सहष्णिुता व असंतोष को स्वीकार करने की प्रवृत्ति क्या खत्म हो रही है?

सहिष्णुता व असंतोष को स्वीकार करने की प्रवृत्ति क्या खत्म हो रही है? राष्ट्रपति ने पूछा सूरी (पश्चिम बंगाल) : राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने सोमवार को एक बार फिर देश में असहिष्णुता की बढ़ती प्रवृत्ति पर चिंता जतायी और कहा कि क्या देश में सहिष्णुता और असंतोष को स्वीकार करने की प्रवृत्ति समाप्त हो रही […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 19, 2015 11:12 PM

सहिष्णुता व असंतोष को स्वीकार करने की प्रवृत्ति क्या खत्म हो रही है? राष्ट्रपति ने पूछा सूरी (पश्चिम बंगाल) : राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने सोमवार को एक बार फिर देश में असहिष्णुता की बढ़ती प्रवृत्ति पर चिंता जतायी और कहा कि क्या देश में सहिष्णुता और असंतोष को स्वीकार करने की प्रवृत्ति समाप्त हो रही है? सहिष्णुता को राष्ट्रीय अखंडता का आधार बताते हुए मुखर्जी ने कहा, मानवता और बहुलवाद को किसी हालत में छोड़ा नहीं जाना चाहिए. अपनाना और आत्मसात करना भारतीय समाज की विशेषता है. हमारी सामूहिक क्षमता का उपयोग समाज में बुरी ताकतों के खिलाफ संघर्ष में किया जाना चाहिए. वह यहां एक स्थानीय साप्ताहिक अखबार नयाप्रजंमा द्वारा आयोजित कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे. मुखर्जी ने कहा कि हाल ही में मैं जार्डन, फलस्तीन और इस्राइल गया था. पश्चिम एशिया, जहां हर कोई जानता है कि अशांति है. मुझे जिस बात से हैरानी हुई, वह यह थी कि तीनों देशों के नेताओं और इन देशों के तीन विश्वविद्यालयों के छात्रों और शिक्षकों ने मुझसे एक ही सवाल पूछा कि भारत में इतने मजबूत राष्ट्रवाद के पीछे का मंत्र क्या है, जहां धर्म, जाति, भाषा और इसी तरह की कई विविधताएं हैं.” राष्ट्रपति ने कहा, मैं इस बात को लेकर निश्चित नहीं हूं कि उनलोगों ने ऐसा सवाल क्यों पूछा. शायद चल रही अशांति के कारण उन्होंने ऐसा किया. उन्होंने कहा, इस देश की राष्ट्रीय अखंडता का आधार सहिष्णुता है. मुखर्जी ने कहा, यहां भी लोगों के दिमाग में यह सवाल पैदा हुआ है. भारतीय सभ्यता और संस्कृति का आवश्यक भाग उसका बहुलवाद है. दूसरे के धर्म और दूसरे की राय को अपनाने के कारण हमारा जुड़ाव मजबूत है. उन्होंने वहां मौजूद लोगों को रामकृष्ण परमहंस की ‘जौतो मौत, तौतो पौथ’ की याद दिलायी, जिसका अर्थ है कि जितनी आस्थाएं, उतने ही रास्ते हैं. राष्ट्रपति ने कहा, भारतीय सभ्यता अपनी सहिष्णुता के दम पर 5000 वर्ष तक अपना अस्तित्व कायम रख सकी. इसने हमेशा असंतोष और मतभेद को स्वीकार किया है. बहुत-सी भाषाएं, 1600 बोलियां और सात धर्म भारत में एक साथ अपना अस्तित्व बनाये हुए हैं. हमारा एक संविधान है, जो इन सभी मतभेदों को स्थान देता है. किसी भी हालत में हम अपने बहुलवाद और सहिष्णुता को नष्ट नहीं कर सकते. हमें अपनी विविधता पर गर्व है, हम दूसरों के विचारों को स्वीकार करते हैं. राष्ट्रपति ने कहा, कई बार हमारे दिमाग में एक सवाल आता है..क्या हम सही मार्ग पर हैं? सहिष्णुता के बिना हमारी सभ्यता 5000 वर्ष तक अपना अस्तित्व कायम नहीं रख पाती. उल्लेखनीय है कि राष्ट्रपति की यह सख्त टिप्पणी देश के विभिन्न भागों में जारी असहिष्णुता की घटनाओं की पृष्ठभूमि में आयी है.

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