एनडीए को मिलेगा दो तिहाई बहुमत
भाजपा के बिहार विधानसभा चुनाव प्रभारी अनंत कुमार का दावा है कि एनडीए को दो तिहाई बहुमत मिलेगा और जदयू और राजद खात्मे की तरफ बढ़ जायेंगे. उन्होंने कहा कि बिहार की जनता ने तय कर लिया है कि उसे तेज रफ्तार वाला विकास चाहिए. उनसे बातचीत की राजेंद्र तिवारी और मिथिलेश ने. बिहार का […]
भाजपा के बिहार विधानसभा चुनाव प्रभारी अनंत कुमार का दावा है कि एनडीए को दो तिहाई बहुमत मिलेगा और जदयू और राजद खात्मे की तरफ बढ़ जायेंगे. उन्होंने कहा कि बिहार की जनता ने तय कर लिया है कि उसे तेज रफ्तार वाला विकास चाहिए. उनसे बातचीत की राजेंद्र तिवारी और मिथिलेश ने.
बिहार का चुनाव महासंघर्ष
मेरा पचीस साल का चुनावी नाता रहा है. हम कह सकते हैं कि हम सापेक्ष रहे, निरपेक्ष नहीं रहे. मैं इतना कहता हूं कि इस बार का बिहार का चुनाव संघर्ष नहीं, महासंघर्ष है. 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद दुनिया भर में विचारों का महामंथन चल रहा है. कुदरत ने भी इस महामंथन के लिए बिहार को चुना है. बिहार राजनीतिक प्रबुद्धता वाला प्रदेश है.
यहां के मतदाता चाहे गरीब हों या गांव के हों, दूसरे राज्यों की तुलना में बहुत ही गंभीर हैं. स्पष्ट रूप से अपनी बातों को रखते हैं. मैं मानता हूं कि बिहार के इस चुनावी संघर्ष में भाजपा और एनडीए के कार्यकर्ताओं को भी सीखने को मिल रहा है. इट्स ए ग्रेट एजुकेशन.
हमारा मुद्दा विकास ही है
मैं इसे दूसरे नजरिये से देख रहा हूं. भाजपा और प्रधानमंत्री के कैंपेन में सवा लाख करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा की गयी. इसके साथ ही बिहार संवाद एक जगह है. यानि एनडीए के साथ विकास की बातें हैं. दूसरी जगह (महागंठबंधन) जुबान पर शैतान चढ़ जाता है. बिहार की जनता को आज कंट्रास्ट देखने को मिल रहा है. मुङो बड़ा पिक्चर दिख रहा है.
जनता के सामने कंपेरेटिव और नैरेटिव सब कुछ है. मैं नही मानता कि आरक्षण और जाति के मामले में विकास की बातें दब गयी हैं. आधे स्क्रीन पर विकास की बातें चल रही हैं. आधे में शैतान की जुबान चल रही. जनता इसे समझ रही है. नीतीश कुमार मौन हैं. लालू प्रसाद के बयानों को सपोर्ट नहीं करते, तो कम-से-कम उसका खंडन तो करना चाहिए. वह मजबूरी में हैं. वोट के लालच में वह चुप हैं. निराश और हताश हो चुके हैं.
आरक्षण खत्म नहीं होगा
आरक्षण के मसले पर भाजपा और आरएसएस ने साफ कर दिया है कि वह मौजूदा आरक्षण के बदलाव के पक्ष में नहीं है. संविधान के हिसाब से जो आरक्षण अनुसूचित जाति व जन जाति, पिछड़ा, अति पिछड़ा वर्ग को मिल रहा है, उसकी कोई समीक्षा नहीं होगी. जैसे है, जारी रहेगा. नीतीश कुमार और लालू प्रसाद कितना भी भ्रम फैलायें, इसका जनमानस पर असर नहीं पड़ने वाला. लालू प्रसाद और नीतीश कुमार को 1990 के बराबर सब दिख रहा है. जमाना नब्बे का नहीं, बल्कि 2015 का आ गया है. दोनों काल में जमीन-आसामान का फर्क है. अभी टेक्नोलॉजी आगे बढ़ चुकी है. गरीब आदमी भी, गांव में रहने वाला भी मोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक आइटम, सोशल और प्रिंट मीडिया से चौबीस घंटे कनेक्टेड है.
