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चुनाव में दिखा भाजपा का चेहरा : नीतीश
पटना : 100 घंटे से अधिक वक्त बीतने के बाद भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हरियाणा में दलित बच्चों की हत्या पर एक शब्द भी नहीं बोला, जबकि वे गांधी जी के आदर्शों का बखान करते नहीं थकते. ट्विटर पर मुख्यमंत्री ने पीएम पर जमकर निशाना साधा वहीं, मुख्यमंत्री ने कहा है कि चुनावी व्यस्तता […]
पटना : 100 घंटे से अधिक वक्त बीतने के बाद भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हरियाणा में दलित बच्चों की हत्या पर एक शब्द भी नहीं बोला, जबकि वे गांधी जी के आदर्शों का बखान करते नहीं थकते. ट्विटर पर मुख्यमंत्री ने पीएम पर जमकर निशाना साधा वहीं, मुख्यमंत्री ने कहा है कि चुनावी व्यस्तता के बीच फेसबुक पर अपने विचार पोस्ट किया है.
उन्होंने अपने वाल पर लिखा है, आम चर्चा है कि भाजपा बिहार में बड़ी हार की ओर बढ रही है. हार किन कारणों से हो रही है यह भी बिहार में आम चर्चा का विषय है. नेतृत्व खोखला है और अपने ही नेताओं पर पार्टी को भरोसा नहीं है. नतीजतन, बाहरी नेता आकर बिहार के परिवर्तन की डफली बजा रहे हैं. उन्होने लिखा, पार्टी के पास बिहार के लिए कोई एजेंडा नहीं है.
अत: बिहार के बाहर की घटनाओं को इम्पोर्ट करके उन्हें बिहार का एजेंडा बनाकर भुनाने की कोशिश हो रही है. और सबसे बड़ी बात यह है कि देश की सरकार ने बिहार के लिए कुछ ऐसा किया ही नहीं है जिसके दम पर वह जनता का भरोसा हासिल कर सके. आश्चर्य इस बात का है कि जो स्थिति बिहार में है वह बड़ी तेज़ी से देश में भी बनने लगी है. देश भर से पत्रकार बिहार आए हैं और इसकी चर्चा कर रहे हैं. हर रोज़ कोई न कोई घटना इस माहौल को पुख्ता कर रही है. निर्णायक नेतृत्व की बात करने वाले प्रधानमंत्री न तो निर्णय ले रहे हैं न ही नेतृत्व कर रहे हैं.
उनके बड़बोले मंत्री बढ-चढ कर अपने बयानों से देश की संस्कृति व सभ्यता की धज्जियां उड़ा रहे हैं. इस माहौल में भाजपा की सरकार देश का संचालन कैसे करेगी? वह बिहार में जनता के सामने बेमतलब परिवर्तन की डफली बजा जा रहे हैं और नाकाम हैं. परन्तु जिस तरह से माहौल बिगड रहा है, अगले कुछ महीनों में देश भर की जनता परिवर्तन का शंखनाद करने लगे तो आश्चर्य की बात नहीं होगी. नीतीश कुमार ने लिखा, पिछले कई महीनों से केंद्र की सरकार सब काम-धाम छोड़ कर बिहार के चुनाव में जुटी हुई है. गरीब की थाली से दाल गायब हो गई और सरकार देखती रही.
घटनाएं होती रहीं, माहौल बिगडता रहा, पर सौहार्दपूर्ण वातावरण बनाने की बजाये भाजपा के नेता हर घटना को बिहार के चुनाव में नफा नुकसान के अनुसार भुनाते रहे. अब हालत यह है कि दाल महंगी है और दलित की जान सस्ती हो गयी है. लेखक पुरस्कार लौटा रहे हैं और पत्रकारों का सम्मान छिन रहा है. राष्ट्रपति विचलित हैं, प्रधानमंत्री चुप हैं, और देश भर में हलचल है. बिहार में हार की झलक भाजपा के चेहरे और चरित्र को ऐसे उजागर करेगी इसका अंदाजा मुझे भी नहीं था.
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