मां और तीन बेटों का गैंग, ट्रेन लूट कर फ्लाइट से उड़न छू !
आज के इस अंक में पढ़िए मुंगेर जिले के बरियारपुर स्थित बरेल बासा परिया गांव के एक परिवार की कहानी, यूं तो पूरा गांव ही देश के अन्य राज्यों में ट्रेन डकैती और आर्म्स सप्लाइ के लिए चर्चित है. पर, हम जिस परिवार की बात कर रहे हैं उसकी बात ही निराली है. तीन सगे […]
आज के इस अंक में पढ़िए मुंगेर जिले के बरियारपुर स्थित बरेल बासा परिया गांव के एक परिवार की कहानी, यूं तो पूरा गांव ही देश के अन्य राज्यों में ट्रेन डकैती और आर्म्स सप्लाइ के लिए चर्चित है. पर, हम जिस परिवार की बात कर रहे हैं उसकी बात ही निराली है.
तीन सगे भाई और उनकी मां, सबने लूट को अपना धंधा बना रखा है. हवाई जहाज से दूसरे राज्यों में पहुंच कर ट्रेन डकैती करनेवाले 50 हजार के इनामी सहोदर भाइयों की शातिराना चाल को जानें, पूरे तथ्य के साथ. पूरे सात सालों तक किस तरह से उन्होंने बिहार सहित अन्य राज्यों की पुलिस को छकाया और घटना को देते रहे अंजाम.
विजय सिंह
पटना : शोभा करीब 15 साल की थी, जब उसकी शादी हुई. गांव की गलियों से उसके कदम वाकिफ भी नहीं हुए थे कि पिता ने उसके हाथ पीले कर दिये. अनपढ़ कुनबा, तंगहाली की रोटियां, मुफलिसी की चादरों में पैर फैलाने वाली शोभा अब अपने गांव लैलक (सबौर,भागलपुर) से विदा होकर बरेल बासा परिया अपने पति के घर पहुंच गयी.
मुंगेर के बरियारपुर इलाके के इस गांव में पति लक्ष्मी मंडल के साथ उसका गुजर-बसर होने लगा. बरियारपुर रेलवे स्टेशन पर एक छोटी-सी चाय-नाश्ते की दुकान आमदनी का स्रोत थी. ज्यादा तो नहीं, लेकिन जिंदगी का गुजारा करने के लिए लक्ष्मी का साथ और यह दुकान शोभा के लिए कम नहीं था.
लेकिन, मायके में बचपन से ही गरीबी की मार खा चुकी शोभा के मन में ससुराल को लेकर बड़े ख्वाब थे. मां और छोटी बहनों के मुंह से कमाऊ पति और ससुराल में ऐशो-आराम की बातें सुन अपने अरमान सजानेवाली शोभा की उम्मीदें तब धराशायी हो गयीं, जब उसने पति की मामूली दुकान को देखा. शाम की दाल-रोटी में उसे लज्जत नहीं मिलती, बल्कि दिल में टीस मारती थी. फिर भी जिंदगी तो अब यही थी, वह मन मार कर ससुराल में रहने लगी. उसने तीन बेटों व बेटियों को जन्म दिया.
वक्त गुजरने के साथ शोभा अपनी दुनियादारी में उलझ गयी. दुकान पर वह अपने पति का हाथ बंटाने लगी. इसी बीच शोभा के साथ वह हुआ, जो किसी भी सुहागिन के लिए बड़ा आघात होता है. बंधन टूट जाते हैं, साथ छूट जाता है और जिंदगी पहाड़ बनकर सामने खड़ी हो जाती है. लक्ष्मी दुनिया से चल बसा. उन्हें कोई बीमारी हो गयी थी. वक्त पर इलाज नहीं हुआ, सो जान से हाथ धोना पड़ा. शोभा अब सिर्फ मां थी, किसी की पत्नी नहीं.
इस हादसे पर राेयी, छटपटायी, छाती पीटी और फिर मासूम बच्चों को सीने से लगा लिया. मायके वाले आये, नात-रिश्तेदार जुटे. सबने उसे तसल्ली दी और फिर अपने घर काे लौट गये. धीरे-धीरे सबकुछ सामान्य हो गया. इस हादसे ने शोभा के अंदर बड़ा बदलाव किया. उसने समझ लिया कि सबकुछ खुद करना है. उसने चाय दुकान संभाल ली.
