भारत में सहिष्णुता है और रहेगी कॉलेज ऑफ कॉमर्स के राजनीति विज्ञान विभाग की ओर से हुआ मॉक यूथ पार्लियामेंट डिबेट लाइफ रिपोर्टर, पटनादेश में असहिष्णुता के नाम पर साहित्यकारों का पुरस्कार वापसी आंदोलन राजनीतिक आकाओं के निर्देश पर चला था. इन बुद्धिजीवियों के नजरिये से देखें तो ऐसा लगता है कि बिहार चुनाव तक ही देश में असहिष्णुता थी और परिणाम आने के बाद मुल्क में दोबारा सहिष्णुता वापस आ गयी है. देश में अदनान स्वामी को यहां की नागरिकता मिली, क्या यह किसी को नजर नहीं आता है. ये बातें अमित, रोहित के साथ अन्य स्टूडेंट्स ने ‘क्या भारत में असहिष्णुता है?’ विषय पर आयोजित मॉक यूथ पार्लियामेंट डिबेट सहिष्णुता का पक्ष रखते हुए कहा कि देश में सहिष्णुता है. असहिष्णुता तो जानबूझकर फैलायी जा रही है. यह आयोजन शनिवार को कॉलेज ऑफ कॉमर्स में राजनीति विज्ञान विभाग द्वारा किया गया.वहीं भारत में असहिष्णुता की पैरवी करते हुए सारण टाटी व झावेरी ने कहा कि पिछले एक साल से कई घटनाएं ऐसी हुईं जो दिल को दहलाती हैं. कन्नड़ विद्वान कलबुर्गी की हत्या और गाय का मांस खाने के झूठे आरोप में अखलाक की एक संगठित भीड़ द्वारा दर्दनाक हत्या ने पूरे देश को झकझोर दिया और इसके खिलाफ स्वतंत्र आवाजें उठने लगीं, जो बाद में मिलकर असहिष्णुता के खिलाफ प्रतिरोध की एक ऐसी मिसाल बनीं, जिसके दबाव में राजनीतिक ताकतों को भी सामने आना पड़ा. इसके साथ-साथ अनेक स्टूडेंट्स ने पक्ष और विपक्ष में अपनी बात रखी.विभागाध्यक्ष डॉ इंदिरा सिन्हा की अध्यक्षता में यह मॉक युथ पार्लियामेंट डिबेट आयोजित हुआ. मुख्य वक्ता संतोष कुमार ने अपनी बात रखी. इसके साथ-साथ पक्ष और विपक्ष में ताविश, रजनी रंन, चंद्र प्रकाश, सौरव के साथ अन्य स्टूडेंट्स ने अपनी बात रखी. इस कार्यक्रम में में यही निष्कर्ष निकला कि भारत में सहिष्णुता है और अगर कुछ लोगों द्वारा असहिष्णु वातावरण तैयार किया जा रहा है, तो हमें इसे रोकना होगा और इनके विरूद्ध सख्त कार्यवाही करनी होगी. यह प्रयास व्यक्तिगत, सामूहिक, सरकारी सभी स्तर पर किया जाना चाहिए. मौके पर डॉ अरविंद आदित्य, डॉ अनिल कुमार, डॉ आसा रानी, डॉ संजय कुमार, डॉ राघवेंद्र किशोर मौजूद थे.
भारत में सहष्णिुता है और रहेगी
भारत में सहिष्णुता है और रहेगी कॉलेज ऑफ कॉमर्स के राजनीति विज्ञान विभाग की ओर से हुआ मॉक यूथ पार्लियामेंट डिबेट लाइफ रिपोर्टर, पटनादेश में असहिष्णुता के नाम पर साहित्यकारों का पुरस्कार वापसी आंदोलन राजनीतिक आकाओं के निर्देश पर चला था. इन बुद्धिजीवियों के नजरिये से देखें तो ऐसा लगता है कि बिहार चुनाव तक […]
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