ऑटोचालकों की मनमानी से आम यात्री परेशान
पटना : जब मन चाहा, किराया बढ़ा दिया. कभी पेट्रोल-डीजल की कीमत में बढ़ोतरी का बहाना, तो कभी प्रशासन की सख्ती की दलील. ऑटोचालकों की इस मनमानी से महज डेढ़ साल में कई रूटों पर किराया डेढ़ से दोगुना तक बढ़ गया है.
उनकी मनमानी से आम यात्री खासे परेशान हैं. ऑटोचालकों पर प्रशासनिक नियंत्रण भी लगभग खत्म है. इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि सरकारी किराया निर्धारित हुए छह माह से अधिक हो गये, पर उसे अब तक लागू नहीं कराया जा सका.
ओवरलोडिंग के नाम पर वसूली : फिलहाल ऑटोचालक पटना जंकशन-बोरिंग रोड रूट पर ओवरलोडिंग पर रोक की दलील देकर ग्राहकों से अधिक किराया वसूल रहे हैं.
इसके पीछे उनका तर्क है कि प्रशासन ने ड्राइविंग सीट पर यात्रियों को बैठाने पर रोक लगा दी है. इस परिस्थिति में किराया बढ़ाये बगैर कोई उपाय नहीं. हालांकि, किराया बढ़ाने के पीछे न तो प्रशासन की सहमति ली गयी और न ही कोई ऑटो यूनियन इसके समर्थन में है.
दूसरे रूटों पर भी बढ़ा किराया : जंकशन-बोरिंग रोड के साथ ही गांधी मैदान-दानापुर, जंकशन-कदमकुआं, जंकशन-कंकड़बाग आदि रूटों पर भी यात्रियों से एक-दो रुपया अधिक लिया जा रहा है. बकझक से बचने के लिए यात्री पैसे देकर पिंड छुड़ाना अधिक बेहतर समझते हैं. नहीं देने पर किचकिच ङोलनी पड़ती है.
सरकारी किराया निर्धारित, लागू नहीं : राज्य सरकार ने पहली बार वर्ष 1994 में शहर में चलनेवाले ऑटो, मिनीडोर आदि के लिए किराया निर्धारित किया था. उसके बीस साल बाद पांच मई, 2013 को पटना क्षेत्रीय परिवहन प्राधिकार ने दूसरी बार ऑटो, मिनीडोर, विक्रम का किराया निर्धारित किया.
इस बीच, हर बार पेट्रोल-डीजल का किराया बढ़ने पर ऑटो किराये में एक-दो रुपये की बढ़ोतरी होती रही, मगर प्रशासन ने कभी इसमें हस्तक्षेप करने की कोशिश तक नहीं की. अधिकारियों के मुताबिक, शेयर्ड ऑटो व रिजर्व ऑटो के लिए किराया अलग-अलग निर्धारित है.
इसका निर्धारण परिवहन विभाग से मिले किराया व पथ निर्माण विभाग से मिली प्वाइंट की दूरी को मिला कर तय किया गया. ऑटोचालक यूनियनों ने सरकारी किराया को अव्यावहारिक बता कर पहले ही खारिज कर दिया है. उनका कहना है कि सरकारी किराया लागू होने पर लंबे रूट पर किराया डेढ़ गुना बढ़ जायेगा, जबकि छोटे रूट पर यह घटेगा.