दुकान पर सुबह-शाम होनेवाली अड्डेबाजी काे करीब से महसूस करने लगी. चलती ट्रेन में हाथ की सफाई, हर रोज एक नया किस्सा, लूट-डकैती की बातें, बंटवारे में किसको क्या मिला, सोने, चांदी के गहने, नगदी सब अपनी आंखों से देखती. दरअसल उसका गांव बरेल बासा परिया लुटेरों-डकैतों का गांव था. गांव के करीब 100 लोगों पर ट्रेन में लूट-डकैती का केस चल रहा था, जो देश के कई राज्यों में घटना को अंजाम देते थे.
उन दिनों गांव के ही सिक्कू मंडल और उसके भाई बमबम मंडल की चलती थी. दोनों भाई गैंग के सरगना थे, आर्म्स की सप्लाई और ट्रेन की लूट-डकैती में उनका कोई सानी नहीं था. यह सब देख कर शोभा का मिजाज बदल गया. उसने अपनी चाय दुकान पर शराब के साथ चखना बेचना शुरू कर दिया और इस गैंग के साथ खुद को जोड़ लिया.
सिक्कू मंडल और बमबम मंडल उसकी दुकान पर बैठते थे. शोभा ने अपने बड़े बेटे जोगवा को सिक्कू के साथ लगा दिया. सिक्कू अब जोगवा से पान-मसाला और सिगरेट मंगाता. एक दिन ट्रेन में लूट करने गये गैंग के साथ जोगवा को लगा दिया. उसने ट्रेन में हाथ की सफाई देखी तो उसे मजा आ गया. धीरे-धीरे वह भी इस फन में माहिर हो गया. उसके हिस्से भी चोरी व लूट के माल आने लगे. इसके बाद जोगवा ने अपने दोनों भाइयों गौतम मंडल और पातो मंडल को भी इसमें शामिल किया.
तीनों भाई एक साथ इस काले कारनामे में उतरे तो गैंग के अन्य सदस्यों को पछाड़ दिया. गैंग में उनकी धाक जमती गयी. वर्ष 2005 में एक दिन एेसा हुआ कि लूट के सामान के बंटवारे को लेकर बवाल हो गया. जोगवा ज्यादा हिस्सा मांग रहा था, इसको लेकर मारपीट हो गयी. सिक्कू ने उसे बांध कर मारा. इस घटना के बाद जाेगवा अपने भाइयों के साथ परिया से निकल कर उड़ीसा स्थित भुवनेश्वर चला गया.
भुवनेश्वर में वह अपना अड्डा बनाया और परिया गैंग के कुछ लाेगों को भुवनेश्वर बुला कर गैंग संचालित करने लगा. इधर सिक्कू मंडल की पत्नी गांव की मुखिया बन गयी. अब यह परिवार लूट-डकैती के काम से किनारा कस लिया और तय किया कि कोई भी यह काम नहीं करेगा. जो नहीं माना उसे मारपीट कर भगा दिया. गांव में समाज सुधार की हवा बहने लगी.
वर्ष 2007 में जोगवा जब परिया लौटा, तो बड़ा अपराधी बन चुका था. उसने इलाके में अपनी धमक कायम करने के लिए बरियारपुर के रेलवे स्टेशन मास्टर की गोली मार कर हत्या कर दी. यहां से निकला तो सीधे महाराष्ट्र के भुसावल पहुंचा और वहां सिक्कू मंडल के छोटे भाई बमबम को भी गोली मार दी. इस दो हत्या ने जोगवा को क्यूल से लेकर बरियारपुर तक के इलाके में खूंखार अपराधी बना दिया. लोग उसके नाम से सहम जाने लगे. सिक्कू मंडल उसे बदला लेने की साजिश रच रहा था कि जोगवा ने पहले ही हमला बोल दिया.
