हमारी पाकीजगी की तुमने दी यह कैसी सजा

विजय सिंह क्राइम कथा के इस अंक में पढ़िए ऐसी दंपती की हत्या की कहानी, जिसे भौतिक सुख-सुविधाओं से कोई वास्ता नहीं. घर-परिवार से दूर और वैराग्य जीवन जीनेवाले. एक छोटा-सा मठ और साधारण-सा जीवन. संतान नहीं, पर भरा-पूरा परिवार है. किसी से वैर नहीं, दुश्मनी नहीं, इसके बाद भी लिखी गयी हत्या की इबारत. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 6, 2016 7:06 AM
विजय सिंह
क्राइम कथा के इस अंक में पढ़िए ऐसी दंपती की हत्या की कहानी, जिसे भौतिक सुख-सुविधाओं से कोई वास्ता नहीं. घर-परिवार से दूर और वैराग्य जीवन जीनेवाले. एक छोटा-सा मठ और साधारण-सा जीवन. संतान नहीं, पर भरा-पूरा परिवार है. किसी से वैर नहीं, दुश्मनी नहीं, इसके बाद भी लिखी गयी हत्या की इबारत. आखिर क्यों, किस लिए हुई यह हत्या. सारण जिले के दिघवारा इलाके का हर शख्स मांग रहा है जवाब और पुलिस की जांच अभी जारी है.
पटना : यूं तो सभी बच्चे मां-बाप के लिए एक जैसे ही होते हैं. सबको बराबर का लाड़-प्यार मिलता है. पर, छोटे बेटे पर मां कुछ ज्यादा ही ममता उड़लेती हैं. कुछ ज्यादा हक, कुछ ज्यादा उम्मीदें.
बदले में छोटे बेटे के लिए भी मां दुनिया की सबसे प्यारी चीज होती हैं. बचपन से जवानी और बुढ़ापे तक मां के लिए छोटा बेटा बच्चा ही रहता है. उसकी देखभाल की फिक्र उसे सताती रहती है. इस रिश्ते की कोई कीमत नहीं, कोई मोल नहीं. हरेंद्र शर्मा (60) के साथ भी कुछ ऐसा ही था. वर्ष 2000 में उनकी मां चल बसीं. उम्र हो चली थी, बीमार रहती थीं और एक दिन वह आंखों से ओझल हो गयीं. दुखद यह था कि जब मृत्यु हुई, तो उनका छोटा बेटा हरेंद्र मुंबई में था. घर से संदेश गया, तो दिल को गहरा धक्का लगा. तत्काल कपड़े समेटे और जो कुछ जेब में था, हरेंद्र उसे लेकर दिघवारा (छपरा जिले के कुरैया पंचायत) अहिमन पट्टी अपने गांव चले आये. वहीं गांव, वही पगडंडी, वही बागीचे, वही घर, लेकिन अब मां नहीं रही.
ट्रेन से उतरने के बाद घर की तरफ जैसे-जैसे बढ़ते गये, मन शोक में डूबता गया. स्मृति शेष मां के प्रति अपार प्रेम उमड़ रहा है, दिल की अनंत गहराइयों में छिपी मां की ममता आंखों के रास्ते आंसू बन कर बह रही है. दरवाजे पर पहुंचे तो ठसाठसा भीड़ जमा है. करुण क्रंदन से गले का स्वर भारी हो रहा है.
हरेंद्र अपने को रोक नहीं पाये, मां की लाश के पास बैठ गये और रो-रो कर मन को हल्का किया. घरवालों ने संभाला, दाह संस्कार हुआ अौर फिर वक्त गुजरने के साथ सब सामान्य होने लगा. पर, हरेंद्र के साथ ऐसा नहीं हुआ. वह मुंबई में भले ही रहते थे, पर मां को कभी दूर महसूस नहीं किया. अब सिर्फ यादें थीं.
हरेंद्र इस मायाजाल से बाहर नहीं निकल पा रहे थे. इसका असर यह हुआ कि हरेंद्र ने फैसला किया कि अब वह मुंबई नहीं जायेगा. वह घर पर ही रहेगा. उन्होंने तकनीकी शिक्षा ली थी. मुंबई की जानी-मानी कंपनी जिंदल ग्रुप में फीटर की नौकरी थी. ठीक-ठाक पैसा मिल जाता था. हरेंद्र की कोई संतान नहीं थी.
