लालू 1990 के दौर जैसी जातीय गोलबंदी की काेशिश में जुटे

विष्ष्णु कुमार पटना : लालू प्रसाद यादव इस बार बिहार की राजनीति को 1990केदशक का मोड देने की कवायद करते नजर आ रहे हैं.उनकेचुनावी जनसभाओं,सोशल मीडियापर उनकीटिप्पणी और टिकट बंटवारे केफार्मूलेसे लालू बारंबारयह संदेश दे रहा हैकिमंडल केप्रतिउनकाभरोसा गहरा है और यह कमंडल की तुलना में उन्हेंएक बारपुन:बिहार की राजनीतिमें मीलोंकीबढत दे सकता है. लालू […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 28, 2015 12:08 PM

विष्ष्णु कुमार

पटना : लालू प्रसाद यादव इस बार बिहार की राजनीति को 1990केदशक का मोड देने की कवायद करते नजर आ रहे हैं.उनकेचुनावी जनसभाओं,सोशल मीडियापर उनकीटिप्पणी और टिकट बंटवारे केफार्मूलेसे लालू बारंबारयह संदेश दे रहा हैकिमंडल केप्रतिउनकाभरोसा गहरा है और यह कमंडल की तुलना में उन्हेंएक बारपुन:बिहार की राजनीतिमें मीलोंकीबढत दे सकता है. लालू के हावभाव से लग रहा है बैठे बिठाये आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण पर टिप्पणी कर उनकी मुंह मांगी मुराद पूरी कर दी है. लालू प्रसाद यादव ने आज सुबह एक ताजा ट्वीट किया है कि लालू नली गली में मिट जायेगा, पर मुठ्ठी पर अभिजात्यों का एजेंडा बहुसंख्यक बहुजनों पर लागू नहीं होने देगा.

अगडों बनाम पिछडों की लडाई

लालू ने शनिवार को अपने बेटे के चुनाव क्षेत्र राघोपुर से चुनावी अभियान का आगाज करते हुए भी इस चुनाव में साेशल इंजीनियरिंग पर जोर दिया और इसे अगडों व पिछडों की लडाई बताया. उन्होंने इसपूरेचुनाव को पिछडों के हक से जोड दिया है. लालू प्रसाद यादव ने अपने दल के 101 सीटों के टिकट बंटवारे में भी खुल कर जातीय कार्ड खेल करकई अहम राजनीतिक संकेत देने की कोशिश की है. लालू ने 101 टिकटों में मात्र चार सीटें ही अगडों को दिया है. इसमें एक ब्राहम्मण, एक कायस्थ व दो राजपूत उम्मीदवार हैं. लालू प्रसाद ने कभी अपने करीबी रहे शिवानंद तिवारी के बेटे को मंटू तिवारी के बेटे शाहपुर से और प्रभुनाथ सिंह के बतौर प्रतिनिधि रणधीर सिंह को छपरा से व केदरनाथ सिंहको बलियापुर से टिकटदियाहै.रणधीर सिंह प्रभुनाथ सिंह के बेटे हैं. लालूनेभूमिहारसमुदाय को कोई टिकटनहींदियाहै औरराजनीतिकविश्लेषक इसकेप्रतिकात्मक मायने तलाश रहे हैं. इसे मोकामा के बाहुबली विधायक अनंत सिंह को लेकर पिछले महीने उत्पन्न हुए विवाद से जोड कर देखा जा रहा है, जिसके बाद लालू ने खुले तौर पर मंच से कहा था कि उन्होंने ही अनंत के खिलाफ कार्रवाई करवायी है. राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि लालू को लगता है उनके इस कदम से उनके पक्ष में जबरदस्त जातीय व वर्गीय गोलबंदी होगी और उन्हें इसका चुनावी लाभ होगा. शायद इसीलिए लालू ने दो दिन पहले ट्वीट किया था : आरएसएस का एजेंडा साफ है 10 प्रतिशत स्वजातीय, अभिजात्य हिंदुओं के हित के लिए 90 प्रतिशत पिछडे, दलित, गरीब और उत्पीडित हिंदुओं की हकमारी कर उनका शोषण करें.

क्या बहुसंख्यकवाद का जवाब होगा बहुजनवाद?

लालू प्रसाद ने इस बार अपनी राजनीतिक शब्दावली में बहुजन शब्द जोड लिया है. जिस पर पहले मायावती अपना एकाधिकार मानती रहीं हैं. हालांकि बाद में जनाधार में छिजन आने पर उनकी राजनीति का बहुजन से सर्वजन की ओर पलायन हुआ. तो क्या, जिस बहुजनवाद से एक कालखंड के बाद मायावती का राजनीतिक हित नहीं सधा, वह लालू प्रसाद यादव की राजनीति को दशद डेढ दशक बाद नया कलेवर नया तेवर दे सकता है? इस सवाल का जवाब तो चुनाव परिणाम आने के बाद ही मिलेगा. बहरहाल, लालू ने कथितरूप से बीजेपी की बहुसंख्यकवादी राजनीति के खिलाफ बहुजनवाद को तो अपना हथियार बना लिया है. अल्पसंख्यकवाद तो उनका चीर स्थायी राजनीतिक हथियार है ही.


लालू प्रसाद ने बनाया चुनावी कॉकटेल

लालू प्रसाद यादव ने एक अद्भुत चुनावी कॉकटेल इस बार के चुनाव में तैयार किया है. महागंठबंधन के नेता के तौर पर पूरे चुनाव अभियान की अगुवाई नीतीश कुमार कर रहे हैं, जो विकास, जातीय व सामाजिक संतुलन के लिए जाने जाते हैं. नीतीश ने अपने कोटे के टिकट बंटवारे में भी यह दिखाया है. वहीं, लालू प्रसाद एक ओर जहां चुनाव में वर्गीय ध्रुवीकरण का लाभ लेना चाह रहे हैं, वहीं वे नीतीश की विकास पुरुष वाली छवि का भी भरपूर दोहना करना चाहते हैं. शायद इसलिए उन्होंने पहले ही एलान कर दिया है कि अगर हमारी सीटें नीतीश से ज्यादा भी आती हैं, तो भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही बनेंगे.


पढिए लालू प्रसाद के ये दिलचस्प ट्वीट

Next Article

Exit mobile version