आठ जनवरी, 2010 को बरियारपुर रेलवे स्टेशन के पीछे उसने सिक्कू की हत्या कर दी, जिसकी अंगुली पकड़ कर वह अपराध जगत में उतरा था. उसके सभी ठेके और स्टैंड वसूली पर अपना कब्जा जमा लिया. अब रास्ता पूरी तरह से साफ हो गया. जोगवा ने इसका फायदा उठाया और अपने भाई गौतम मंडल, पातो मंडल को मुंगेर के आर्म्स सप्लाइ में लगा दिया और ट्रेन डकैती को भी अंजाम देने लगा. तीनों भाई भुवनेश्वर से गैंग को संचालित करते रहे और उसकी मां शोभा परिया में आर्म्स सप्लाइ के धंधे से खुद को जाेड़े रखी. आज तक शोभा का पुलिस की जीडी में नाम तो नहीं आया, पर एसपी मुंगेर वरुण कुमार सिन्हा की मानें तो वह अपराधिक वारदात में बेटों का साथ देती है.
पुलिस को पता चला कि बरियारपुर में शंकर ज्वेलरी की दुकान में जब लूट हुई थी, तो शोभा पिस्टल लेकर सड़क पर खड़ी थी और अंदर लूटपाट चल रहा था. फिर भी उसके खिलाफ कोई सबूत नहीं मिले, इसलिए वह बच गयी. शोभा और उसके बेटों का ही खौफ था कि वर्ष 2015 में हुए पंचायत चुनाव में इस परिवार ने अपने दम पर सात दावेदारों काे बैठा कर दुल्लो मंडल की पत्नी को निर्विरोध मुखिया बना दिया.
इधर, जोगवा का क्राइम ग्राफ जारी रहा. दो साल बाद उसने फिर वापसी की. इस बार वह एके-47 लेकर उतारा. पहली बार मुंगेर में एके- 47 से हमला हुआ और 24 नवंबर, 2012 काे ट्रीपल मर्डर को अंजाम दिया. इसमें परिया सोतीपुर में ब्लॉक के जूनियर इंजीनियर अरविंद कुमार समेत तीन लोगों को गोलियों से छलनी कर दिया.
वहीं भीष्म यादव समेत चार को गोली लगी, जो इलाज के बाद बच गये. लेकिन, जोगवा का तेवर कम नहीं हुआ. इसके बाद वह अपने ननिहाल लैलक में भी एक मर्डर किया. अब परिया और लैलक में उसकी खासी धमक हो गयी. उसने करोड़ों की संपत्ति बनायी. दोनों जगह मकान, जमीन को खरीदा. बेंगलुरु में 30 लाख का फ्लैट, दिल्ली और महाराष्ट्र में भी संपत्ति अर्जित कर ली.
दरअसल जोगवा को बड़ा अपराधी बनाने में पुलिस की भी भूमिका कम नहीं थी. बरियारपुर में जो भी थानेदार आये, वह जोगवा को दबोचने के बजाय उसी के हो गये. यहां तक कि जोगवा वांछित होने के बावजूद दारोगा के साथ थाने पर बैठता था. लेकिन, जब बरियारपुर की थानेदारी राजेश शरण को मिली तो उन्होंने जोगवा को गिरफ्तार किया. हालांकि केस डायरी कमजोर होने के कारण आठ महीने में उसे जमानत मिल गयी. वह जेल से बाहर आ गया.
लेकिन वह परिया और लैलक में अपनी गतिविधि कम कर दी. वह भुवनेश्वर में अंडर ग्राउंड हो गया. यहां से शुरू हुई गौतम मंडल और पातो मंडल की सक्रियता. दोनों भाई ट्रेन डकैती के एक्सपर्ट निकले. इन्होंने बिहार, यूपी, दिल्ली, महाराष्ट्र, औरंगाबाद, हैदराबाद, सिकंदराबाद, कोलकाता, कर्नाटक में अपना गैंग खड़ा किया. इसमें करीब 40 लोग शामिल हुए.
दोनों ने थोड़ा ट्रेंड बदला और पुलिस की आंख से ओझल हो गये. लूट और डकैती से अकूत संपत्ति बना लेने के बाद अब इन भाइयाें को अपना धंधा भी चलाना था और पुलिस की गिरफ्त से बचना भी था. दाेनों ने एक साजिश के तहत बस और ट्रेन के सफर को छोड़ दिया. वह फ्लाइट से यात्रा करने लगे. अब वह ट्रेन डकैती की साजिश रचने के लिए मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, आंध प्रदेश जाने के लिए हवाई यात्रा करने लगे.
