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जाड़े मे गर्दनभर पानी में डूबे रहने जैसा रहा है मेरा लेखन

जाड़े मे गर्दनभर पानी में डूबे रहने जैसा रहा है मेरा लेखनपटना. ‘कविता हो या गीत-गजल, व्यंग्य हो या कथा-लघुकथा, साहित्य की लगभग सभी विधाओं में पढ़ी गयी आज की रचनाओं में समाज का तीखा सच, गहरी संवेदना प्रकट हुई है, जो निश्चित रूप से ‘साहित्य विविधा’ संगोष्ठी को महत्वपूर्ण बनाती है. बड़े-बड़े मंचों पर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 31, 2015 6:27 PM

जाड़े मे गर्दनभर पानी में डूबे रहने जैसा रहा है मेरा लेखनपटना. ‘कविता हो या गीत-गजल, व्यंग्य हो या कथा-लघुकथा, साहित्य की लगभग सभी विधाओं में पढ़ी गयी आज की रचनाओं में समाज का तीखा सच, गहरी संवेदना प्रकट हुई है, जो निश्चित रूप से ‘साहित्य विविधा’ संगोष्ठी को महत्वपूर्ण बनाती है. बड़े-बड़े मंचों पर सतही रचनाएं पढ़ी जाती हैं और वाह-वाही लूटी जाती है. किंतु आजकल ऐसी छोटी-छोटी साहित्यिक गोष्ठियां की बहुत आवश्यकता है, जो श्रेष्ठ सृजन के लिए मार्ग प्रशस्त करती है. इसके लिए गोष्ठी के आयोजक कवि-कथाकार श्री सिद्धेश्वर जी बधाई पात्र हैं.’ साहित्यिक संस्था भारतीय युवा साहित्यकार परिषद् एवं स्टेशन राजभाषा कार्यान्वयन समिति के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित साहित्य उत्सव-5 के तहत ‘साहित्य विविधा’ की अध्यक्षता कर रहे भगवती प्रसाद द्विवेदी ने उपरोक्त बातें कहीं. संगोष्ठी में पढ़ी गयी सिद्धेश्वर की लघुकथा ‘21वीं सदी की गांधीगिरी’ प्रभात कुमार भवन की लघुकथा ‘कारागार’ पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने ने कहा कि लघुकथा क्षणाशों की अभिव्यक्ति की है, जो घनीभूत संवेदना के कारण निश्चित रूप से भीतर तक प्रभावित करती है. रामवृक्ष बेनीपुरी हिंदी पुस्तकालय में आयोजित इस संगोष्ठी के मुख्य अतिथि राजभाषा अधिकारी राजमणि मिश्र ने अपनी व्यंग्य रचना के माध्यम से कहा कि घंटों चला कर राजाभिषेक करना, देवदर्शन करने के लिए काफी देर तक पंक्तिबद्ध खड़े रहना, जाड़े में गर्दनभर पानी में डूबे रहना जैसा ही रहा है मेरा लेखन. विशिष्ट अतिथि मशहूर शायर रमेश कंवल ने एक से बढ़ कर एक शायरी पेश की. कवि अशोक कुमार, गीतकार डॉ विजय प्रकाश, कवि शरद रंजन, सिद्धेश्वर, नीता सिन्हा, लता परासर, श्रीकांत व्यास, अनिल कुमार व विजय गुंजन ने भी अपनी रचनाएं सुनायीं.

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