500 रैलियों के सहारे बिहार जीतने का प्लान,एनडीए की योजना का पूरा ब्लू प्रिंट

पटना : बिहार विधानसभा चुनाव में जदयू महागंठबंधन से कांटे की टक्कर का सामना कर रही बीजेपी अपने सहयोगी दलों के साथ मिलकर 500 से ज्यादा रैली करने के साथ धुंआधार प्रचार करने का फैसला किया है. अकेले पीएम नरेंद्र मोदी 20 से 22 बड़ी सभाओं को संबोधित करेंगे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अनुभवी प्रचारक होने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 27, 2015 2:03 PM

पटना : बिहार विधानसभा चुनाव में जदयू महागंठबंधन से कांटे की टक्कर का सामना कर रही बीजेपी अपने सहयोगी दलों के साथ मिलकर 500 से ज्यादा रैली करने के साथ धुंआधार प्रचार करने का फैसला किया है. अकेले पीएम नरेंद्र मोदी 20 से 22 बड़ी सभाओं को संबोधित करेंगे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अनुभवी प्रचारक होने के साथ-साथ बिहार चुनाव में एनडीए गठबंधन का चेहरा भी हैं. क्योंकि अभी तक एनडीए गठबंधन ने मुख्यमंत्री पद के लिए किसी का नाम आगे नहीं किया है. आयरलैंड और अमेरिका की यात्रा करने के बाद 29 सितंबर को भारत पहुंचने के दो दिन बाद मोदी चुनाव प्रचार में जुट जाएंगे.

हाल में हुए टाइम्स नाऊ सी वोटर सर्वे हो या और भी कोई ओपिनियन पोल बिहार में कांटे की टक्कर होने की उम्मीद है. दिल्ली विधानसभा में मिली हार के बाद बीजेपी किसी भी हाल में बिहार विधानसभा का चुनाव जीतना चाहती है. बिहार में जीत से सरकार को जीएसटी सहित बहुत सारे सुधार के अन्य एजेंडों को आगे ले जाने में मदद मिलेगी. मोदी के प्रति बिहार में काफी आकर्षण है. ऐसे में वे करीबी मुकाबले में एनडीए गठबंधन को बढ़त दिला सकते हैं. मोदी पहले ही बिहार में चार रैलियां कर चुके हैं. वह विदेश दौरे के बाद दो अक्टूबर को बांका में और चार अक्टूबर को लखीसराय में जनसभा को संबोधित करेंगे. इन दोनों क्षेत्रों में 12 अक्टूबर को पहले चरण में चुनाव होना है. भाजपा नेता अपने सहयोगी दलों लोजपा,रालोसपा और हम के नेताओं के साथ संयुक्त अभियान चलाएंगे.

सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक इन 500 रैलियों में राष्ट्रीय और प्रदेश स्तर के नेता शामिल होंगे. एनडीए के सूत्रों के मुताबिक नीतीश-लालू महागंठबंधन पिछड़ी जाति का कार्ड खेल रहा है. आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने हाल में आरक्षण की समीक्षा को लेकर जो बयान दिया था उसके बाद से दोनों दलों ने अपना अभियान इस दिशा में तेज कर दिया है. ऐसे में मोदी के अतिपिछ़ड़ा वर्ग से आने और विकास को लेकर उनके एजेंडे से उसके प्रभाव को कम करने का प्रयास किया जा रहा है. मंडल कमीशन के बाद बिहार में आरक्षण संवेदनशील मुद्दा रहा है और किसी भी तरह का जातिगत ध्रवीकरण भाजपा विरोधी गठबंधन के लिए मददगार साबित हो सकता है. लोकसभा चुनाव में प्रचंड जीत मिलने के बावजूद भाजपा बांका सीट नहीं जीत पायी. ऐसे में पार्टी इस क्षेत्र में जीत के लिए नई जमीन तैयार करने में लगी है. एनडीए और जदयू-राजद महागंठबंधन ने कुछ सीटों को छोड़कर लगभग सभी पर जातिगत समीकरण को ध्यान में रखते हुए अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर चुके हैं.

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