किसकी पकड़ ! चर्चा तो शुरू हुई, पर पूरी न हो सकी
पहुंचा, तो पता चला कि गया जाने वाली सवारी गाड़ी (संख्या63247) प्लेटफॉर्म पर लगी है. भीड़-भाड़ से बचते किसी तरह अंदर जा पहुंचा. पूरे डिब्बे में गंदगी का अंबार. सीट के नीचे मूंगफली के छिलके परत-दर-परत जमे हुए थे. ट्रेन पटना जंकशन पर अपने तय समय 9:30 बजे के बदले 20 मिनट लेट से खुली. […]
पहुंचा, तो पता चला कि गया जाने वाली सवारी गाड़ी (संख्या63247) प्लेटफॉर्म पर लगी है. भीड़-भाड़ से बचते किसी तरह अंदर जा पहुंचा. पूरे डिब्बे में गंदगी का अंबार. सीट के नीचे मूंगफली के छिलके परत-दर-परत जमे हुए थे. ट्रेन पटना जंकशन पर अपने तय समय 9:30 बजे के बदले 20 मिनट लेट से खुली. लेकिन, डिब्बे के भीतर इसे लेकर कोई हलचल नहीं. ट्रेन लेट पर चर्चा के दौरान एक व्यक्ति ने कहा, ज्यादा लेट नहीं है.
अपने बुजुर्ग पिता और बेटे के साथ सफर कर रहे एक 40 साल के श्याम लाल गुप्ता के बगल में मैने भी सीट का जुगाड़ कर लिया था. तीन सीट पीछे दो छात्रएं बैठी थीं, जो लगातार आपस में बात कर रही थीं. दोनों एक ही गांव की. संगीता और सोनी और पटना के एक महिला कॉलेज में पढ़ाई करती हैं. मखदुमपुर के नियाजीपुर की रहने वाली दोनों छात्रएं ट्रेन से आती-जाती हैं. बातचीत का बिंदू ट्रेन था, जिसने इन दोनों को सुदूर गांव से पढ़ाई के लिए पटना तक आने-जाने की राह आसान कर दी है.
मैंने जानबूझ कर मखदुमपुर की चर्चा छेड़ी. मखदुमपुर यानी जीतन राम मांझी का विधानसभा क्षेत्र. बगल में बैठे एक यात्री ने कहा, अगर केंद्र सरकार सोचती है कि मखदुमपुर में बेहतर सुविधा मुहैया करायी जाये तो यहां उसकी इच्छा आकार नहीं ले पायेगी, क्योंकि यह इलाका महागंठबंधन का है. यहां के लोग एकजुट होकर कभी योजनाओं को धरातल पर नहीं आने देते हैं.
तरेगना स्टेशन पर ट्रेन रुकी, तो भीड़ का एक रेला बोगी में चढ़ा. तीन लोगों के लिए बनी सीट पर एक-दूसरे को धकियाते पांच लोग बैठ गये. मेरे बगल में बैठा युवक प्राइवेट टीचर है, गया के एक प्राइवेट स्कूल में. अंदर की पीड़ा बाहर आयी -मैं बीए, एमए और बीएड हूं, लेकिन मुङो सरकारी नौकरी नहीं मिली. जबकि मुझसे कम मेरिट वाले लोग जहानाबाद प्रखंड में सरकारी टीचर की नौकरी कर रहे हैं. उसे यह नौकरी अखबार में छपे विज्ञापन के माध्यम से मिली. वह बताता है कि अब तक बिहार में जितनी भी सरकारें बनी बेरोजगारी को खत्म करने या कम करने का किसी ने भी सही ढंग से प्रयास नहीं किया. राज्य में बेरोजगारों की बहुत बड़ी फौज है. वह शिक्षा व्यवस्था को कोसते हुए यह बताना नहीं भूलता कि स्कूलों में बिना योग्यता के शिक्षकों को बहाल कर लिया गया है. सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता एकदम खराब हो गयी है.
ट्रेन नदवा स्टेशन से खुलती है. बोगी में अब विधानसभा चुनाव को लेकर बहस शुरू हो चुकी है. सामने की सीट पर बैठे संतोष कहते हैं – चुाव की बात क्या पूछ रहे हैं. यहां तो जाति की राजनीति चरम पर है. यहां तो महागंठबंधन की सरकार बन सकती है.
महागंठबंधन का नाम सुनते ही रमेश कुमार ने हस्तक्षेप किया. बोले – जिस तरह लोकसभा में बिहार में जीत मिली, उसी तरह विधानसभा में भी मिलेगी. रमेश एनएन कॉलेज पटना से क्लर्कके पद से सेवानिवृत हुए हैं. टेहटा स्टेशन तक दोनों यात्री नरेंद्र मोदी व नीतीश कुमार की तारीफ व हार-जीत का आकलन करने में लगे रहे.
फिर मैने पूछा इलाके में किसकी पकड़ मजबूत है? संतोष और रमेश ने मुड़कर कहा, यहां लोग विकास पर नहीं जाति के आधार पर वोट देते हैं. फिर एक साथ कई यात्री हंसने लगे. उनकी हंसी में एक तरह की लाचारी का भी भाव था. ट्रेन मखदुमपुर स्टेशन पहुंच गयी, लेकिन जवाब अधूरा रह गया.