आरक्षण पर भाजपा के ‘मन की बात’ को मन से बाहर नहीं आने देंगे : लालू

पटना : राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने शुक्रवार को कहा कि आरक्षण को लेकर आरएसएस चीफ मोहन भागवत और भाजपा के मन की बात आखिरकार बाहर निकल ही गयी. अपने आवास पर उन्होंने आरक्षण के सवाल पर अपने ही अंदाज में हड़काते हुए कहा कि मोहन भागवत और भाजपा की मन की बात काे वह […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 26, 2015 6:52 AM
पटना : राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने शुक्रवार को कहा कि आरक्षण को लेकर आरएसएस चीफ मोहन भागवत और भाजपा के मन की बात आखिरकार बाहर निकल ही गयी. अपने आवास पर उन्होंने आरक्षण के सवाल पर अपने ही अंदाज में हड़काते हुए कहा कि मोहन भागवत और भाजपा की मन की बात काे वह बाहर नहीं निकलने देंगे. उनके मन की बात मन में ही रह जायेगी. मोहन भागवत ने शुक्रवार की आरक्षण पर कही अपनी बातों को एक बार फिर दोहराया है. इससे नाराज लालू ने कहा कि संविधान को बदलने की कोशिश की जा रही है.
आरएसएस संसद से ऊपर अपनी कमेटी चाहता है. यही कमेटी आरक्षण को लेकर नयी व्यवस्था देना चाहता है. उन्होंने भाजपा और आरएसएस को नसीहत देते हुए कहा कि मन की बात को जमीन पर उतार कर तो देखे, उसे जनता की ताकत का पता चल जायेगा. लालू ने कहा, बिढनी के खोते में हाथ डाल रहे हैं, चारो तरफ से डंक लगेगा. लालू ने कहा विधानसभा चुनाव में इसे वह मुद्दा बनायेंगे. उन्होंने कहा कि जनता बेवकूफ नहीं है कि आरएसएस और भाजपा की बातों को समझेगी नहीं. लालू ने कहा कि भाजपा मुकाबले में नहीं रह गयी है.
सोशल मीडिया पर जाितवाद के बारे में की टिप्पणी : राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद ने कहा है कि विकास का अर्थ फ्लाईओवर या गगनचुम्बी इमारतें ही नहीं बल्कि अंतिम पंक्ति के व्यक्ति का राष्ट्र निर्माण में योगदान करने में समर्थ होना होता है.
देश पूरे वेग से तभी बढ़ पाएगा जब सब साथ बढ़ेंगे. कुछ को पीछे छोड़कर बढ़ने से बेढ़ब, असमान विकास होगा जो कभी भी भरभरा कर बिखर जाएगा. शुक्रवार को लालू प्रसाद ने अपने फेसबुक व ट्वीटर के ताजा पोस्ट पर लिखा है कि अगर सदियों से चली आ रही जाति के आधार पर भेदभाव एवं ऊंच-नीच को मिटाना, वंचितों और उत्पीड़ितों को मुख्यधारा में लाना व जातिवाद को मिटाने के लिए प्रयास करना है.
अगर जातिवाद है तो ही राजद का जातिवाद बढ़ाने में हाथ माना जा सकता है. इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि हमारे शासनकाल से पहले पिछड़े और दलित किस सीमा तक जातिगत भेदभाव से व्यथित थे, कैसे समाज के हर पहलू पर उन्हें तिरस्कार और वैमनस्य का सामना करना पड़ता था.
मैंने उन्हें जगाने का काम किया, उन्हें उनके अधिकारों से अवगत करवाया और उन्हें बराबरी का एहसास करवाया. ताकि आत्मसम्मान और आत्मवश्विास के साथ समाज में अपना उपयुक्त स्थान बना सके. इन कदमों से केवल उन्ही को आपत्ति हो सकती है जिन्हे लोकतंत्र में एक बड़ी संख्या में दबे या हाशिये में पड़े रहने से निजी लाभ पहुंचता हो .

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