देखना भी तो कला ही है

देखना भी तो कला ही हैश्याम शर्माकला और परंपराओं का आपस में गहरा संबंध है. जब हम आगे बढ़ते हैं, तो हमारा एक पैर जमीन पर, दूसरा पैर आगे बढ़ता है. इसी क्रम से हम आगे बढ़ते हैं. जमीन पर पैर रखने की कला में अर्थ है, अपनी परंपराओं से जुड़ना. अपनी परंपराओं से हम […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 24, 2015 6:33 PM

देखना भी तो कला ही हैश्याम शर्माकला और परंपराओं का आपस में गहरा संबंध है. जब हम आगे बढ़ते हैं, तो हमारा एक पैर जमीन पर, दूसरा पैर आगे बढ़ता है. इसी क्रम से हम आगे बढ़ते हैं. जमीन पर पैर रखने की कला में अर्थ है, अपनी परंपराओं से जुड़ना. अपनी परंपराओं से हम सीखते हैं. यह जुड़ाव मानव का विश्व स्तर पर भी हो सकता है. चिंतन प्रयोगवादी हो या स्थूल-परंपरावादी वह कला चिंतन को प्रवाहमान बनाता है.आधुनिक समय का प्रतिभावान कलाकार पॉब्लो पिकासो भी परंपराओं से प्रभावित हुआ. उसने मैक्सिकन, अफ्रीकन मुखौटों से प्रभाव ग्रहण किया और नयी कला रचनाएं कीं. उसने मुखौटों पर उभरी रेखाओं का प्रभाव ग्रहण किया.एक बार महान कलाकार रूओल ने अपनी कलाकृतियों पर ब्राह्य प्रभाव पर बात करते हुए कलाकार देंगॉ से कला में बाह्य प्रभाव के बारे में पूछा. कला चिंतक-कलाकार देंगा ने कहा, क्या तुमने कभी कोई ऐसा आदमी देखा है जो बिना किसी बाह्य प्रभाव के स्वयं ही अपने प्रयास से पैदा हो गया हो? कलाकार देंगॉ का यह उत्तर कला में परंपराओं के महत्व को रेखांकित करता है.कला को देखने का अपना इतिहास है. देखना भी कला है. नयी सृजनात्मक कला पूरी परंपराओं को तोड़ती नहीं, बल्कि उसमें कुछ जोड़ कर नया सृजन करती है, कला धारा को और प्रवाहमान बनाती है. देखने के अंदाज को बदलती है. हम ऐसा बोल सकते हैं, पर एक जैसा देख नहीं सकते. सब अपने-अपने चाक्षुष-अनुभवों के आधार पर ही देखते हैं. एक गोला बच्चे के लिए एक गेंद, भूखे के लिए रोटी और प्रेमी के लिए चांद हो सकता है.भाषा की मर्यादा की तरह कला की भी मर्यादा है, परंतु कला-विकास के लिए कलाकार कला-सीमाओं में रह कर सीमा का अतिक्रमण करता है. परंपराएं कलाकार की प्रेरणाश्रोत हैं. उसी को ध्यान में रह कर कलाकार कुछ नया रचता जा सकता है और वहीं कला अपनी माटी से जुड़ी प्रतीत होती है.

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