सुनिये असत्य नहीं चलेगा, नहीं चलेगाकालिदास रंगालय में लघु नाटक ‘कहीं धूप कहीं छांव’ का मंचनलाइफ रिपोर्टर, पटनाआपस के प्यार की, करुणा की धार की, घर-परिवार की, अपने-संसार की, रोजी-रोजगार की, सुख-दु:ख के सार की, अपने-सरोकार की. बेटी के ब्याह की, बहना की चाह की, अम्मा की आह की, बाबा की वाह की, छोटी तनख्वाह की, घर की घरवाह की. इस तरह की कई कविताएं नाटक के संवाद में बोले गये और कालिदास रंगालय में खूब तालियां बजीं. मौका था गुरुवार को रूपाक्षर द्वारा एकल लघु नाटक ‘कहीं धूप कहीं छांव’ के मंचन का. 40 मिनट तक चले सुनील परेश के एकल अभिनय ने लोगों को काफी आकर्षित किया. स्टेज पर कई पात्र केवल मूर्ति के रूप में खड़े थे और उनकी आवाज बैक स्टेज से आ रही थी. इस तरह का अद्भुत प्रयोग देखने को मिला. नाटक में कई नये प्रयोग किये गये थे. इन नये प्रयोगों ने दर्शकों को काफी आनंदित किया. नाटक में सच्चाई के लिए हमेशा खड़ा रहनेवाला कमलकांत के पात्र को सुनील परेश ने बेहतर तरीके से जिया. आज के परिवेश पर करारा प्रहार करते इस नाटक ने लोगों को झकझोर दिया. प्यार और सद्भावना का संदेश लिये हुए कमलकांत समाज के लिए लड़ता है. सच्चाई के साथ रहता है. लेकिन, सच्चाई के साथ रहने और लोगों के हक के लिए लड़नेवाला कमलकांत नेताओं के लिए मुसीबत बन बैठता है. अंत में नेता अपना रास्ता साफ करने के लिए कमलकांत को आग के हवाले कर देते हैं. मरते-मरते वह कहता रहता है- मेरी बात अभी पूरी नहीं हुई है. सुनिये, असत्य नहीं चलेगा, रावण अवश्य मरेगा. हे राम के संवाद से साथ नाटक का समापन होता है. नाटक में शामिल की गयी सभी कविताएं स्व. परेश सिन्हा की लिखी हुई थीं. नाटक की कहानी कुछ यूं है‘कहीं धूप कहीं छांव’ एक एकल लघु नाटक था, जिसे प्रस्तुत किया सुनील परेश ने. इसमें कमलकांत नाम के एक ऐसे इनसान की जिंदगी के कुछ खास लम्हों को दिखलाया गया है जो समाज में मिलजुल कर रहने में सुख महसूस करता है और अपने वजूद को कामय रखने की खातिर अपने बेटे-बहू का मोहताज होने से परहेज करता है. उम्र के आखिरी पड़ाव पर पहुंचकर भी वह गलत का विरोध करने से पीछे नहीं हटता और एक राजनेता द्वारा जन-समस्याओं की उपेक्षा के खिलाफ विरोध जताने के क्रम में अपनी जान गंवा बैठता है.
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