आम लाेगों से कट कर खास लोगों के बीच उनका यह सफर शुरू हुआ. सभी शहरों में उनका अपना अड्डा है, गैंग के सदस्य हैं, एक माह के लिए वह किसी शहर में पहुंचते और लूट के लिए ट्रेन सलेक्ट करते थे. घटना को अंजाम देने के बाद अपना हिस्सा लेकर वापस फ्लाइट से भुवनेश्वर चले जाते. अपने मूल गांव, नलिहाल सब जगह से कट गये. जो कुछ गहने बेचने होते थे, तो इसके लिए वह सिकंदराबाद में एक ज्वेलरी दुकानदार को सेट किया था, वहां माल बेचा, पैसा बनाया और फिर गायब. डकैती की घटना के बाद जब पुलिस घटनास्थल पर सुराग ढूंढ़ती थी, तो वह हवा में सैर कर रहे होते थे.
पुलिस पीछा करती रही और वह कभी इस महानगर में, तो कभी उस महानगर में. पुलिस गैंग के बारे में जानती थी, लेकिन उसके साये के पास भी नहीं पहुंच पा रही थी. हमेशा पुलिस से एक कदम आगे. पुलिस के पांव जमीन पर तो गौतम और पातो के आसमान में.
पूरे सात साल मुंगेर और भागलपुर पुलिस के अलावा छह राज्याें की पुलिस को छकाने वाले दोनों भाई न तो पुलिस के हत्थे चढ़ रहे थे और न ही लूट-डकैती का यह सफर ही थम रहा था.
पुलिस ने लगाम कसनी शुरू की. इस दौरान भागलपुर एसपी ने लैलक की संपत्ति और मुंगेर एसपी ने परिया की संपत्ति जब्त करने के लिए इडी से पत्राचार किया. वहीं सरकार की तरफ से गौतम मंडल और पातो मंडल पर 50-50 हजार रुपये का इनाम घोषित हुआ. फिर भी सफलता नहीं मिली. इस बार इनाम की राशि एक लाख रुपये करने के लिए प्रपोजल भेजा गया. पुलिस पर इस गैंग को पकड़ने का दबाव था.
वह भी अपने मुखबिर फैला रखी थी. कहते हैं कि कोई कितना भी बड़ा अपराधी हो, कानून के हाथ इतने लंबे हैं कि एक न एक दिन उसके गिरेबान तक पहुंच ही जाते हैं. इस मामले में भी वही हुआ. 24 दिसंबर की रात मुंगेर पुलिस को सूचना मिली कि गौतम मंडल और पाताे मंडल अपने गैंग के साथ पटना के रामकृष्णा नगर में हैं. इस पर पटना पुलिस और डीएसपी एसटीएफ गोपाल पासवान के नेतृत्व में छापेमारी की गयी. इस दौरान गौतम मंडल, पातो मंडल, राहुल कुमार, पंकज कुमार, रंजीत कुमार, मिथुन कुमार, आमित कुमार, संजीव सांई पकड़े गये.
इनके पास से तीन लैपटॉप, तीन पेन ड्राइव, सात एटीएम कार्ड, पेन कार्ड और 10 हजार नगदी भी बरामद हुए. गौतम के पास रविश सिंह के नाम से बना हुआ आधार कार्ड व वोटर आइडी मिले. वह अपना पहचान छुपा कर घटना को अंजाम देता था. उनके पास से एसटीएफ एसपी शिवदीप लांडे का एक फोटो भी मिला. पूछताछ में गौतम ने बताया कि जब शिवदीप लांडे मुगेर में एएसपी थे, तब से वह उन्हें जानते हैं.
