शासन करना है, तो जनता को मूर्ख बना कर रखो
शासन करना है, तो जनता को मूर्ख बना कर रखोपटना. हमारे दादा कहा करते थे कि अगर शासन करना है तो आम आदमी को मूर्ख बनाये रखो, इसलिए अलादाद खां की शोक सभा में हम जायेंगे और अलादाद खां का जनाजा शाही महल से निकलेगा. इससे पूरे राज्य में राष्ट्रवाद का संदेश जायेगा. यह संदेश […]
शासन करना है, तो जनता को मूर्ख बना कर रखोपटना. हमारे दादा कहा करते थे कि अगर शासन करना है तो आम आदमी को मूर्ख बनाये रखो, इसलिए अलादाद खां की शोक सभा में हम जायेंगे और अलादाद खां का जनाजा शाही महल से निकलेगा. इससे पूरे राज्य में राष्ट्रवाद का संदेश जायेगा. यह संदेश पूरे राज्य में फैला दो. रेडियो से लेकर टीवी पर लाइव कवरेज होगा. पूरे राज्य में इसे राजकीय शोक घोषित करो. सभी दुकानें बंद करा दो. यह जिम्मेवारी नवाब साहेब ने कोतवाल को दी. पूरे राज्य में समाचार फैलते ही कौतूहल मच गया कि आखिर ये अलादाद है कौन? किसी को कुछ नहीं मालूम. कुछ तो यही जानते थे कि एक धोबी का गधा था, जिसका नाम अलादाद खां था और गधा मर गया है, जिससे धोबी हमेशा गम में डूबा रहता है. यह दृश्य नाटक ‘एक गधा उर्फ अलादाद खां’ के मंचन का था. प्रेमचंद रंगशाला में भारतेंदु नाट्य अकादमी, लखनऊ द्वारा आयोजित कार्यक्रम में परक रंगमंच कार्यशाला ने इसकी प्रस्तुति दे कर दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया. इसके लेखक शरद जोशी व निर्देशक दीपक कुमार थे. नाटक यह स्पष्ट करता है कि किस प्रकार राजनीतिक पक्ष अपने स्वार्थ के लिए आम जन को मूर्ख बनाये रखते हैं. नाटक में पात्रों की संख्या तो बहुत थी, लेकिन मुख्य पात्र नवाब व कोतवाल राजनीतिक व प्रशासनिक शक्ति का प्रतीक हैं और अलादाद खां आम जनता का प्रतीक है, जो दुखी है, परेशान है, जिसकी कोई नहीं सुनता. यह है कहानीएक धोबी का गधा है. उसका नाम अलादाद खां है. गधे के मरने के बाद वह काफी दुखी रहता. बाजार में कुछ लोग धोबी के गधे की बात कर रहे थे. इतने में कोतवाल आया, तो सब डर गये. कोतवाल ने डांट कर पूछा तो सभी ने कहा कि अलादाद खां का इंतकाल हो गया है. हम लोग उसी की बात कर रहे थे. इसके बाद नवाब ने कोतवाल को लेट आने का कारण पूछा तो कोतवाल ने सारी कहानी बता दी. इतने में नवाब ने कहा दिया कि जनता पर अपना शासन करने का इससे अच्छा तरीका नहीं हो सकता और कहा कि अलादाद खां का जनाजा शाही महल से निकलेगा, जिसे मैं खुद कंधा दूंगा. इसके बाद जब नवाब को पता चलता है कि अलादाद खां आदमी नहीं, एक गधा था, तो वह कोतवाल को फांसी पर लटकाने की बात करता है. इसके बाद कोतवाल एक अलादाद खां नाम के व्यक्ति को पकड़ कर उसे मार देता है. इसके बाद उसी अलादाद खां के जनाजे को नवाब कंधा देते हैं.