नब्बे में चौबीस घंटे में एक घंटा इन माध्यमों से अधिकतम कनेक्शन होता था.अब वह विकास के बारे में खुद के प्रदेश में और अगल- बगल के प्रदेशों का हाल भी जान रहा है. झारखंड, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान अब बीमारू प्रदेश नहीं रहे. अब सुचारू राज्य बन गये. लेकिन, बिहार अभी भी बीमारू राज्य बना हुआ है. कारण क्या है? नीतीश कुमार के प्रति आक्रोश दो कारणों से है. पहला, वह जंगलराज वाली पार्टी से जुड़ गये. दूसरा, जिस विश्वास का प्रतिनिधित्व वह कर रहे थे, सभी को उन्होंने तिलांजलि दे दी. डॉ राम मनोहर लोहिया और लोकनायक जयप्रकाश नारायण का नाम लेते हैं, उनकी विचारधारा को खत्म कर दिया. नीतीश की क्रेडिबिलिटी खत्म हो गयी.
जाति गणित के मिथ का विस्फोट
देखिए, यह जाति गणित का जो मिथ है, इसका विस्फोट इस चुनाव में होने वाला है. नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यह सोचते हैं कि जाति का गणित सफल होगा. लेकिन, यह गणित जाति का नहीं, केमेस्ट्री है सुशासन का और फिजिक्स है विकास का. बिहार में 57 प्रतिशत वोटर चालीस की उम्र से कम के हैं. इसका मतलब यह हुआ कि 11 करोड़ लोगों में 6.9 करोड़ की उम्र चालीस वर्ष से कम है. युवा जाति की सोच नहीं रखते. वह बदलाव के लिए वोट करने वाला है. नरेंद्र मोदी को युवा वर्ग का वोट मिलेगा. बेंगलुरु में पांच लाख से अधिक बिहारी हैं.
रविवार को उन सबने एक सम्मेलन किया, जिसमें बिहार के चुनाव में भाजपा और एनडीए को विजयी बनाने के लिए अपने विचार रखे. जो बिहारी भद्रलोक इकट्ठा हुआ, उन सबका एक ही नारा था, परिवर्तन चाहिए बिहार में, लालू प्रसाद नहीं चाहिए. केंद्र से तालमेल कर चलने वाली सरकार चाहिए. पहली बार सवा लाख करोड़ का पैकेज बिहार के लिए घोषित हआ. यह इम्पलीमेंट हो, यह मुद्दा है. बिहार में 250 मेगावाट बिजली उत्पादन है. मध्यप्रदेश में 18 हजार मेगावाट बिजली का उत्पादन होता है. मैं जब भी महात्मा गांधी सेतु को पार करता हूं, देखता रह जाता हूं. कर्नाटक में जितनी भी नदियां हैं, किसी की भी चौड़ाई एक से दो फर्लांग से अधिक नहीं है. यहां गंगा नदी की चौड़ाई छह किलोमीटर से अधिक है. प्रचुर पानी और उर्वर भूमि है. तब बिहार पीछे कैसे रह जाता है.
एनडीए सर्व समावेश ग्रुप
हमने सोचा कि बिहार के चुनाव में उतरना चाहिए. तो सर्व समावेश वाले ग्रुप को तैयार करना जरूरी था. जब प्रधानमंत्री ने बताया कि सबका साथ-सबका विकास के नारे के साथ हम चलेंगे, तो इसमें दलित, महादलित,पिछड़ा, अति पिछड़ा इन सबके लिए हम काम करेंगे, ऐसी सोच बनी. प्राथमिकता में रख कर भाजपा ने यह गंठबंधन बनाया.
कार्यकर्ता एकजुट
बिहार में 243 सीटें हैं. उनमें 83 सीटें गंठबंधन के सहयोगी दलों को दिया गया है. हमारे पास 160 सीटें रह गयी है. 160 सीटों पर कम से कम तीन हजार से अधिक काबिल टिकटार्थी थे. तीन हजार में एक सौ साठ का चयन करना था. इसमें थोड़ा मनमुटाव तो होता है. जब भी ऐसे बयानों को सुनता हूं, तो लगता है कि यह आउटब्रस्ट है.