वे अकेले मुंबई में रहते थे. घर पर उनकी पत्नी शिव कांति देवी (55) और मां रहती थीं. वे मुंबई से पैसे भेजते थे. मां की देखभाल भी हो रही थी और हरेंद्र भी अपने काम-धंधे से खुश रहते थे, लेकिन जब मां नहीं रहीं, तो उन्हें दुनिया की सुख-सुविधाएं अप्रिय लगने लगीं. उन्होंने एक और फैसला किया, जो गांव-जवार के लोगों की नजर में बड़ा फैसला था. उन्हाेंने वैराग्य ले लिया. घर-बार से विरक्त हो गये और गांव से करीब एक किलोमीटर दूर त्रिलोकचक पंचायत के कनकपुर गांव में मौजूद अपने आम के बगीया में रहने के लिए चले गये. यह बागीचा ऐसी जगह पर है, जहां करीब डेढ़ किलोमीटर की रेंज में कोई आबादी नहीं. पूरी तरह सन्नाटा. अगल-बगल खेत और यह छोटा-सा बागीचा.
फिलहाल घरवालों के रोकने-टोकने के बावजूद वे पीछे नहीं हटे और पत्नी शिव कांति के साथ इसी बागीचे में मठ बना कर रहने लगे. इससे पहले उन्होंने गांव की विधवा महिलाओं को बुलाया और उनको साड़ी व नाक का अाभूषण दिया. इसकी गांव में खूब चर्चा रही.
फिलहाल संन्यासी जीवन का फैसला लेने के बाद वे घास-फूस की झोंपड़ी बना कर रहने लगे और उन्होंने उसमें भगवान की प्रतिमा को जगह दी. नित्य पूजा-पाठ, भजन-कीर्तन उनकी दिनचर्या में शामिल हो गये. कुल पांच कट्ठे की जमीन के मालिक हरेंद्र उसमें खेती करके अपना जीवन यापन करने लगे.
मठ में एक चारपाई, बिस्तर, कुछ अनाज के गट्ठर और मामूली कपड़े. शुद्ध संन्यासी का जीवन. करीब 15 साल से मठ और इस दंपती से आसपास के लोगों का जबरदस्त लगाव हो गया. जब लोग मेहनत-मजदूरी करके उधर से गुजरते, तो मठ के पास मौजूद कुएं से पानी पीते. हरेंद्र व उनकी पत्नी भी मठ पर आनेवाले लोगों की सेवा करते. वहां पहुंचनेवाले लोगों को कभी मिश्री के दाने, तो कभी प्रसाद देते. लोगों के प्रति आत्मीय भाव रखने से पूरे इलाके की इस दंपती और मठ से जुड़ाव बढ़ता गया.
सुबह-दोपहर शाम लोगों का आना-जाना होता रहता था. वक्त गुजरता गया और हरेंद्र और उनकी पत्नी अपने घर-परिवार से दूर होते गये. अब इस उम्र में हरेंद्र को कोई लालसा नहीं था. किसी से कोई झगड़ा नहीं. कोई विवाद नहीं. बस अमन-चैन से जीवन कट जाये, भगवान की कृपा बनी रहे, इसी सोच के साथ उनकी जिंदगी की गाड़ी आगे बढ़ रही थी.
30 दिसंबर, 2015 की रात है. मठ में जो कुछ है रुखा-सूखा, शिव कांति ने बनाया. भोजन हुआ और फिर दोनों चारपाई पर सो गये. कुछ देर बाद शिव कांति को नींद आ गयी, पर हरेंद्र नहीं सो पा रहे हैं.
दरअसल उम्र जब ढलान के करीब हाेने लगती है, तो ठंड की रातें पीड़ा देने लगती हैं. भले ही भारी कंबल से शरीर को ढंक लें, पर ठंडी हवा हाड़ों तक पहुंच ही जाती है. यही असर आज हरेंद्र शर्मा को महसूस हो रही है. कभी इधर से हवा तो कभी उधर से. जैसे लग रहा है कि कोई पैर पर ठंडा पानी फेंक दिया हो. वे पैर मोड़ रहे हैं, पर राहत नहीं मिल रही है. नींद में भी खलल पड़ रहा है, बार-बार उठ कर बैठ जाते हैं.
ठिठुरन भरी इस रात में वह जगे हुए हैं. उन्हें उलझन हुई, तो साेचा कि थोड़ा बाहर टहल लेते हैं. चारपाई से उठे और कंबल ओढ़ कर बाहर निकल गये. बाहर अंधेरी रात, कोहरे की चादर और अजीब-सी वीरानी छायी हुई है. कुछ कदमों की आहट हुई, तो शिव कांति की भी नींद खुल गयी. वह बाहर निकली, तो देखा हरेंद्र अकेले खड़े हैं. अंदर चलने को बोली तो वह ठिठक-से गये, फिर कुछ सोच-विचार कर अंदर चले गये. जैसे ही चारपाई पर बैठे कि दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी. दरवाजा खोलने के लिए कहा जा रहा था. हरेंद्र ने जब पूछा कि आप लोग कौन हैं, तो जवाब नहीं मिला. अब दरवाजे पर पैरों से तेज धक्का दिया जा रहा है. दबंगई साफ झलक रही है. हरेंद्र कुछ समझ नहीं पा रहे हैं, यह क्या हो रहा है.
