बिहार के अजय ने तैयार किया बाजीराव-मस्तानी का बैकग्राउंड कॉस्ट्यूम

बिहार के अजय ने तैयार किया बाजीराव-मस्तानी का बैकग्राउंड कॉस्ट्यूमसमस्तीपुर के रहनेवाले अजय निफ्ट, गांधीनगर से हैं पासआउटपटना से भी है अजय का ताल्लुकसुजीत कुमार पटनाइन दिनों बॉक्स ऑफिस पर धूम मचा रही हिंदी फिल्म बाजीराव-मस्तानी के वैसे तो सभी पहलुओं की चर्चा है, लेकिन आज हम आपको इससे जुड़ी एक और खबर देने जा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 25, 2015 8:13 PM

बिहार के अजय ने तैयार किया बाजीराव-मस्तानी का बैकग्राउंड कॉस्ट्यूमसमस्तीपुर के रहनेवाले अजय निफ्ट, गांधीनगर से हैं पासआउटपटना से भी है अजय का ताल्लुकसुजीत कुमार पटनाइन दिनों बॉक्स ऑफिस पर धूम मचा रही हिंदी फिल्म बाजीराव-मस्तानी के वैसे तो सभी पहलुओं की चर्चा है, लेकिन आज हम आपको इससे जुड़ी एक और खबर देने जा रहे हैं. दरअसल फिल्म बाजीराव-मस्तानी के बैकग्राउंड कॉस्ट्यूम को बिहार के समस्तीपुर के गांव उदापट्टी के रहने वाले अजय कुमार ने तैयार किया है. पटना के नया टोला, मुसल्लहपुर और राजेंद्र नगर में रह कर फैशन डिजाइनिंग की पहली सीढ़ी चढ़ने वाले अजय ने बाजीराव-मस्तानी के साथ रामलीला, फैंटम जैसी फिल्मों के अलावा कई सीरियल के लिए कॉस्ट्यूम डिजाइनिंग किया है.अलीफ लैला के डिजाइनर से मिला मौकाअपनी फिल्मी सफर के बारे में अजय कहते हैं, पटना में रह कर फैशन डिजाइनिंग की तैयारी करने के बाद मैं दिल्ली आया. आगे की स्टडी वहीं से करने के दौरान मुझे निफ्ट, गांधीनगर में एडमिशन का मौका मिला. 2011 में फैशन डिजाइनिंग का कोर्स पूरा करने के बाद मुंबई आ गया. जहां पहले से मेरा किसी से भी कोई संपर्क नहीं था. ज्यादा से ज्यादा लोगों से कॉन्टेक्ट करने की कोशिश करने लगा. इस दौरान अलीफ लैला की डिजाइनर निरूशा ने बुलाया और एक माह तक मेरे काम को देखा, तब छोटे पर्दे के लिए झांसी की रानी, शिवाजी और महाभारत का काम चल रहा था. इस दौरान ही कुछ लोगों से संपर्क हुआ और मुझे माई फ्रेंड गणेशा-4 के लिए काम करने का मौका मिला. हालांकि यह फिल्म रिलीज नहीं हुई. इसके बाद मैंने कालापुर नाम के हिंदी फिल्म के लिए काम किया लेकिन इसका भी कुछ खास फायदा नहीं मिला क्योंकि यह फिल्म कब आई और चली गयी किसी को पता ही नहीं चला. वापसी के दिन किस्मत ने दिया साथअजय कहते हैं, मुंबई में स्ट्रगल करते हुए काफी समय हो चुका था. मैं घर आने के लिए ट्रेन में टिकट ले चुका था. सुबह 11 बजे मेरी ट्रेन थी. मैं सामान को पैक कर रहा था कि करीब नाै बजे भंसाली प्रोडक्शन से मेरे पास मीटिंग करने के लिए कॉल आयी. यह अगस्त 2012 की बात है, उस वक्त रामलीला को बनाने की तैयारी चल चुकी थी. तब मुझे मेन कॉस्ट्यूम डिजाइनर नहीं बल्कि पूरी फिल्म के लिए ट्रेनी के तौर पर रखा गया. एक माह बाद मुझे सैलरी मिली. रामलीला को पूरा करने के बाद फैंटम से जुड़ने का मौका मिला. मेन डिजाइनर सुपर्णा रे चौधरी ने मुझे कॉल किया. कबीर खान ने मेरे काम की तारीफ की. इस फिल्म के खत्म होने के बाद ही बाजीराव-मस्तानी का काम शुरू हो गया. इस फिल्म में मुझे काम करने की तमन्ना था लेकिन मैं अस्सिटेंट के तौर पर नहीं बल्कि सीनियर पद पर काम करना चाहता था. इस बात पर भंसाली प्रोडक्शन की तरफ से मुझे प्रेजेंटेशन बानने को कहा गया अौर इसके लिए मुझे पांच मिनट का टाइम दिया गया. उस दौरान निफ्ट की स्टडी काम आयी और भंसानी प्रोडक्शन के इपी ने पांच मिनट के बदले करीब तीन घंटे तक मेरे प्रेजेंटेशन को देखा. तब मुझे काशीबाई का रोल, जो कि प्रियंका चोपड़ा कर रही थी. उसके लिए कॉस्ट्यूम डिजाइन करने को कहा गया लेकिन कुछ ऐसे हालात बने कि वह काम मैं नहीं कर सका. भंसाली ने कहा करो बड़ा कामअजय कहते हैं, प्रियंका चोपड़ा के कॉस्ट्यूम के कुछ कारणों से नहीं कर पाने का मलाल तो था लेकिन तब तक मुझे बैकग्राउंड कॉस्ट्यूम को डिजाइन करने के लिए कहा गया. इस काम को एक कंपनी पहले कर रही थी लेकिन उनके और मेरे द्वारा दिये गये बजट में काफी अंतर था. संजय लीला भंसाली ने मुझे काम करने को कहा और तब मैंने इस फिल्म के मराठा, मुगल, बुंदेलखंड और निजाम के सैनिकाें के साथ प्रियंका और दीपिका के हर गाने की डांसर्स और फिल्म के अंत में काल्पनिक घुड़सवार सैनिकों के कॉस्ट्यूम को डिजाइन किया. मेरे इस काम को भंसाली ने खूब सराहा.घर के साथ कई और भी हुए खुशइस फिल्म के साथ सफलता के स्वाद को चख चुके अजय कहते हैं, बाजीराव-मस्तानी के बाद तीन-चार प्रोजेक्ट के लिए कॉल आ चुकी है. जिसमें एक फिल्म बहुत बड़े स्टारकास्ट वाली है. इसके अलावा बॉलीवुड के सभी टॉप प्रोडक्शन हाउस के अलावा हॉलीवुड से बधाई मिल चुकी है. वह कहते हैं, मेरे पिताजी एजुकेशनल बैकग्राउंड से जुड़ी सेवा में काम करते हुए रिटायर हुए. वह मेरे काम को लेकर थोड़ा सशंकित रहते थे लेकिन इस फिल्म के शुरू में बड़े पर्दे पर मेरा नाम देख कर घरवालों के मन में भी मेरे काम को लेकर जो थोड़ा बहुत संदेह था. वह खत्म हो गया.

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