अब तक आपने पढ़ी राजनीति में लंबे समय से सक्रिय नेताओं से बातचीत. आज पढ़िए युवा नेता और लोजपा संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष चिराग पासवान से बातचीत, जो करीब दो साल पहले ही राजनीति में सक्रिय हुए हैं. उनसे बातचीत की है राजेंद्र तिवारी और मिथिलेश ने.
मौजूदा परिदृश्य हमारे पक्ष में
इस गंठबंधन के साथ हूं. इसलिए मैं ऐसा नहीं कह रहा हूं. मेरा विश्वास है. जितने गांवों में गया, देखा कि एनडीए के साथ लोगों का लगाव, जुड़ाव बढ़ता ही जा रहा है. कहा जाता है कि बिहार की राजनीति जातीय समीकरण पर आधारित है. विपक्ष इस बार जाति को आधार बनाना चाह रहा है. अगड़ा-पिछड़ा कार्ड खेल रहा है. लेकिन पहली बार पिछले लोकसभा चुनाव में जाति का यह मिथ टूटा . विधानसभा के चुनाव में भी यही लहर है.
विकास पर जाति हावी
बड़ी विनम्रता से कबूलना होगा कि देश भर में जातीयता का बोलबाला है. अंतर यह है कि दूसरी जगहों पर विकास ज्यादा हावी हो जाता है. पर हमारे यहां विकास पर जातीयता हावी है.
मुङो लगता है कि महागंठबंधन के नेता डर रहे हैं. इसलिए विकास की जगह जातीयता की बात कर रहे हैं. लालू प्रसाद ने बैकवर्ड और फारवर्ड का नारा दिया है. हमलोग अड़े हैं. व्यक्तिगत तौर पर मैं जातिवादी राजनीति पर भरोसा नहीं करता. मेरी लड़ाई हर उस आदमी के लिए है जिसके पास पहनने के लिए कपड़ा नहीं, खाने के लिए अन्न नहीं है.
विकास की बात लालू भी करते हैं
42 साल कांग्रेस का शासन रहा. पंद्रह साल लालू और राबड़ी ने गद्दी संभाली. दस साल नीतीश कुमार ने शासन किया. 68 साल तक उन्हीं लोगों का राज रहा. फिर भी बिहार पिछड़ा है. जिस तरह से दिल्ली, मुंबई चमक रहा है, बिहार नहीं चमक पाया तो इसके लिए कौन जिम्मेवार है. आज फिर वह विकास की बात किस प्रकार करते हैं. अरे, जब आपका शासन था तो किया नहीं.
परिवारवाद की देन, पर टैलेंट भी
आपने सही कहा मैं उसी परिवारवाद की देन हूं. पर, मैं व्यक्तिगत तौर पर वंशवाद और परिवारवाद पर विश्वास नहीं करता. आपकी क्षमता को प्रोत्साहन इसलिए नहीं मिलना चाहिए कि आप किसी राजनीतिक परिवार से आते हैं. मैं इस बात को नकारता हूं. यदि आपमें क्षमता है, टैलेंट है, पोटेंशियल है तो आपको डेफिनेटली आगे आने का मौका मिलना ही चाहिए.
किसी परिवार से आना या बड़े राजनेता का पुत्र होना आपके लिए सौभाग्य हो सकता है, काबिलियत नहीं. सौभाग्य से आपको चुनाव लड़ने का मौका मिल सकता है, लेकिन चुनाव जीतने के लिए आपके अंदर काबिलियत होनी चाहिए. आज हम सब पब्लिक डोमेन पर खड़े हैं. राजनीतिक परिवार से आना ही बड़ा नेता बनने का क्र ाइटेरिया होता, तो आज जितने भी बड़े नेता हैं, राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री, सबके बच्चे बड़े नेता होते. विपरीत माहौल में मैं चुनाव जीत गया इसके लिए थोड़ा क्र ेडिट मैं खुद को भी देना चाहूंगा.
परिवारवाद से मुक्ति कैसे
मुक्ति शब्द का इस्तेमाल मैं नहीं करना चाहता. यदि आपके परिवार का सदस्य है और काबिलियत हो तो उसे चुनाव लड़ना ही चाहिए. जब मेरी भी चुनाव लड़ने की बात थी, मैने किसी का हक नहीं मारा. जमुई गया, वहां लोजपा कभी चुनाव नहीं लड़ी थी. मैंने किसी का हक नहीं छीना. मैने किसी की दावेदारी नहीं काटी. मैंने अपने लिए नया क्षेत्र बनाया. परिवार वाद को डिसकेरेज करने की जरूरत नहीं है. इसे छोड़ दें जनता के उपर. यदि आपमें काबिलियत नहीं होगी जनता नकारेगी.
मांझी से कोई खतरा नहीं
मुङो ऐसा बिलकुल भी नहीं लगता. मांझी हम लोगों के लिए परिवार के सदस्य हैं. पासवान का अपना 46 साल का राजनीतिक इतिहास है. दो-दो बार रिकार्ड वोट से चुनाव जीते हैं. गिनीज बुक में उनका नाम दर्ज है. नौ बार सांसद चुने गये, छह-छह पूर्व प्रधानमंत्री के साथ काम किया है. मुङो नहीं लगता कि किसी भी दूसरे नेता के आने से इनकी छवि पर इनकी नुकसान पहुंचेगा. मांझी जी से हमारे गंठबंधन को मजबूती मिली है.
