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पटना के मुगलकालीन बाजार अब भी हैं

पटना के मुगलकालीन बाजार अब भी हैंमुगलकाल से ही पटना में छोटे नियमित बाजारों की स्थापना विशिष्ट इलाकों में हो गयी थी. ये बाजार अनाज और जीवन की अन्य आवश्यक वस्तुओं की जरूरतों को पूरा करने के लिए थी. पटना (अब पटना सिटी) की सबसे बड़ी मंडी मारूफगंज की स्थापना 1764 में नवाब एकराम- दौला […]

पटना के मुगलकालीन बाजार अब भी हैंमुगलकाल से ही पटना में छोटे नियमित बाजारों की स्थापना विशिष्ट इलाकों में हो गयी थी. ये बाजार अनाज और जीवन की अन्य आवश्यक वस्तुओं की जरूरतों को पूरा करने के लिए थी. पटना (अब पटना सिटी) की सबसे बड़ी मंडी मारूफगंज की स्थापना 1764 में नवाब एकराम- दौला ने की थी. इसे ईस्ट इंडिया कंपनी का संरक्षण मिला हुआ था. मारूफगंज ने पहले से स्थापित नवाबगंज और मंडीगंज के बाजार पर प्रभाव डाला और जल्दी ही पटना शहर के सबसे बड़े बाजार के रूप में स्थापित हो गया. नाव से उतरने वाले अधिकांश सामानों की खेप यहीं आती थी. शहर के दो तिहाई तेलहन व्यापार (728,237 मन ) पर नियंत्रण मारूफगंज मंडी का था. यह इस मंडी की क्षमता को भी दर्शाता है. चीनी, नमक और अन्य अनाजों की इस मंडी में कोई कमी नहीं थी. मारूफगंज के दक्षिण में बसा मंसूरगंज दूसरे स्थान आता है. यह मुख्य रूप से तेलहन (104,968 मन), (56,873 मन), चीनी (8000मन) और अन्य अनाजों पर केंद्रित था. यहां बिहार के दक्षिणी जिलों से सामान आयात होता था. गंगा के किनारे बसे अन्य बाजारों में कर्नलगंज एक और नियमित बाजार था. यह तेलहन (137,370 मन) का बंगाल और बिहार के उत्तरी जिलों से आयात के लिए विख्यात था. मारूफगंज, मंसूरगंज और कर्नलगंज के बाद सादिकपुर और महाराजगंज का नाम व्यापार के लिए मशहूर था. ये भी तेलहन और अनाजों के व्यापार में थे. अलाबक्शपुर, अरफाबाद और गुलजारबाग अन्य बाजार थे, जो तेलहन, अपरिष्कृत चीनी और जूते के व्यापार में थे. शहर के बीच में बसा चौक, इसके नजदीक मिरचाईगंज और इन दोनों के पूरब बसा किला सूती कपड़ों के व्यापार के लिए विख्यात था. यह सूती कपड़ों के आयात का बड़ा केंद्र भी था. कपड़ों का सारा व्यापार मारवाड़ियों के हाथों केंद्रित था. दूसरे अन्य आयातों में लोहा, तांबा, पीतल, मसाले और रेशम थे. दूसरे अन्य विविध अंग्रेजी सामानों में छाते, चाकू, कैंची, चलने की छड़ें, क्रॉकरी के बर्तन कांच के बने पदार्थ, हार्डवेयर थे. ये सारे सामान या तो बड़े नावों के मार्फत या बैलगाड़ियों से यहां लाये जाते थे. ये आंकड़े प्रख्यात इतिहासकार गुलाम हुसैन की मशहूर पुस्तक शेर- उल- मुतखरिन से लिए गये हैं. ये आंकड़े तब के हैं जब पटना की आबादी एक लाख से भी काम थी. बुकानन के अनुसार पटना की आबादी बीसवीं सदी के शुरू के वर्षों में 170,654, 1881 में 165,192, 1891 में 134,785, 1901 में 136,153, 1911 में 119,976 थी. 1961 में यह आबादी 300000 की हो गयी थी.

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