फिर उन्हें लगा कि जब उन्होंने किसी का कुछ बिगाड़ा ही नहीं, किसी से दुश्मनी नहीं तो फिर खतरा किस बात का. वह चारपाई से उठे और दरवाजा खोल दिया. बाहर पांच से छह लाेग मौजूद हैं. हाथ में धारदार हथियार लिये हैं. बाहर निकलने के लिए दहाड़ रहे हैं. हरेंद्र ने पूछा- बात क्या है, तो जवाब में गालियों की बौछार हो गयी. फिर उनका कॉलर पकड़ कर जमीन पर पटक दिया. मारपीट शुरू हो गयी.
हरेंद्र को लगा कि उनकी जान चली जायेगी. उन्होंने जेब से अपना मोबाइल फोन निकाला और अपने बड़े भाई बैकुंठ शर्मा को फोन मिलाया. वह फोन पर चिल्लाये, हमें चार-पांच लोगों ने घेर लिया है. वे हमें मार देंगे. रात के 9.17 बजे थे. हरेंद्र और बैकुंठ की अंतिम बातचीत थी. इसके बाद जो अपराधी उनकी मठ पर आये थे, बौखला गये. उन्हें लगा कि अभी गांव के लोग जुट जायेंगे. उन लोगों का राज खुल जायेगा, हम सब पकड़े जायेंगे. इनमें से दो अपराधियों ने हरेंद्र के दोनों हाथ पकड़ लिये और जमीन पर गिराने लगे. जान लेने और जान बचाने का संघर्ष शुरू हो गया. तीसरे ने मुंह दबा दिया. पूरी ताकत लगा दी, 10 मिनट तक गुत्थम-गुत्थी होती रही. शिव कांति यह सब देखी, तो चीख उठी.
वह छोड़ देने के लिए गिड़गिड़ाने लगी, लेकिन अपराधियों की आंखें गुस्से से लाल हो रही थीं, उसे भी दबोच लिया गया. दोनों पति-पत्नी की अब हत्या के लिए अपराधियों के हाथ उतावले हो रहे थे. इस दौरान जिस अपराधी के हाथ में तेज धारवाले हथियार थे, उसने हरेंद्र पर जोर से हमला कर दिया. हरेंद्र की कनपट्टी से लेकर आधी गर्दन खच से कट गयी. खून का फब्बारा निकल गया. हाथ-पांव जमीन पर पटकने लगे और फिर शांत हो गये.
यह सब शिव कांति अपनी आंखों से देख रही थी. उसका कलेजा फटा जा रहा था. वह चीख रही थी, लेकिन इस सूनसान जगह में उसकी आवाज किसी के कान तक नहीं पहुंच रही थी. धड़कनें तेज हो गयी थीं, सांस उखड़ने लगी थी, पांच अपराधियों के बीच जीवन रक्षा की उम्मीदें धीरे-धीरे दम तोड़ रहीं थीं, फिर भी संघर्ष जारी था. इस बीच अपराधियों ने उसे जमीन पर पटक दिया और सामने से गले पर जोरदार अटैक किया.
शिव कांति की आधी ठुढ़ी और गला गहराई तक कट गये. अपराधियों के हाथों हलाल हो चुकी शिव कांति छटपटाती रहीं. खून के छीटें अपराधियों के हाथों पर पड़े, लेकिन उन्होंने उनके हाथ-पांव को तब तक नहीं छोड़ा, जब तक उनकी धड़कनें ठहर नहीं गयीं. इसके बाद मठ में एक अटैची थी, जिसे लेकर अपराधी वहां से निकल गये. पाकीजगी के साथ सांस लेनेवाली यह दंपती अब नहीं रही. जाने क्यों उनकी पाकीजगी रास नहीं आयी. जमीन पर पसरे हुए खून जैसे सबसे कह रहे हों कि हमें बेकार न समझो, बूंद-बूंद इसका हिसाब लेगा.
इधर फोन पर हरेंद्र की बात सुनकर बैकुंठ कुछ लोगों के साथ मठ पर पहुंचे, लेकिन तब तक सबकुछ खत्म हो गया था. मठ पर दो लाशें, जमीन पर पसरे हुए खून, चप्पल, माला, बिखरीं चूड़ियां, हत्या के दौरान हुए संघर्ष की गवाही कर रही थीं.
तत्काल पुलिस को सूचना दी गयी. दिघवारा एसएचओ सतीश कुमार और एसडीपीओ सोनपुर मोहम्मद अली अंसारी मौके पर पहुंचे, घटनास्थल देखे और फिर शवों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. गांव में रात को ही इस हत्या के दुखद संदेश ने सबको झकझोर दिया. चौतरफा बस एक ही चर्चा.
