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भाजपा व सहयोगियों को मौका देने का वोटरों ने बनाया मन
बिहार भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी दावा है कि राज्य के लोगों ने भाजपा और उसके सहयोगियों को मौका देने का मन बना लिया है. हर जगह इसकी झलक मिल रही है. लोग बदलाव चाहते हैं. उनसे बातचीतकी मिथिलेश ने. बिहार की जनता ने परिवर्तन का मन बना लिया है. […]
बिहार भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी दावा है कि राज्य के लोगों ने भाजपा और उसके सहयोगियों को मौका देने का मन बना लिया है. हर जगह इसकी झलक मिल रही है. लोग बदलाव चाहते हैं. उनसे बातचीतकी मिथिलेश ने.
बिहार की जनता ने परिवर्तन का मन बना लिया है. सारे मुद्दे गौण हो गये हैं. भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियों को एक मौका देने का मतदाताओं ने मन बना लिया है. केंद्र में जिस पार्टी की सरकार है, उसी पार्टी की सरकार प्रदेश में भी बने, यह बात सबके मन में है.
जनता समझ रही है कि बिहार में अच्छी सरकार बनी तो प्रदेश का बेहतर विकास होगा. नीतीश कुमार और लालू प्रसाद ने विकास के मुद्दे को डायवर्ट करने का प्रयास किया है. दो-ढाई महीने में कभी डीएनए तो कभी शब्द वापसी, कभी बिहारी स्वाभिमान, मंडल पार्ट-2, अगड़ा-पिछड़ा तो कभी गोमांस का मुद्दा उठा कर विकास के मुद्दे को भटकाने की उन लोगों ने कोशिश की है.
इनमें से एक भी मुद्दा भाजपा ने नहीं उठाया है. तमाम मुद्दे महागंठबंधन के नेताओं ने उठाये. वे चाहते हैं कि विकास के एजेंडे को रास्ते से भटका दिया जाये. उसकी जगह भावनात्मक मुद्दे उभारे जा रहे हैं. उनका एक भी मुद्दा क्लिक नहीं कर पाया. हमने लोगों से अपील की है कि सबको मौका मिला है, कांग्रेस को 35 साल, लालू प्रसाद को 15 साल और नीतीश कुमार को 10 साल शासन करने का मौका मिला.
इस बार मौका भाजपा को, एनडीए को मिलना चाहिए. लोगों ने केंद्र की सरकार और भाजपा शासित राज्यों की सरकारों के कामकाज को देखा है. यहां भी जब नीतीश कुमार मुख्यमंत्री थे, तब एनडीए सरकार के कामकाज को देखा. बाद में कांग्रेस और राजद समर्थित नीतीश कुमार की सरकार को भी देखा है. लोग दोनों के अंतर को महसूस कर रहे हैं.
नीतीश कुमार ने तीन गलितयां की है, जिसका खामियाजा बिहार की जनता और बिहार उठा रहा है. पहली गलती उन्होंने नरेंद्र मोदी के नाम पर एनडीए का गंठबंधन तोड़ दिया. इसकी सजा मतदाताओं ने लोकसभा के चुनाव में दे दी. इसके बाद भी उन्होंने सबक नहीं सीखा. दो और गलितयां की. दूसरा यह कि नीतीश कुमार ने अपनी सरकार बचाने के लिए लालू प्रसाद और कांग्रेस से हाथ मिला लिया. लोकसभा चुनाव तक उन्होंने ऐसा नहीं किया था.
जिनके खिलाफ जनादेश था, उन्हीं के साथ हो लिये. इस्तीफा देकर चुनाव में जाते और नया जनादेश लेकर अपनी सरकार बनाते. नीतीश कुमार की तीसरी गलती थी, जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री पद से हटा कर खुद सीएम बन जाना. उन्होंने वायदा किया था कि जनता जब जनादेश देगी, तभी मैं दोबारा मुख्यमंत्री बनूंगा. लेकिन, सत्ता के लोभ ने उन्हें ऐसा नहीं करने दिया. जैसे-जैसे जीतन राम मांझी की लोकप्रियता बढ़ती गयी, वह नाराज होते गये और अंत में उन्हें पद से हटा कर खुद सीएम बन बैठे. उनकी ये तीन गलितयां जनता को पूरी तरह याद है. इससे बिहार राजनीतिक अस्थिरता के दल-दल में फंस गया. बिहार का विकास बाधित हुआ. सबसे ज्यादा नुकसान बिहार की जनता का हुआ.
जहां तक राजनीतिक लाभ की बात है, तो निश्चित रूप से लोगों ने भाजपा की ओर सकारात्मक दृष्टि से देखा. कल तक भाजपा छोटे भाई की भूमिका में थी, अब हम बड़े भाई बन गये. हमको रोकने के लिए तमाम तरह के गंठबंधन किये गये. इससे बिहार का बड़ा नुकसान हुआ. एनडीए के शासन काल में प्रदेश का जितना तेजी से विकास हुआ, जिस रफतार से बिहार आगे बढ़ रहा था, उस पर ब्रेक लग गया और विकास की गति रुक गयी.
बिहार की नकारात्मक छवि पूरे देश के अंदर और बाहर भी दिखने लगी. अब बिहार के विकास की बात नहीं, बल्कि लालू प्रसाद के जंगल राज की चर्चा होने लगी है. एनडीए की सरकार जब तक बिहार में थी, देश-दुनिया में बिहार के विकास की चर्चा होती थी. जबसे लालू प्रसाद और कांग्रेस से नीतीश कुमार ने समर्थन लिया, तब से कोई भी पूंजी लगाने वाला नहीं आया.
