मनोनयन कोटे के विधान पार्षदों के मामले में सुनवाई एक फरवरी को
पटना : पटना उच्च न्यायालय में एक फरवरी को मनोनयन कोटे के 12 विधान पार्षदों की सदस्यता को लेकर दायर याचिका की सुनवाई होगी. कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश इकबाल अहमद अंसारी और जस्टिस चक्रधारी शरण सिंह की खंडपीठ में बुधवार को इस मामले की सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान सरकारी वकील ने कोर्ट को मनानेयन कोटे […]
पटना : पटना उच्च न्यायालय में एक फरवरी को मनोनयन कोटे के 12 विधान पार्षदों की सदस्यता को लेकर दायर याचिका की सुनवाई होगी. कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश इकबाल अहमद अंसारी और जस्टिस चक्रधारी शरण सिंह की खंडपीठ में बुधवार को इस मामले की सुनवाई हुई.
सुनवाई के दौरान सरकारी वकील ने कोर्ट को मनानेयन कोटे के विधान पार्षदों के बैकग्राउंड की जानकारी दी. सरकारी वकील ने कहा कि कोर्ट से कहा कि राज्यपाल की अधिसूचना से 12 सदस्यों का मनोनयन हुआ है. लेकिन, पटना उच्च न्यायालय को राज्यपाल के अधिसूचना पर हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है. इस पर कोर्ट की सुनवाई टाल दी गयी. अब सोमवार एक फरवरी को इस मामले में सुनवाई होगी. इस दिन कोर्ट यह देखेगी कि वह राज्यपाल के अधिसूचना पर कोई हस्तक्षेप कर सकती है या नहीं.
इसके बाद आगे की बहस होगी. इसके पहले बुधवार को जब सुनवाइ आरंभ हुई तो सरकारी वकील ने कोर्ट को बताया कि सम्राट चौधरी, रामलखण राम रमण और जावेद इकबाल अंसारी समेत अन्य तीन को समाजसेवा कोटे से मनाेनयन किया गया है. याचिकाकर्ता के वकील का कहना था कि मनानेयन कोटे में कई प्रकार की गड़बड़ियां हुई है. पहला एक समय में चार सदस्यों का ही मनोनयन संभव है. लेकिन, सरकार ने 12 का मनोनयन कर दिया.
दूसरी गड़बड़ी यह ह़ुई कि एक भी सदस्य का उचित कोटे से मनोनयन नहीं किया गया है. वकील ने कोर्ट को बताया कि 20 मई,2015 को 12 सदस्यों के मनानेयन का प्रस्ताव आया. 22 मई को कैबिनेट में इसे मंजूरी मिली आैर 29 मई को राज्यपाल की मंजूरी मिल गयी. गौरतलब है कि जीतन राम मांझी के मुख्यमंत्री काल में मई 2015 में बिहार विधान परिषद की मनोनयन कोटे की सभी 12 सीटों को भरने का निर्णय लिया गया था.