आखिर हरेंद्र जैसे संत को कौन मार सकता है. क्यों मारेगा. आखिर क्या दुश्मनी हो सकती है. तमाम सवालों के बीच रात किसी तरह से कटी. अगले दिन 31 दिसंबर की सुबह मठ से लेकर हरेंद्र के घर तक भारी भीड़ जमा हो गयी. हर आदमी उनके व्यवहार और वैराग्य जीवन की कहानी सुनाता. पछतावा और शोक ने सबको घेर लिया.
फिर आक्रोश बढ़ने लगा. हत्या की अनजान वजह लोगों को कोसने लगा. असर यह हुआ कि सभी लोग दिघवारा थाने पहुंचे और थाने का घेराव किया. मामला बढ़ता देख छपरा एसपी सत्यवीर सिंह खुद मौके पर पहुंचे. उन्होंने लोगों से बात की और 48 घंटे के अंदर मामले का खुलासा करने का दावा किया. उन्होंने एफएसएल की टीम को घटनास्थल पर भेजा. वहां से जांच नमूने लिये गये. इसके अलावा हरेंद्र के भाई बैकुंठ शर्मा के आवेदन पर पांच अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किया गया. शव का पोस्टमार्टम कराया गया. इसके बाद मठ के पास एक ही कब्र में दोनों को दफना दिया गया.
उधर मामले की पड़ताल शुरू हो गयी है. पुलिस को मठ से कुछ दूरी पर हरेंद्र की अटैची मिली है, जिसे अपराधी फेंक गये थे. उसमें एक बीमा पाॅलिसी, आधार कार्ड और बीपीएल का एक स्मार्ट कार्ड मिला है. पुलिस ने इस बिंदु काे अपने जांच में शामिल किया है. दूसरा बिंदु उसकी जमीन है. वह कुल पांच कट्ठा जमीन के मालिक हैं, जो तकरीबन तीन लाख की है.
इसके अलावा हरेंद्र के पास और कुछ नहीं था. पारिवारिक विवाद की बात करें तो हरेंद्र पांच भाइयों में सबसे छोटे हैं. एक भाई बोकारों में रहते हैं, दूसरे बैकुंठ शर्मा हैं, जो गांव पर रह कर खेती करते हैं. बाकी हरेंद्र से पहले दो भाइयों की मृत्यु हो चुकी है. बैकुंठ का एक बेटा है. अभी वह पढ़ाई कर रहा है. यूं तो पुलिस को परिवार में कोई विवाद नहीं दिख रहा है, पर पुलिस हर एंगल को खंगाल रही है. एक और बात है, जिस पर पुलिस की नजर है. दो साल पहले उसके मठ पर कुछ लोगों ने मारपीट की थी, लेकिन मामला दब गया था.
दरअसल दिघवारा थाने से करीब छह किलोमीटर दूर पूरब दिशा में मौजूद इस मठ के बगल से कुरैया-इस्मैला गांव के लिए सड़क जाती है. मठ के पास इस सड़क पर काफी सुनसान होने से यहां अपराधियों का जमावड़ा रहता है. आये दिन यहां छिनतई की घटनाएं होती हैं. हरेंद्र की हत्या की वजह यहां से भी तलाशी जा रही है, किसी अपराधी की हरकत को हरेंद्र और उनकी पत्नी का देख लेना भी घातक हो सकता है.
राज छुपाने के लिए दोनों की हत्या वजह हो सकती है. फिलहाल पुलिस जांच कर रही है. उधर गांव के लोगों ने बरही के दिन भागवत व भजन कार्यक्रम करने की तैयारी की है. इसके बाद मठ के बगल में समाधि बनायी जायेगी. लेकिन हर आदमी इसका जवाब चाहता है. (इनपुट : छपरा से ठाकुर संग्राम सिंह व दिघवारा से अमित कुमार)
एक नजर
–हरेंद्र शर्मा मुंबई में िजंदल ग्रुप में फीटर की नौकरी करते थे. मां के निधन की सूचना पाकर लौटे थे दिघवारा.
— इसके बाद सदा के लिए दिघवारा में ही वैराग्य जीवन िबताने का उन्होंने लिया निर्णय और गांव से डेढ़ किमी दूर बगिया में मठ में रहने लगे.
— मठ पर आनेवाले राहगीरों और मजदूरों का करते रहे आवभगत, देते थे प्रसाद
— 30 दिसंबर की रात मठ पर चढ़े अपराधियों ने पहले तो उनकी जम कर की पिटाई, फिर मार डाला .
— सबूत नहीं रहे, सो हरेंद्र की पत्नी शिव कांति की भी हत्या कर दी.

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