न इन्फ्रास्ट्रक्चर, न स्टूडेंट, बंद क्यों नहीं कर देते पटना डेंटल कॉलेज
इंडियन डेंटल एसोसिएशन के बिहार चैप्टर ने दिया कॉलेज बंद करने का प्रस्ताव दो सालों से कॉलेज में नहीं हुआ है एक भी नामांकन रिंकू झा पटना : जब स्टूडेंट ही नहीं तो कॉलेज का क्या मतलब बनता है. पिछले दो सालों यानी 2014 और 2015 सत्र के लिए पटना डेंटल कॉलेज में एक भी […]
इंडियन डेंटल एसोसिएशन के बिहार चैप्टर ने दिया कॉलेज बंद करने का प्रस्ताव
दो सालों से कॉलेज में नहीं हुआ है एक भी नामांकन
रिंकू झा
पटना : जब स्टूडेंट ही नहीं तो कॉलेज का क्या मतलब बनता है. पिछले दो सालों यानी 2014 और 2015 सत्र के लिए पटना डेंटल कॉलेज में एक भी नामांकन नहीं हुआ. सीटें पूरी तरह से खाली रह गयी हैं.
ऐसे में कॉलेज को बंद कर दिया जाना ही बेहतर होगा. यह प्रस्ताव इंडियन डेंटल एसोसिएशन के बिहार चैप्टर की ओर से दिया गया है. एसोसिएशन के बिहार चैप्टर ने शनिवार को इंडियन डेंटल एसोसिएशन और बिहार संयुक्त प्रतियोगिता परीक्षा परिषद (बीसीइसीइ) को पत्र लिखा है. इसमें बीसीइसीइ को परीक्षा में इस कॉलेज की सीटें खत्म करने का प्रस्ताव दिया गया है. वहीं, इंडियन डेंटल एसाेसिएशन को कॉलेज को बंद करने के बारे में कहा गया है.
सीटें 40, नामांकन जीरो
बिहार में डेंटल की पढ़ाई के लिए पटना डेंटल कॉलेज एकमात्र सरकारी कॉलेज है. हर साल बीसीइसीइ की ओर से 40 सीटों पर नामांकन के लिए एंट्रेंस एग्जाम में सफल अभ्यर्थियों को भेजा भी जाता है.
इसके बावजूद नामांकन नहीं लिया जा रहा है. ऐसे में अभ्यर्थी राज्य में या राज्य के बाहर चल रहे प्राइवेट डेंटल कॉलेज में नामांकन लेते हैं.
यहां साल की फीस 2500 रुपये, प्राइवेट में पांच लाख
पूर्व राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के ड्रीम प्रोजेक्ट के रूप में पटना डेंटल कॉलेज की स्थापना 1960 में की गयी थी. 1990 तक यहां मात्र 600 रुपये प्रति वर्ष फीस ली जाती थी. वर्तमान में यहां की फीस 2500 रुपये प्रति वर्ष है. वहीं, प्राइवेट कॉलेजों में छात्रों को पांच से छह लाख रुपये प्रति वर्ष देने पड़ते हैं. ज्ञात हो कि बिहार में अभी नौ प्राइवेट डेंटल कॉलेज चल रहे हैं.
इन्फ्रास्ट्रक्चर नहीं होने से नामांकन पर लगी है रोक
न स्टूडेंट, न पर्याप्त शिक्षक और न प्रिंसिपल. यह हाल है इस कॉलेज का. इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी के कारण इंडियन डेंटल एसोसिएशन की आेर से नामांकन पर रोक लगा दी गयी है.
इसके बावजूद बीसीइसीइ की ओर से हर साल 40 सीटें पटना डेंटल कॉलेज में नामांकन के लिए भेजी जाती है. एंट्रेंस एग्जाम पास करने के बाद अभ्यर्थी को पता चलता है कि यहां नामांकन. वर्तमान में कॉलेज में मात्र तीन टीचर ही कार्यरत हैं.
कॉलेज को मिलता है करोड़ों का ग्रांट
1960 में खुले पटना डेंटल कॉलेज को चलाने में सरकार का हर साल करोड़ों रुपये का खर्च होता है. इसके बावजूद यहां करोड़ों रुपये की मशीनें बेकार पड़ी हुई हैं.
पहले काॅलेज में फ्री इंटर्नशिप की सुविधा थी. वर्तमान में पैसे लेकर इंटर्नशिप करायी जाती है. पहले हमेशा 300 से 400 मरीज ओपीडी में रहते थे. अब इसकी संख्या 50 पर आकर थम गयी है. अभी तक एक ही विषय में पीजी की पढ़ाई हो पा रही है.
पिछले दो सत्रों से कॉलेज में एक भी नामांकन नहीं हुआ है. स्टूडेंट्स मजबूरी में प्राइवेट कॉलेज में दाखिला लेने काे मजबूर होते हैं. नामांकन नहीं होने से काॅलेज की मान्यता भी जा सकती है. बीसीइसीइ को हमने पत्र लिख कर प्रस्ताव दिया है कि डेंटल में नामांकन की सीटों काे खत्म कर दें.
डॉ अमलेश कुमार, सचिव, इंडियन डेंटल एसोसिएशन
यह मामला बीसीइसीइ के पास भी आता है, लेकिन हम उसमें कुछ नहीं कर सकते हैं. अभी प्रस्ताव हमारे पास आया नहीं है.
अनिल कुमार
ओएसडी, बीसीइसीइ
हर साल सैकड़ों छात्र ऐसे होते हैं, जो पटना डेंटल कॉलेज में नामांकन लेना चाहते हैं. लेकिन, उन्हें प्राइवेट कॉलेज का रुख करना पड़ता है.
विपिन कुमार
डायरेक्टर, गोल इंस्टीट्यूट