रवृति तत्काल फैसले लेने की रही है. सीमांचल के अंतर्गत आने वाले किशनगंज,अररिया,पूर्णिया और कटिहार जिलों में आज भी लोगों को सही और सच्चा जनप्रतिनिधि नहीं मिला. बिहार विधानसभा चुनाव में सिर्फ सीमांचल में कूदने का मन बना चुकी असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) को लेकर वहां के लोगों में उत्सुकता जरूर है.

विवादास्पद बयानों और फतवा जारी करने की वजह से सुर्खियों में रहने वाले ओवैसी को सीमांचल बिहार की राजनीति में जगह बनाने की मुफीद जगह लगता है. ओवैसी सीमांचल का दौरा भी कर चुके हैं. वो इस इलाके में अपना उम्मीदवार भी उतारने वाले हैं. गौरतलब हो कि इस क्षेत्र के अल्पसंख्यक मतदाता हमेशा से महागंठबंधन में शामिल सहयोगी दलों को ही समय-समय पर अपना मत देते रहे हैं. किशनगंज में बीजेपी के शैयद शहनवाज हुसैन को छोड़ दें तो राजद नेता तस्लीमुद्दीन और कांग्रेस के डॉ.जावेद आजाद और शहनवाज से पहले कांग्रेस के पूर्व सांसद वर्तमान बीजेपी के राज्यसभा सांसद एम.जे.अकबर तक को यहां के मतदाताओं ने सपोर्ट किया है. सीमांचल की लगभग सभी सीटों पर कांग्रेस,राजद या फिर जदयू का कब्जा रहा है. बीजेपी को सीमांचल में कम ही जीत मिली है. अब जब ओवैसी बिहार की सभी राजनीतिक पार्टियों को सीमांचल की बदहाली के लिए जिम्मेवार मान रहे हैं तो सीमांचल की जनता में एकबार फिर उम्मीद उंगली थामती दिख रही है.

बिहार की सियासत में असदुद्दीन ओवैसी का आना बीजेपी से ज्यादा महागंठबंधन के सहयोगी दलों को परेशान करने वाला है. क्योंकि राजद अपने को परंपरागत अल्पसंख्यक वोटरों की पार्टी मानती है. नीतीश कुमार भी अल्पसंख्यकों के बीच खासे लोकप्रिए हैं. नीतीश के इसी मोह की वजह से बीजेपी से उनके रिश्ते टूट गए. कांग्रेस के एक सांसद मौलाना असरारूल हक किशनगंज से आते हैं. अब जब ओवैसी अपना उम्मीदवार इन इलाकों में खड़ा करेंगे तो स्वभाविक है मुस्लिम मतदाताओं को रूझान इस ऊंचे सुर में विवादास्पद बयान देने वाले नेता की ओर जाएगा ही. और जब यही ध्यान मतदान में तब्दील हो जाएगा तो महागंठबंधन के सहयोगी दलों की मुश्किलें बढ़ जाएंगी.ओवैसी और उनकी पार्टी सीमांचल के वर्तमान हालात को देखकर पूरी तरह आश्वस्त है कि उनकी पार्टी को सफलता मिलेगी. ओबैसी सीमांचल को कब्जे में कर एक तरह बिहार की राजनीति में मजबूत पैठ बनाने की फिराक में भी हैं.

ओवैसी सीमांचल के मतदाताओं से बिहार सरकार की दोरंगी नीति के बारे में बात करते हैं. ओवैसी अल्पसंख्यक मतदाताओं को दिमाग में ये बात डालना चाहते हैं कि बिहार में जो पार्टियां सत्तासीन हुई या हैं उन्होंने सीमांचल और यहां के लोगों की सुध नहीं ली. ओवैसी पूरे इलाके में एक विशेष प्राधिकार बनाकर उसके विकास की बात करते हैं. ओवैसी ने बिहार में पार्टी की साख मजबूत करने के लिए जदयू विधायक रह चुके अख्तरूल इमान को चुना है. बताया जाता है कि अख्तरूल इमान की पकड़ सीमांचल की राजनीति में काफी गहरी है. और वो जमीनी नेता भी हैं….।

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