औरंगाबाद का मुद्दा : कोई नहीं जानता कब आयेगा उत्तर कोयल से पानी

छले 43 वर्षों से लोकसभा और विधानसभा चुनावों के दौरान औरंगाबाद जिले के लिए महत्वपूर्ण उतर कोयल परियोजना पर राजनीति की रोटियां खूब सेंकी गयी हैं. लेकिन, इस बार के हालात अलग हैं. विधानसभा चुनाव ऐसे समय में हो रहा है, जब किसानों के खेतों में धान की फसल अब जलने लगी है. इससे किसानों […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 26, 2015 5:24 AM
छले 43 वर्षों से लोकसभा और विधानसभा चुनावों के दौरान औरंगाबाद जिले के लिए महत्वपूर्ण उतर कोयल परियोजना पर राजनीति की रोटियां खूब सेंकी गयी हैं. लेकिन, इस बार के हालात अलग हैं. विधानसभा चुनाव ऐसे समय में हो रहा है, जब किसानों के खेतों में धान की फसल अब जलने लगी है. इससे किसानों में गुस्सा है.
इस नहर परियोजना से औरंगाबाद, नवीनगर और कुटुंबा के किसान को फायदा होगा. हालांकि झारखंड के पलामू के साथ ही बिहार में इसका फायदा औरंगाबाद के अतिरिक्त गया, जहानाबाद और अरवल जिले को भी होगा. ऊपरोक्त तीनों विधानसभा क्षेत्र के लोगों के लिए यह एक बड़ा मुद्दा है और इस बार इस पर लोग मुखर भी दिख रहे हैं. लोग चौक-चौराहों पर इसे लेकर सवालों की बौछार कर रहे हैं.
1948 में शुरू हुआ संघर्ष
उत्तर कोयल नहर परियोजना को आकार दिया जाये, इसके लिए सरयू सिंह, रघुनंदन सिंह, रामप्रताप बाबू, प्रियव्रत नारायण सिंह, जगदीश नारायण सिंह आदि जैसे किसानों ने 1948 से संघर्ष शुरू किया था. 1967 में जब औरंगाबाद के सांसद मुंद्रिका सिंह बने, तब उतर कोयल परियोजना केंद्र के चौथे प्लान से जुड़ा. 1972 में इस परियोजना पर काम भी शुरू हुआ. लेकिन 43 वर्ष बीत जाने के बावजूद यह परियोजना आज भी अधूरी है.
क्या है यह परियोजना
यह नहर परियोजना अगर आकार ले लेती तो इससे झारखंड के चतरा और पलामू के अतिरिक्त बिहार के औरंगाबाद के साथ-साथ गया, अरवल और जहानाबाद जिलों की कुल सवा लाख हेक्टेयर कृषियोग्य जमीन को पानी की कमी नहीं होगी. इस परियोजना पर 1972 में काम शुरू हुआ था.
इसके लिए सोन की सहायक कोयल नदी पर मंडल-कुटकु गांव के बीच पहाड़ियों पर 1170 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी के भंडारण की सुविधा के साथ 67.80 मीटर ऊंचाई और 343 मीटर लंबाई में एक डैम भी बना. इसके बाद बांध से 96 किलोमीटर आगे मोहम्मदगंज में बराज का निर्माण भी हुआ. मोहम्मदगंज बराज के दोनों तरफ से दो मुख्य नहरों का भी निर्माण किया गया.
लेकिन ये तमाम प्रयास, तब बेकार हो गये, जब 1980 में वन संरक्षण अधिनियम लागू हो गया. बेतला के जंगलों को टाइगर रिजर्व एरिया घोषित कर दिया गया. पर्यावरण मंत्रलय ने कुटकु डैम में फाटक लगाने पर भी रोक लगा दी. इस वजह से इस डैम में आज तक न फाटक लग सका और ना ही जल भंडारण हुआ. परियोजना कागजों में ही दम तोड़ रही है और किसानों की फसलें खेतों में.
मसला विधानसभा में भी उठा था
कुटुंबा से जदयू के विधायक ललन भुइंया का पूरा क्षेत्र उतर कोयल परियोजना के प्रभाव क्षेत्र का हिस्सा है. श्री भुइंया के मुताबिक, उनके पांच साल के कार्यकाल में उतर कोयल परियोजना के लिए उन्होंने सदन में कई बार सवाल उठाया. मुख्यमंत्री से मिल कर भी उन्होंने इस मामले में आग्रह किया था. शून्य काल से लेकर प्रश्नोत्तर काल तक में अपनी बातें रखने की कोशिश की.
नरेंद्र मोदी के सामने भी उठा है मुद्दा
उत्तर कोयल नहर परियोजना का मामला पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान गया आये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंच पर भी उठा था. सांसद सुशील कुमार सिंह ने यह मुद्दा उठाया था.
वैसे, हाल में केंद्रीय वन व पर्यावरण मंत्रलय ने थोड़ी सक्रियता जरूर दिखायी है, पर किसानों के खेतों में जब तक पानी नहीं पहुंचता, उन्हें क्या फायदा?

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