भागलपुर में बागी
मैं व्यक्तिगत केस पर चर्चा नहीं करता. निचले स्तर पर कार्यकर्ता एकजुट हों, यह बड़ा पिक्चर हमारा कार्यकर्ता देख रहा है. गिने-चुने प्रत्याशियों की जगह दूर की कामयाबी हासिल करना है, यही हमारे कार्यकर्ता का लक्ष्य है. भाजपा पूर्ण बहुमत के साथ जीत हासिल करेगी और एनडीए को दो तिहाई बहुमत मिलेगा. यही हमारा लक्ष्य है.
रणनीति के तहत नाम नहीं
यह दो बड़े पिक्चर नरेंद्र मोदी और अमित शाह के साथ प्रदेश नेतृत्व का चीज है. अटल जी के जमाने में भी भाजपा अटल जी और आडवाणी जी की तसवीरें लगाती थी. मैं सिर्फ बिहार की चर्चा नहीं करता. गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में भी हम अटल जी की तसवीर के साथ चुनाव मैदान में जाते रहे हैं. लीडर या सीएम के नाम की घोषणा नहीं करना रणनीति के तहत है. झारखंड, जम्मू-कश्मीर, मध्यप्रदेश और राजस्थान में हमने नाम की घोषणा की. जब हम सेतु (चुनाव परिणाम) पर पहुंचेंगे तो पार कर ही जायेंगे. भाजपा और एनडीए इस चुनाव में अप्रत्याशित जीत हासिल करने जा रही है. राजद और जदयू को हारने के बाद भी उम्मीद से बहुत कम सीटें मिलने वाली है.
लोकसभा चुनाव में भी भाजपा की क्लीयर जीत नहीं बताया रहा था. एनडीए 316 को पार करेगा, यह भी किसी ने नहीं सोचा था. कांग्रेस सौ के नीचे चली जायेगी, यह भी कोई नहीं सोचा था. जहां तक दिल्ली चुनाव की बात है तो उसका परिदृश्य अपनी जगह पर है. बिहार का चुनाव अलग परिस्थितियों में हो रहा है. दिल्ली में जो जीते, उन्होंने बिहार आने की बात कही थी, वह आये क्या? दिल्ली के बाद मध्य प्रदेश और बेंगलुरु के चुनाव में सभी सीटें हमने जीती.
राजद-जदयू खात्मे की ओर बढ़ेंगे
इस चुनाव के बाद राजद और जदयू का अस्तित्व खत्म हो जायेगा. वे दोनों जरूर हारेंगे. वे अभी कांग्रेस की शरण में हैं और कांग्रेस कैसे रिवाइव करेगी? मैं पचीस साल से लोकसभा का सदस्य हूं. जनता दल का मैंने 1996 का रूप देखा है. आज कहां हैं लालू प्रसाद? आज जिस रूप में लालू प्रसाद खड़े हैं, उसे प्रेजेंस (मौजूदगी ) कहेंगे, तो हमें कुछ नहीं कहना. अस्तित्व के आखिरी छोर पर हैं लालू प्रसाद.
एनडीए जीतेगा, क्योंकि..
1. नरेंद्र मोदी के पंद्रह महीने का शासन काल सामने. आम आदमी उत्साहित व युवाओं को भरोसा है.
2. बिहार की जनता मान चुकी कि रफ्तार से विकास के लिए केंद्र के साथ चलनेवाली सरकार चाहिए.
3. लोग जाति के चक्कर में नहीं पड़ने वाले. वे वोट करेंगे बिहार के लिए.
4. एनडीए में बिहार का पूरा सामाजिक परिवेश. सोशल मैट्रिक्स की नजर में हमारा गंठबंधन फिट.
5. राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का माइक्रो मैनेजमेंट. सभी 68 हजार बूथों पर कार्यकर्ता नियुक्त. 243 रथों के जरिये 45 हजार सभाएं आयोजित.