”द लालू रिटर्न”
पटना : बिहार में पंद्रह साल सत्ता में रहने के बाद 2005 के विधानसभा चुनाव में पराजय के बाद राज्य में चुनावों में लगातार हार का सामने करने और चुनाव लडने से छह वर्ष के लिए निषिद्ध करने के अदालत के फैसले के बीच लालू प्रसाद की पार्टी राजद ने इस बार चुनाव में प्रभावशाली […]
पटना : बिहार में पंद्रह साल सत्ता में रहने के बाद 2005 के विधानसभा चुनाव में पराजय के बाद राज्य में चुनावों में लगातार हार का सामने करने और चुनाव लडने से छह वर्ष के लिए निषिद्ध करने के अदालत के फैसले के बीच लालू प्रसाद की पार्टी राजद ने इस बार चुनाव में प्रभावशाली वापसी की है. डेढ दशक तक बिहार पर एकछत्र राज करन वाले लालू को नीतीश और भाजपा के साथ आने पर हासिये पर जाने को मजबूर होना पडा था.
2010 के विधानसभा चुनाव में जदयू-भाजपा ने मिलकर 243 में से 206 सीटों पर विजय पायी थी और राजद महज 22 सीटों पर सिमट कर रह गई थी. चारा घोटाले में 2013 में लालू को एक जबर्दस्त धक्का लगा जब अदालत ने उनकों दोषी ठहराया जिससे वे लोकसभा की सदस्यता के आयोग्य हो गए और साथ ही उनपर कम से कम छह सालों के लिए चुनाव लडने पर प्रतिबंध लगा दिया गया. इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में भी उनकी पार्टी को बडा झटका लगा जब बिहार की 40 सीटों में से वह केवल चार सीट ही हासिल कर पायी. लगातार पराजय का मुंह देखने के चलते उन्हें मित्र से दुश्मन बने नीतीश कुमार से फिर हाथ मिलाने के लिए प्रेरित किया.
लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार की जदयू को राजद से भी बडा झटका लगा था और उसे मात्र दो सीट मिली थी. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के करिश्मे और भाजपा की राज्य में बढती लोकप्रियता को देखते हुए और लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के चलते नीतीश और लालू की नजदीकियां बढी. लालू ने जमीनी हकीकत को देखते हुए नीतीश कुमार को महागठबंधन के मुख्यमंत्री के रुप में स्वीकार किया और दोनों दलों ने कांग्रेस को साथ लेकर चुनाव लडा जिसमें उसे सफलता मिली.