तू छुपी है कहां के जरिये दिखायी गयी लड़कियों की घटती जनसंख्या
तू छुपी है कहां के जरिये दिखायी गयी लड़कियों की घटती जनसंख्यानाटक में दर्शकों से भी किया गया संवाद लाइफ रिपोर्टर, पटनाकितना कोसियेगा? अगर आपको दहेज का लोभ था तो पहले कहते. हमलोग बाकी खर्चा कम कर देते. शादी के पहले तो आपलोग बोले कि आप लालची-लोभी नहीं है. बस बारात का बढ़िया स्वागत होना […]
तू छुपी है कहां के जरिये दिखायी गयी लड़कियों की घटती जनसंख्यानाटक में दर्शकों से भी किया गया संवाद लाइफ रिपोर्टर, पटनाकितना कोसियेगा? अगर आपको दहेज का लोभ था तो पहले कहते. हमलोग बाकी खर्चा कम कर देते. शादी के पहले तो आपलोग बोले कि आप लालची-लोभी नहीं है. बस बारात का बढ़िया स्वागत होना चाहिए हमलोग वही किए. आप मेरे घर वालों को चोट्टा बोल रहे हैं. लेकिन यह बताइये कि गहना और जोड़ा चढ़ाने के लिए जितना पैसा आपलोग लिये थे, उसमें कितना खर्च किये और कितना बचाये? बैंड का पैसा, बारात लगाने का पैसा, बारात को खिलाने का पैसा सब तो दिया गया आप लोग को लेकिन आप का मन नहीं भरा. सोमवार को लोक पंच की दो दिवसीय प्रस्तुति के अंतिम दिन नाटक ‘तू छुपी है कहां’ के अंतिम कड़ी का यह संवाद, कालिदास रंगालय के प्रेक्षागृह में बैठे सभी दहेज लोभी को झकझोर दिया. बहुत दिनों के बाद दर्शकों को कुछ अलग देखने को मिला. इश्तियाक अहमद द्वारा लिखित व उदय प्रताप सिंह निर्देशित यह नाटक में देश में लगातार गिर रही महिलाओं की जनसंख्या की पड़ताल करने की कोशिश थी. नाटक में पांच कड़िया हैं और हर कड़ी किसी ऐसे कारण को सामने लाती है जो महिलाओं और लड़कियों की घटती जनसंख्या के लिए जिम्मेदार है. नाटक की दूसरी कड़ी गर्वपात व चौथी कड़ी बालिका-विवाह को दर्शाति है. इन दोनों कड़ी में पहली बार प्रयोग के तौर पर दर्शकों से संबंध करने का सफल प्रयास किया गया. किसी भी नाटक में हिंसा को नहीं दिखा कर मंच को अंधेरा कर दिया जाता है. इसके बाद सूत्रधार दर्शक से बात करते हैं कि क्या जो हमारे समाज में घटनाएं घट रही है वो सही है? और सही है तो इसका सबसे बड़ा जिम्मेदार कौन है? इसे कैसे सही किया जा सकता है? महिला अत्याचार व बेटी बचाओं को बढ़ावा देना का काम समाज है. इसमें कई दर्शक भी अपनी बात रखते हैं. नाटक में पहले ही सभी दर्शकों को ये बता दिया गया था कि नाटक में आप लोगों से संवाद होगा. इसमें आपलोग बढ़-चढ़ कर शामिल ले सकते हैं. नाटक में है पांच कड़ीनाटक की शुरुआत बेटे की चाहत रखने वाले पात्र से होती है. एक पत्नी अपने पति से कहती है एक बेटा की चाहत में सात बेटी पैदा कर लें. तभी पति कहता है कि कुछो हो हमको एगो बेटा चाहिए. इसके बात बात इतनी बढ़ती है कि वह दूसरी शादी करने की धमकी दे देता है. वहीं दूसरी कड़ी में गर्भपात के बारे में दिखाया गया. तीसरी कड़ी में लड़की के स्वास्थ्य में बरती जाने वाली लपरवाही को दिखाया गया. चौथी कड़ी में बालिका-विवाह को दिखाया गया और अंतिम पांचवी कड़ी में दहेज प्रथा को दिखाया गया. इस नाटक में महिला कलाकार मुख्य व पुरूष कलाकार विलेन की रोल में नजर आये.