प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष लड़ रहे राजद से चुनाव

पटना : महागंठबंधन में सीटों के बंटवारे को लेकर सामान्य कांग्रेसी भौचक है़ आजादी के बाद से पहली बार ऐसा अवसर आया है जब कांग्रेस के प्रत्याशी 203 सीटों पर कहीं नहीं हैं. महागंठबंधन में कांग्रेस के हिस्से में महज 41 सीटें आयी हैं. जो सीटे कांग्रेस के खाते में आयी है, उनमें भी 13 […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 26, 2015 6:20 AM
पटना : महागंठबंधन में सीटों के बंटवारे को लेकर सामान्य कांग्रेसी भौचक है़ आजादी के बाद से पहली बार ऐसा अवसर आया है जब कांग्रेस के प्रत्याशी 203 सीटों पर कहीं नहीं हैं. महागंठबंधन में कांग्रेस के हिस्से में महज 41 सीटें आयी हैं. जो सीटे कांग्रेस के खाते में आयी है, उनमें भी 13 जिलों में पार्टी के खाते में एक भी सीट नहीं है.
यहां पर कांग्रेसी सहयोगी की भूमिका में हैं. यह भी पहला अवसर है, जब प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष समीर कुमार महासेठ बिना इस्तीफा सौंपे मधुबनी से राजद के कैंडिडेट बना दिये गये हैं. अभी तक उनका आधिकारिक इस्तीफा पार्टी कार्यालय को प्राप्त नहीं हुआ है. कांग्रेस के लोग कुछ इस तरह से पार्टी का विश्लेषण कर रहे हैं.
पार्टी ने आखिर किस पैमाने पर 41 सीटों में से 10-10 सीट मुसलमान और अनुसूचित जाति के उम्मीदवारो को आवंटित कर दी. कांग्रेस के सामाजिक आधार माने जानेवाले मैथिल ब्राह्मणों को एक ही सीट मिली है. पार्टी ने पश्चिम चंपारण व कटिहार जिले में चार-चार सीटें ली, जबकि राज्य के 13 जिलों में एक भी सीट नहीं ले पायी. मुजफ्फरपुर, दरभंगा व सहरसा जैसे जिलों में सीटें क्यों नहीं ली गयी.
जिन जिलों में पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली है, उनमें सुपौल, मधेपुरा, सहरसा, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, सीवान, खगडिया, बांका, मुंगेर, लखीसराय, नालंदा, अरवल और जहानाबाद जिले शामिल हैं. आखिर इन जिलों में पार्टी किस मजबूरी में सीट नहीं ले सकीं. भोजपुर जिला के तरारी विधानसभा क्षेत्र में पार्टी को 1600 मत मिले थे वहां की सीट ले ली.
जबकि बड़हरा में पार्टी को छह हजार से अधिक मत मिले थे, उसे क्यों छोड़ दिया. भोरे में पार्टी ने उसी उम्मीदवार पर दावं लगाया, जिसने 2010 के चुनाव के चंद दिन पहले पार्टी में शामिल होकर टिकट लिया था. पराजय हाथ आयी तो पार्टी छोड़ दूसरे दल में चले गये. फिर जब चुनाव का समय आया तो वह कांग्रेस में शामिल हो गये और उन्हें टिकट दे दिया गया.

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