घेरे में तांडव नृत्य के लिए अनुमति लेने की जरूरत नहीं

पटना : आनंद मार्ग प्रचारक संघ ने कहा कि झारखंड हाइकोर्ट ने 21 अक्तूबर को अपने फैसले में कहा है कि आनंद मार्गी को अपने घेरे के अंदर तांडव नृत्य करने के लिए किसी तरह की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है. प्रशासन की अनुमति से सार्वजनिक स्थानों पर भी तांडव नृत्य किया जा सकता […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 22, 2013 12:54 AM

पटना : आनंद मार्ग प्रचारक संघ ने कहा कि झारखंड हाइकोर्ट ने 21 अक्तूबर को अपने फैसले में कहा है कि आनंद मार्गी को अपने घेरे के अंदर तांडव नृत्य करने के लिए किसी तरह की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

प्रशासन की अनुमति से सार्वजनिक स्थानों पर भी तांडव नृत्य किया जा सकता है. संघ के केंद्रीय प्रकाशन सहायक आचार्य मृत्युंजयानंद अवधूत ने कहा कि अक्तूबर, 2005 में जमशेदपुर में तांडव नृत्य का प्रचार-प्रसार होने पर इसके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गयी थी. इसमें कई आनंदमार्गी जेल भी भेजे गये, जिन्हें 44 दिन बाद जमानत मिली.

इससे जुड़ा एक मामला दिसंबर, 2009 में ही झारखंड हाइकोर्ट ने खत्म कर दिया था, मगर दूसरे मामले में अचानक सात साल बाद झारखंड सरकार के आदेश पर कार्रवाई की गयी. बाद में झारखंड हाइकोर्ट के जस्टिस आरआर प्रसाद ने आनंदमार्गियों को इस आरोप से मुक्त कर दिया.

प्रेस कॉन्फ्रेंस में आचार्य कृष्ण कमलानंद अवधूत व यूनिट सेक्रेटरी सुभाष जी भी मौजूद थे. आनंद मार्गी त्रिशूल, सांप व नरमुंड के साथ नृत्य प्रदर्शन करते हैं. बायें हाथ में नरमुंड व दायें हाथ में चाकू लेकर नृत्य करना ही तांडव कहलाता है. आनंदमार्गियों के मुताबिक इसका इतिहास 7000 साल पूर्व भगवान शिव से शुरू होता है.

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