जाति से हटकर युवाओं को नेतृत्व
मैं गर्व से कहता हूं कि मैं बिहारी हूं और उतना ही कि दलित भी हूं. दलित होना कोई अपराध या शर्म की बात नहीं है. मेरे लिए गौरव की बात बन जाती है जब मैं कहीं न कहीं दलित वर्ग के युवाओं के लिए रोल मॉडल बन जाउं. मैं जिस वर्ग से आता हूं, उसका प्रतिनिधित्व करता रहूंगा. साठ प्रतिशत युवा हैं. यदि युवाओं को भी जाति में बांटा जाये तो यह गलत होगा. हम सबका संघर्ष एक है.
पांच- दस साल बाद भविष्य
मैं डिप्लोमेट होकर जवाब दे रहा हूं. मैं संतुष्ट हूं, जिस लक्ष्य के लिए आया, उसे पूरा होता देखना चाहता हूं. एक सर्वे आया जिसमें सबसे ज्यादा युवा नेता के तौर पर मेरा नाम सामने आया है.
उसमें सबसे अधिक 18 प्रतिशत लोगों ने पसंद किया था. पांच साल में 58 और दस साल में 88 प्रतिशत इसे देखना चाहूंगा. मैने करीब से देखा है कि दूसरे प्रदेशों में बिहारियों के साथ अपमान किया जाता है. उन पर लाठियां बरसायी जाती है. उन्हें गालियां दी जाती हैं. इसके बावजूद राज्य सरकार खामोश है. यही कारण है राजनीति में मेरे आने का.
मुङो बिहार का खोया हुआ सम्मान दिलाने की लड़ाई लड़नी है. बिहार के लड़के दूसरे राज्य में क्यों जाते हैं, रोजगार के लिए. बिहार में ही युवाओं को शिक्षा व रोजगार तथा बुजुर्गो को स्वास्थ्य सुविधा मिले. हमारे युवा खिलाड़ियों को अपने ही प्रदेश में इनडोर-आडटडोर स्टेडियम की सुविधा चाहिए. यह वायदा है मेरा बिहार के युवाओं से. इसके लिए जितनी भी मेहनत करनी हो करेंगे. मुङो गर्व महसूस होता है कि मैं बिहारी हूं. सत्त्ता में रहूं या विपक्ष में.
नेहरु से शासन नीति की सीख
मैं बहुत ईमानदारी से पिता के आगे कुछ नहीं देखता. व्यक्तिगत या राजनीतिक तौर पर चिराग जो भी है, अपने पिता के बल पर है. किताबें पढ़ने का बहुत ज्यादा शौक नहीं. ईमानदारी से कहता हूं. मैं गूगल करता हूं. सुषमा स्वराज कम शब्दों में अपनी बातें रख देती हैं, मैं उनसे प्रभावित हूं. मैं नेहरू से प्रभावित रहा, क्योंकि आजादी के तुरंत बाद बिना किसी सुविधा व अतीत के अनुभव के उन्होंने एक प्रधानमंत्री के रूप में देश के विकास के लिए काम किया.
गांधी जी से धैर्य सीखा. लिंकन से भी बहुत कुछ सीखा. आंबेडकर साहब की दूरदृष्टि से सीखा. उन्होंने समझा था कि पचास साल बाद क्या समस्या होगी. उसका समाधान निकालने की कला हमने उन्हीं से सीखी. मायावती जी ने कैसे संगठन खड़ा किया, इससे भी सीखा. मैंने लालू जी से सीखा. जंगल राज का तमगा के बावजूद कैसे जेल जाने के बाद भी विपरीत परिस्थितियों में पंद्रह साल उन्होंने शासन चलाया. गूगल पर पढ़ता रहता हूं.
आरक्षण में बदलाव की जरूरत नहीं
आरएसएस स्वतंत्र संगठन है, अपने विचारों का रखने का. जहां तक लोजपा की बात है, हमारी पार्टी की आइडियोलॉजी है. आरक्षण को लेकर रामविलास पासवान की अपनी भूमिका रही. मंडल आयोग का वह दौर था. 1989 में वीपी सिंह प्रधानमंत्री थे. इस वक्त उनकी आरक्षण निर्धारण में अहम भूमिका थी. संविधान ने एससी, एसटी और ओबीसी को आरक्षण का हक दिया है
लोजपा को नहीं लगता कि इसमें चर्चा या बदलाव की जरूरत है. जब किसी पिछड़ी व अनुसूचित जाति और जन जाति के उत्थान की बात करते हैं, तो इसके पहले उसे सामाजिक न्याय की कसौटी में देखना होगा. आर्थिक आरक्षण तभी संभव है, जब उसे आप सामाजिक न्याय दिला पायेंगे. आरक्षण का दो ही पैमाना है-सामाजिक और आर्थिक. आंबेडकर साहेब ने इसकी चर्चा की तो उन्होंने भी इसे वर्षों में सीमित करना चाहा था. आज भी वह वर्ग सम्मान की लड़ाई लड़ ही रहा है. जब तक सामाजिक समानता नहीं आयेगी, आर्थिक समानता दूर की बात है. इसके लिए को लंबा संघर्ष करना होगा.
एनडीए ही जीतेगा, क्योंकि..
1. सबसे बड़ा हमारा एजेंडा.
2. पीएम पर जनता का विश्वास. मोदी फैक्टर लोकसभा में भी रहा. विधानसभा में भी दिखेगा.
3. मेरे नेता रामविलास पासवान. सबको साथ लेकर चलने की क्षमता का लाभ एनडीए को मिलेगा.
4. एनडीए की एकजूटता. जीतन राम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा और रामविलास पासवान सब एक साथ.
5. एनडीए का हर एक कार्यकर्ता, जो ईमानदारी से काम कर रहा. हर पार्टी, हर पदाधिकारी हमारे गंठबंधन का कार्य कर रहा है.