खुल रहा है यादों का पिटारा

खुल रहा है यादों का पिटारालाइफ रिपोर्टर. पटनादिवाली यानी ढेर सारी खुशियां. हर तरह स्वच्छ व सुंदर माहौल. घर की साफ-सफाई और सफाई के दौरान खुलने वाला यादों का पिटारा. जी हां, हर दिवाली घर की सफाई के दौरान ऐसा वक्त जरूर आता है, जब हम अलमारी, दीवान या बक्सा साफ कर रहे होते हैं […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 24, 2015 7:04 PM

खुल रहा है यादों का पिटारालाइफ रिपोर्टर. पटनादिवाली यानी ढेर सारी खुशियां. हर तरह स्वच्छ व सुंदर माहौल. घर की साफ-सफाई और सफाई के दौरान खुलने वाला यादों का पिटारा. जी हां, हर दिवाली घर की सफाई के दौरान ऐसा वक्त जरूर आता है, जब हम अलमारी, दीवान या बक्सा साफ कर रहे होते हैं और हमारे हाथों ऐसी चीज लग जाती है, जो हमें सफाई से दूर यादों के झरोखे में ले जाती है. हम काम-धाम छोड़ कर बस उसी चीज को निहारने में लग जाते हैं. उस चीज से जुड़ी सारी बातें याद आ जाती है और दिमाग में शुरू हो जाती है एक ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म. यह फिल्म हमारे चेहरे पर कभी मुस्कुराहट लाती हैं, तो कभी आंखें नम करती है. असर कुछ भी हो, लेकिन सुकून बहुत मिलता है. शहर के लोगों के साथ इन दिनों ऐसा ही कुछ हो रहा है. सभी घर की सफाई के दौरान मिली चीजों को देख भावुक हुए जा रहे हैं. पुराने एलबम में खो गयी रीतायादें हर किसी के लिए खास होती हैं. ऐसे में जब हमें अचानक से यादों की पोटली हाथ लग जाये, तो हम खुद को उस समय में ले जाते हैं, जहां से हमारी यादें जुड़ी हुई रहती हैं. कुछ ऐसा ही हुआ बोरिंग रोड में रहने वाली रीता सिंह के साथ. घर पर दिवाली की सफाई शुरू होते ही उनके हाथ उनकी बचपन की तसवीरें लग गयीं. इस एलबम में कई ऐसे लोग हैं, जो अब इस दुनिया में नहीं रहे, बस एलबम में ही नजर आते हैं. पुरानी तसवीरों को देख रीता थोड़े देर के लिए इमोशनल हो जाती हैं और अपनी बेटी अंतरा को भी वह एलबम दिखाती हैं, जिसमें उनकी बचपन से लेकर शादी तक की तसवीर लगी हुई है. वे इसे प्यार से साफ करते हुए कहती हैं कि मेरे लिए यह एलबम बहुत खास है, क्योंकि इसमें मेरा बचपन, मेरा परिवार बसा हुआ है. मैं हर साल दिवाली में इसे साफ कर दोबारा इसे अपने घर की पुरानी पेटी में रख देती हूं. यह पेटी भी मेरे बाबू जी ने खरीदी थी, इसलिए पुरानी चीजों को इसी पुरानी पेटी में संभाल कर रखती हूं, जिसे दिवाली की सफाई में सबसे पहले खोलती हूं.35 साल पुराने खिलौने को आज भी साफ करती हूंजमाना भले ही फैशनेबल हो गया हो, लेकिन दिल में बसने वाली चीजें कभी घर से बाहर नहीं हो सकतीं. एनी बेसेंट रोड में रहने वाली राधिका देवी ने अपनी यादों को कुछ इसी तरह बताया. सफाई के दौरान वे बार-बार 35 साल पुराने खिलौने को निहार रही थी. उनके हाथों में वह खिलौना था, जिसे उनकी मां ने 35 साल पहले उन्हें गौना में दिया था. इस बारे में राधिका कहती हैं कि यह हाथी और घोड़ा बाजार से खरीदा हुआ नहीं है, बल्कि मेरी मां ने मुझे अपने हाथों से बना कर दिया था. 1980 में जब मेरा गौना हुआ था, तो मां ने इन खिलौनों को मेरी डोली में रख दिया था, इसलिए यह खिलौने भले ही पुराने और गंदे हो गये हो, लेकिन मैं इसे नहीं बदल सकती. क्योंकि इसमें मां का प्यार नजर आता हैै. इसी खिलौने से मेरे बच्चे खेलते आये हैं. अब बच्चे भी अपना कैरियर बना रहे हैं. वे घर के डिजाइन को चेंज करते हैं. घर की पुरानी चीजों को चेंज कर नया आइटम खरीद रहे हैं, लेकिन मैं अपने खिलौने के इसी घर में रखूंगी. इन चीजों को देख पुरानी यादें ताजा हो जाती हैं.सफाई के दौरान मिली पेंटिंगअशोक राजपथ की अाकांक्षा राय कहती हैं कि दिवाली में भले ही हों नये चीजों को खरीदने का मौका मिलता है, लेकिन इसी त्योहार में हमें पुरानी चीजों से भी रू ब रू होने का मौका मिलता है. हमें हर साल कुछ चीजें मिलती हैं, जो पुरानी होने के बावजूद यादों को ताजा कर देती हैं. वे कहती हैं, इस बार दिवाली की सफाई दुर्गापूजा खत्म होने के बाद शुरू की है. ऐसे में जब दीदी की पेंटिंग को साफ करने का मौका मिलता, तो पुराने दिनों में खो गयी. मेरी बड़ी दीदी रोहिणी पिछले दस साल से दिल्ली में रहती हैै. यह पेंटिंग उन्हीं की बनायी हुई है. दीदी जब स्कूल में थी, तब पेंटिंग कंपीटीशन में भाग लेती थी. इस पेंटिंग को मेरे सामने उन्होंने बनाया था. इसे बनाने के लिए मैंने ही ब्रश खरीद कर दिया था. इसे देख ऐसा लग रहा है, जैसे कल की ही बात हो. इस तरह की यादों को हम घर से बाहर नहीं निकाल सकते हैं. दिवाली में भी इन्हीं आइटम्स से घर में रौनक आती है. क्योंकि यह सब हमारे लिए खास होता है. इन चीजों को देख हमें कुछ ऐसी बातों को याद करने का मौका मिलता है, जो हम बाकी दिन नहीं कर पाते. इसलिए दिवाली मेरे लिए खास पर्व है.

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