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कब तक पिसते रहेंगे स्कूली बच्चे?
अनुपम कुमारी पटना : सुबह छह से शाम चार बजे तक का सफर. कभी सड़कों पर खड़े रह कर गाड़ियों का इंतजार, तो कभी गाड़ियों में ठूंस-ठूंस कर बैठे बच्चों को ट्रैफिक खुलने की बेचैनी. इसी क्रम में स्कूल की घंटी के साथ उनकी दिमागी कसरत की आपा-धापी शुरू होती है, जो पूरे पांच घंटे […]
अनुपम कुमारी
पटना : सुबह छह से शाम चार बजे तक का सफर. कभी सड़कों पर खड़े रह कर गाड़ियों का इंतजार, तो कभी गाड़ियों में ठूंस-ठूंस कर बैठे बच्चों को ट्रैफिक खुलने की बेचैनी. इसी क्रम में स्कूल की घंटी के साथ उनकी दिमागी कसरत की आपा-धापी शुरू होती है, जो पूरे पांच घंटे तक चलती है.
इसके बाद छुट्टी की घंटी और घर पहुंचने के लिए लंबे और खतरनाक सफर की शुरुआत. यह कहानी है शहर के हर स्कूली बच्चे की. ये बच्चे स्कूल को दलील, अभिभावकों की मजबूरी और जिला प्रशासन की लीपापोती के बीच पिस रहे हैं.
कब हादसा हो जाये, पता नहीं : स्कूलों द्वारा संचालित वाहन पूरी तरह से बेलगाम हैं. इन गाड़ियों के संचालन के लिए बने नियमों का न तो पालन किया जा रहा है अैार न ही इन पर किसी तरह का नियंत्रण है. इससे नियमों को भूल वाहनों को चला रहे हैं. सीट से अधिक बच्चों को ढोने से लेकर और उनकी सुरक्षा तक कोई व्यवस्था नहीं. यहां तक कि वाहनों में ठसम-ठस भरे बच्चों को सफोकेशन न हो, इसके लिए वाहनों के दरवाजे तक खोल दिये जाते हैं. ऐसे में बच्चों का सफर हादसों और बड़ी दुर्घटनाओं के साथ बीतता है.
यह कैसी मजबूरी
बाल अधिकार संरक्षण आयोग में वर्ष 2011-12 में स्कूली बसों के नियंत्रण को लेकर कार्रवाई की गयी.इसमें एसपी और ट्रैफिक पुलिस की मदद से स्कूलाें को नोटिस भी भेजा गया, ताकि स्कूलों द्वारा वाहनों के संचालन को लेकर बने नियमों का पालन किया जा सके. बस काॅन्ट्रेक्टरों ने बस चलाना बंद कर दिया. बाद में अभिभावकों ने मजबूरी जतायी और िफर मनमानी की बस चल पड़ी.
अब तक कमेटी गठित नहीं
वर्ष 2014 में निजी संस्था की पहल पर जिला पदाधिकारी द्वारा क्षेत्रिय परिवहन प्राधिकार को स्कूलों में वाहन कोषांग कमेटी गठित करने का निर्देश दिया था. इसके लिए 23 अगस्त, 2014 को बैठक हुई थी. इसमें कुछ स्कूलों ने ही दिलचस्पी दिखायी. आधे से अधिक स्कूल बैठक से नदारद रहे. इसकी वजह से आज तक स्कूलों में वाहन कोषांग कमेटी का गठन नहीं हो सका है.
निजी वाहन का हो रहा है व्यावसायिक इस्तेमाल
मारुति निजी वैन में शामिल हैं, लेकिन इसका सभी स्कूलों में धड़ले से व्यावसायिक वाहन के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है. ये बिना टैक्सी नंबर के चलाये जा रहे हैं, ताकि वाहन टैक्स अधिक नहीं भरना पड़े. एेसे में इस तरह की गाड़ियों से दुर्घटना होने पर इनकी कोई जवाबदेही तक नहीं होती.
‘‘इसके लिए पूरी तरह से अभिभावक जिम्मेवार हैं. प्रशासन और स्कूल पर दबाव बना भी दिया जाता है, तो अभिभावक इसके लिए तैयार नहीं हाेते हैं. वे अपने बच्चों के लिए इस बात के लिए तैयार नहीं हैं कि कुछ दिनों तक यदि निजी वाहन से स्कूल पहुंचाना पड़े, तो पहुंचायेंगे. वे अपने बच्चों को इस कंडीशन में स्कूल भेजने के लिए खुद जिम्मेदार हैं. – निशा झा, अध्यक्ष, बाल अधिकार संरक्षण आयोग
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