विकास से मुददा कैसे भटक गया
जब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार को सवा लाख करोड़ का पैकेज दिया, तब से नीतीश कुमार लगातार प्रयास कर रहे हैं विकास के मुद्दे को भटकाने की. लेकिन, हम विकास के मुद्दों को भटकने नहीं देंगे. वह अपना हिसाब देने से डर रहे हैं. वह मिली-जुली सरकार का हिसाब दे रहे हैं.
भाजपा से अलग होने के बाद का हिसाब नहीं दे रहे हैं. ऐसा करने से उन्हें भय लग रहा है, पोल खुलने का डर सता रहा. चुनाव है विधानसभा का और हिसाब मांग रहे लोकसभा चुनाव का. यह तो वही बात हुई कि पढ़ रहे फिजिक्स और सवाल पूछा जा रहा केमेस्ट्री का. इनको अपना हिसाब देना चाहिए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि लोकसभा का जब चुनाव आयेगा, तो हम अपने कामकाज का हिसाब देंगे.
नीतीश कुमार ने पूरे चुनाव को जातिवाद, अगड़ा-पिछड़ा, सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के इर्द-गिर्द करने की कोशिश की है.नीतीश कुमार तो उसी दिन चुनाव हार गये थे जिस दिन उन्होंने सौ सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया. मजबूत सरकार के लिए गठबंधन में कोई एक दल धूरी बनता है. इस गंठबंधन में धूरी कौन है, यह सब जानते हैं. लालू प्रसाद ने अभी बयान दिया है कि मेरा बेटा आने वाले दिनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगा. लालू प्रसाद कभी छोटे भाई की भूमिका में नहीं रह सकते. लालू प्रसाद से हाथ मिलाकर नीतीश कुमार ने अपनी हार स्वीकार कर ली है.
जातिवादी राजनीति दुर्भाग्यपूर्ण
बिहार में जातिवादी राजनीति का खत्म नहीं होना दुर्भाग्यपूर्ण है. यह लोगों को आसान रास्ता दिखता है. नीतीश कुमार अब पूरी तरह लालू प्रसाद पर निर्भर हैं. वोट के लिए उनका अपना कोई जनाधार नहीं है. लालू प्रसाद का विकास से कोई लेना देना नहीं है. 15 साल तक जातिवाद को हवा देकर उन्होंने शासन किया. अब नब्बे का फार्मूला कारगर नहीं हो सकता.
लालू प्रसाद जिस गंठबंधन में होंगे, वह उसकी धूरी बन जायेंगे. इसलिए पिछले 10 दिनों से नीतीश कुमार हाशिए पर चले गये हैं. नीतीश कुमार पूरी तरह वोट के लिए लालू प्रसाद पर निर्भर हैं. वोटर तो जाति से ऊपर उठ कर वोट करते आते हैं.
प्रधानमंत्नी की अधिक रैली पर
बिहार से पहले भी प्रधानमंत्री ने दूसरे राज्यों के विधानसभा चुनावों में प्रचार किया है. महाराष्ट्र और झारखंड में ऐसा हुआ है. किसी पार्टी का सर्वोच्च नेता ज्यादा रैली करें, तो इसमें दूसरे को परेशानी क्यों है. नीतीश कुमार जब अपनी पार्टी और गंठबंधन के लिए 150 से अधिक सभाएं कर सकते हैं, तो भाजपा के सर्वोच्च नेता 15 से 20 रैलियां भी नहीं कर सकते?
नीतीश कुमार और लालू प्रसाद की आपत्ति किस बात पर हो रही है. कभी नरेंद्र मोदी ने अपमानजनक और अभद्र भाषा का प्रयोग नहीं किया है. लेकिन इश्यू को डायवर्ट करने के लिए, सवा लाख करोड़ के पैकेज का काई जवाब जब नहीं मिला, तो डीएनए का मुददा उठा लिया. पहले कहा करते थे, प्रधानमंत्री बिहार आ ही नहीं रहे हैं. आना शुरू किया तो कहने लगे बहुत आ रहे हैं. पहले के प्रधानमंत्री सात साल में एक या दो बार आये. यहां पार्टी तो सत्ता में आने की तैयारी कर रही है.
असंतुष्टों की गतिविधि पर
हर चुनाव में असंतुष्ट गतिविधि होती है. कुछ को टिकट मिलता है और कुछ का कट जाता है. जिन लोगों को टिकट नहीं मिला, उन्हें यदि पार्टी उम्मीदवार बनाती भी तो वे हार जाते. इसके बाद भी वे दूसरे दल में गये तो उन्हेंउम्मीदवार नहीं बनाया गया. वास्तव में पार्टी नहीं, जनता मन बनाती है. कुछ लोग तो सुबह गये और शाम में वापस भी हो लिये.
यह अलग बात है कि दो महीने बाद हम वापस आने वालों को पार्टी में शामिल करेंगे या नहीं? फिलहाल हम एकजुट होकर चुनाव लड़ रहे हैं और पार्टी
का लक्ष्य साफ है. यही वजह है कि दूसरे दलों की तुलना में हमारे यहां असंतुष्ट गमिविधियां न के बराबर हैं. सभी दलीय प्रतिबद्धता में बंधे हैं. पार्टी में सभी इसका सम्मान करना जानते हैं.
जीत के पांच आधार
1.सवा लाख करोड़ का पैकेज और इससे होने वाले विकास के काम से जनता खुश है.
2. जनता एक मौका भाजपा को देना चाहती है.
3. नीतीश कुमार के विश्वासघात से जनता के मन में उनके प्रति आक्र ोश है, इसका लाभ हमें मिलेगा.
4. बेहतर शासन और सामाजिक समरसता
5. नीतीश कुमार दो बार शासन कर चुके अब उन्हें तीसरा मौका क्यों मिले.
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