हड़प्पा सभ्यता ने भारतीय ज्ञान को दक्षिण एशिया के बड़े क्षेत्र में फैलाया
हड़प्पा सभ्यता ने भारतीय ज्ञान को दक्षिण एशिया के बड़े क्षेत्र में फैलाया‘हड़प्पा की सभ्यता और भारतीय इतिहास में इसका योगदान’ विषय पर व्याख्यान आयोजितसंवाददाता, पटना काशी प्रसाद जायसवाल शोध संस्थान में 32वें केपी जायसवाल स्मृति व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया. वक्ता के रूप में डेक्कन कॉलेज के कुलपति प्रो वसंत शिन्दे ने ‘हड़प्पा की […]
हड़प्पा सभ्यता ने भारतीय ज्ञान को दक्षिण एशिया के बड़े क्षेत्र में फैलाया‘हड़प्पा की सभ्यता और भारतीय इतिहास में इसका योगदान’ विषय पर व्याख्यान आयोजितसंवाददाता, पटना काशी प्रसाद जायसवाल शोध संस्थान में 32वें केपी जायसवाल स्मृति व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया. वक्ता के रूप में डेक्कन कॉलेज के कुलपति प्रो वसंत शिन्दे ने ‘हड़प्पा की सभ्यता और भारतीय इतिहास में इसका योगदान’ विषय पर व्याख्यान दिया. इस मौके पर वक्ताओं ने कहा कि 1920 में हड़प्पा की खोज 20वीं सदी के पुरातात्विक उत्खनन के इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना थी. इसने भारतीय महाद्वीप में मानव सभ्यता के इतिहास की तिथि को तीन हजार वर्ष पीछे पहुंचा दिया. हड़प्पा मोहन जोदाड़ो, कालीबंगा, धौलावीरा के विस्तृत क्षेत्रों के उत्खनन ने इस महाद्वीप की प्राचीन इतिहास में कई नये आयाम जोड़े. यह एेसी सभ्यता है, जिसने भारतीय ज्ञान को दक्षिण एशिया के काफी बड़े क्षेत्र में फैलाया तथा शांतिपूर्ण तरीके से एक बड़े साम्राज्य की स्थापना की. यहां अंतराष्ट्रीय एवं देशीय व्यापार के स्पष्ट प्रमाण मौजूद है. इससे काफी धन इकठ्ठा किया, जिसका प्रयोग उन्होंने शहरीकरण के विकास, बर्तनों, बीड्स, धातु के बर्तनों का निर्माण आदि में किया. इस अवसर पर वक्ताओं ने घग्गर बेसिन से प्राप्त हड़प्पा सभ्यता के प्राप्त अवशेषों का भी जिक्र किया. भिराना, गिरवार आदि से प्राप्त अवशेषों ने इस सभ्यता के इतिहास को छठी शताब्दी के मध्य तक पहुंचा दिया. राखीगढ़ी के कब्रिस्तान से प्राप्त अवशेषों का डीएनए प्राप्त किया गया, जिसके शोध से लोगों के स्वास्थ्य एवं खान-पान पर पर्याप्त प्रकाश पड़ने की संभावना है. कार्यक्रम की अध्यक्षता इतिहास विभाग की प्रोफेसर डेजी नारायण ने की. अतिथियों का स्वागत संस्थान के निदेशक डॉ विजय कुमार चौधरी ने किया.