न दाल की महंगाई घटेगी, न चुनाव में भाजपा की दाल गलेगी: सीपीआई
न दाल की महंगाई घटेगी, न चुनाव में भाजपा की दाल गलेगी: सीपीआई13 राज्यों में छापामारी से दाल निकली भी, तो महज 75000 टन ! जो दाल जब्त हुई है वह प्रति व्यक्ति एक किलो से भी कम है नीतीश सरकार ने भी जमाखोरों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की भाजपा, राजद, जदयू और कांग्रेस […]
न दाल की महंगाई घटेगी, न चुनाव में भाजपा की दाल गलेगी: सीपीआई13 राज्यों में छापामारी से दाल निकली भी, तो महज 75000 टन ! जो दाल जब्त हुई है वह प्रति व्यक्ति एक किलो से भी कम है नीतीश सरकार ने भी जमाखोरों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की भाजपा, राजद, जदयू और कांग्रेस को सबक सिखायेंगे बिहार के वोटर संवाददाता, पटना दाल की जमाखोरी कराकर महंगाई की आग में घी डालने से बिहार विधान सभा चुनाव के पहले दो चरणों में भाजपा की दाल नहीं गली, तो केन्द्र सरकार को तीसरे चरण के पहले दाल जमाखोरों के गोदामों पर छापामारी कर दाल निकालने की याद आयी. 13 राज्यों में छापामारी से दाल निकली भी, तो महज 75000 टन ! यह छुपायी गयी दाल की मात्र बानगी है. 75 हजार टन का मतलब है 7.5 करोड़ किलो. 125 करोड़ की आबादी वाले देश में 7.5 करोड़ किलो दाल प्रति व्यक्ति एक किलो से भी कम है. इससे न दाल की महंगाई घटेगी, न इस चुनाव में भाजपा और उसके गठबंधन की दाल गलेगी. उक्त बातें रविवार को सीपीआई के राज्य सचिव सत्यनारायण सिंह ने कही. उन्होंने कहा है कि पिछले लोक सभा चुनाव के पहले दाल का दाम 100 रुपये प्रति किलो के पार चला गया, तो मतदाताओं ने उस वक्त की शासक पार्टी कांग्रेस को लोक सभा चुनाव में धूल चटा दी थी. इस विधान सभा चुनाव के समय दाल का दाम 200 रुपये प्रति किलों के पार चला गया. अब केन्द्र की शासक पार्टी भाजपा और उसके सहयोगी दल कैसे मान रहे कि मतदाता उनको माफ कर देंगे? शायद उनको भ्रम था कि उनके ‘करिश्माई नेता’ का जादू इस महंगाई के भूत को भी भगा देगा, पर उनको पता चल गया कि इस बार जादू बेअसर हो रहा है. केन्द्र सरकार को पता है कि देश में दाल का पर्याप्त भंडार है, इसीलिए उसने चुनाव के समय भी दाल का आयात नहीं किया. उसको यह भी पता है कि किन–किन जमाखोरों ने कहां–कहां दाल छुपा रखा है. वह चाहती, तो चुनाव के पहले ही छापामारी कर दाल निकालती और इसकी महंगाई रोकती, लेकिन भाजपा ऐसा नहीं कर सकती, क्योंकि उन्हीं जमाखोरों की पार्टी है और उनके बूते पर ही चुनाव में पैसा पानी की तरह बहा रही है. अभी उसने जो प्रतीकात्मक छापामारी की है, वह दाल की महंगाई घटाने के लिए नहीं, बल्कि मतदाताओं को दिखाने के लिए की है. नीतीश सरकार को भी मालूम है कि दाल की महंगाई का मुख्य कारण दाल की जमाखोरी है, लेकिन उसने भी जमाखोरों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की. जदयू–राजद–कांग्रेस महागठबंधन भी तो इन्हीं जमाखोरों के पैसे से चुनाव लड़ रहा है, इसीलिए महंगाई न जदयू का मुद्दा बनी न भाजपा की, लेकिन मतदाता उनके झांसे में आने वाले नहीं हैं. वह भाजपा, राजद, जदयू और कांग्रेस को सबक सिखाएगी.