दरअसल यह गैंग इतनी आसानी से पकड़ में नहीं आता, लेकिन इसके पीछे गौतम के गांव परिया का विवाद काम आया. हुआ यूं कि एक माह पहले परिया गांव के मुखिया पति दुल्लो मंडल से शोभा का विवाद हो गया. इसको लेकर गोली भी चली. इसमें चार लोग घायल हुए. हालांकि दुल्लो की पत्नी को शोभा ने ही मुखिया बनवाया था, पर किसी बात पर ठन गयी तो गैंगवार हुआ. शोभा के कहने पर गौतम और पातो अपने गैंग के साथ दुल्लो की हत्या के लिए पटना में साजिश रच रहे थे. इसी दौरान सूचना लीक हो गयी और सभी पकड़े गये.
इनपुट – वीरेंद्र कुमार, मुंगेर कार्यालय
आठ साल से पुलिस की आंखों में धूल झोंक रहे थे
आठ साल पहले
जोगवा मंडल ने बरियारपुर के रेलवे स्टेशन मास्टर की गोली मार कर हत्या कर दी. इसके बाद महाराष्ट्र के भुसावल जाकर अपने ही गांव के बमबम मंडल को मारा.
8 जनवरी, 2010
बरियारपुर रेलवे स्टेशन के पीछे अपने गैंग के ही सरगना रहे सिक्कू मंडल की हत्या की. उसके ठेका व अन्य कारोबार पर कब्जा कर लिया.
24 नवंबर, 2012
पहली बार मुंगेर के परिया सोतीपुर में एके-47 का इस्तेमाल हुआ. इसमें ब्लॉक के जूनियर इंजीनियर अरविंद कुमार समेत तीन को गोलियाें से भून दिया गया तथा भीष्म यादव समेत चार लोग घायल हुए.
गैंगवार
परिया के मुखिया पति दुल्लो मंडल से शोभा देवी की ठन गयी है. पिछले माह से गैंगवार चल रहा है. अब तक चार लोग घायल हैं.
गिरफ्तार
पटना के रामकृष्णा नगर एक फ्लैट से गिरफ्तारी के दौरान जोगवा
के दोनों भाई दुल्लो मंडल की हत्या की साजिश रच रहे थे कि पकड़े गये हैं.
तीनों भाइयों पर कितने दर्ज हैं केस
जोगवा मंडल
(बड़ा भाई)
जोगवा पर डेढ़ दर्जन से अधिक केस हैं. इनमें लूट, हत्या, अपहरण के मामले दर्ज हैं. बिहार के अलावा दूसरे राज्यों में भी उसके खिलाफ एफआइआर हैं.
गौतम मंडल
(मंझला भाई)
गौतम के खिलाफ कुल 14 केस हैं. इनमें 10 बरियारपुर थाने में, दो सजौर थाने में, एक केस भुवनेश्वर में तथा एक केस जमालपुर रेल थाने में दर्ज हैं.
पाते मंडल
(छोटा भाई)
पाते मंडल पर कुल 10 केस दर्ज हैं.
इनमें सात बरियारपुर में, दाे सजौर मेंतथा एक केस जमालपुर रेल थाने में दर्ज करायेगये हैं.
लूट से बनायी करोड़ों की संपत्ति
अप्रैल, 2015 से लेकर जुलाई, 2015 के बीच जोगवा की मां शोभा देवी के बैंक एकाउंट से कुल 18 लाख, 21 हजार रुपये का लेने-देन हुआ है. जोगवा के बैंक खाते में 87 लाख रुपये हैं. बेंगलुरु के पलिया में 30 लाख का फ्लैट है. बिहार के परिया, भागलपुर के सजौर थाना क्षेत्र के ननिहाल लैलक में, उड़ीसा के भुवनेश्वर और महाराष्ट्र के भुसावल में तथा दिल्ली में मां और तीनों बेटों के नाम से करोड़ों की अचल संपत्ति है. करीब 20 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति होने का अनुमान है.
संपत्ति जब्त करने की अब तक की कार्रवाई
19 सितंबर, 2013 को तत्कालीन एसपी भागलपुर ने तीनों भाइयों व मां के नाम से लैलक में मौजूद संपत्ति को जब्त करने के लिए इडी को लिखा था. 21 जुलाई, 2015 को मुंगेर एसपी ने भी संपत्ति जब्ती के लिए इडी को लिखा. जब्ती के लिए स्पीडी ट्रायल चल रहा है.