आइआइटी की चमक के बीच सुनाई देगी वोट की खनक
आइआइटी की चमक के बीच सुनाई देगी वोट की खनक क्या है बिहटा के मतदाताओं का रुझान रविशंकर उपाध्याय, बिहटा बिहटा नहीं ग्रेटर पटना कहिए साहब! जब बिहटा चाैक के चाय की दुकान पर हमने रमेश कुमार सिंह से बिहटा के बारे में पूछा, तो उन्होंने तपाक से यही रिप्लाय दिया. रमेश कहीं से गलत […]
आइआइटी की चमक के बीच सुनाई देगी वोट की खनक क्या है बिहटा के मतदाताओं का रुझान रविशंकर उपाध्याय, बिहटा बिहटा नहीं ग्रेटर पटना कहिए साहब! जब बिहटा चाैक के चाय की दुकान पर हमने रमेश कुमार सिंह से बिहटा के बारे में पूछा, तो उन्होंने तपाक से यही रिप्लाय दिया. रमेश कहीं से गलत नहीं था, चार कदम दूर चलने पर ही ग्रेटर पटना की शक्ल दिखाई देनी शुरू हो जाती है. चमकती सड़कें, रिबॉक-वुडलैंड समेत कई प्रमुख ब्रांडेड कंपनी के शो-रूम और रेस्टाेरेंट के साथ प्रमुख राष्ट्रीयकृत बैंकों की कतार. अाठ सालों में बिहटा की यह नई पहचान है. उसकी इस पहचान में आइआइटी का तमगा भी है और मेगा औद्योगिक पार्क, औद्योगिक क्षेत्र के साथ लैंड बैंक जैसी गर्व करने लायक योजनाएं भी हैं. इलाके में दर्जनों शैक्षणिक और रियल इस्टेट कंपनियों के प्रोजेक्ट चल रहे हैं. पटना से करीब 40 किलोमीटर दूर बिहटा में 2007 में सरकार ने कानून बनाकर औद्योगीकरण के नाम पर किसानों की 2700 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया, जिसके बाद यहां क्रांतिकारी बदलाव आए, राेजगार के मौके भी बढ़े. इस चमकते बिहटा में विधानसभा चुनाव के वोट के किस्से भी खूब हैं. हर जगह एक ही चर्चा है. आइआइटी की चमक के बीच वोट की खनक पाने के लिए नेता जी की कोशिशें जारी है. सबसे ज्यादा किसानों के वोट पर पार्टियों की नजर है. एक पक्ष दावा कर रहा है कि उन्हाेंने बिहटा के विकास के लिए इतना कुछ किया, वोट तो उन्हीं को मिलेगा. वहीं विरोधी गुट के अपने बोल हैं, जिसके मुताबिक किसान उनके पक्ष में गोलबंद हैं. इस दावे प्रतिदावे के बीच किसानों के पंद्रह हजार से ज्यादा वोट हॉट केक बन गए हैं. मुआवजे के झोल के बीच वोट के मुद्दे पर मुखर हुए किसानों के बोल :विकसित बिहटा के इस चमकती तसवीर के इतर एक स्याह पक्ष मुआवजे के मुद्दे पर फंसे हुए सैकड़ों किसान हैं. बिहटा में कुल तीन प्रोजेक्ट मेगा औद्योगिक पार्क, बिहटा औद्योगिक क्षेत्र और बिहटा लैंड बैंक के लिए लगभग 1100 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया गया था. सभी किसानों को भुगतान उनके मौजा के जमीन के न्यूनतम निबंधन दर यानी एमवीआर के मुताबिक करने का सरकार ने नियम बनाया, जबकि किसानों की मांग है कि उन्हें मुआवजा समान प्रोजेक्टर समान दर के तहत देना चाहिए. दिलावरपुर में दालान पर रणनीति बना रहे किसान श्रीधर शर्मा, बिंदेश्वर सिंह, गुड्डू सिंह आदि किसानों ने बताया कि दर्जनों धरना-प्रदर्शन हुए, हम सब मुख्यमंत्री से मिले, लेकिन हमें एक समान मुआवजा नहीं मिला. किसानों की मौत को निवर्तमान विधायक एक चैनल के डिबेट में झूठ करार देते हैं और हमारे प्रदर्शन को ड्रामा तक कह देते हैं. जिन किसानों की जमीन चली जाती है, उसका दर्द ये नेता नहीं समझ पाते हैं. इन्हें इस बार जवाब जरूर मिलेगा. राधारमण सिंह, कामेश्वर सिंह और बालेश्वर सिंह आगे जोड़ते हुए कहते हैं कि हमें नियमों के झोल में फंसाया जा रहा है. कहा गया कि एक साल के भीतर जिनकी प्रक्रिया पूरी हो गयी, उन्हीं को समान मुआवजा मिलेगा. अब सरकारी सिस्टम के दोष को हम किसान क्यों भुगतें? सवाल वाकई में बड़ा है जिसमें किसानों का सारा दर्द सिमटा हुआ है. \\\\B