गांधी की याद में मौन रखना भी भूले
पटना : शहीद दिवस के मौके पर तीस जनवरी को दिन के 11 बजे एक मिनट के लिए साइरन बजता था. इस समय जो लोग जहां होते वहीं खड़े हो जाते. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और देश की आजादी की लड़ाई में हुए शहीदों की याद में एक मिनट का मौन रखा जाता. लेकिन, इस बार […]
पटना : शहीद दिवस के मौके पर तीस जनवरी को दिन के 11 बजे एक मिनट के लिए साइरन बजता था. इस समय जो लोग जहां होते वहीं खड़े हो जाते. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और देश की आजादी की लड़ाई में हुए शहीदों की याद में एक मिनट का मौन रखा जाता. लेकिन, इस बार साइरन नहीं बजा और मौन भी नहीं रखा गया. हम साइरन बजने का इंतजार करते ही रह गये.
अपने लोगों को कह रखा था कि साइरन बजे तो तुरंत बता देना़ न तो साइरन बजा और न मौन रख पाये. रिजर्व बैंक आफ इंडिया और भारतीय स्टेट बैंक की ओर से दिन के 11 बजे साइरन बजाये जाते थे. हमने तो इस बार सुना ही नहीं. हो सकता है शहर की भीड़ में मुझे सुनाई नहीं दिया हो, पर इतना तो तय है कि शहीदों का सम्मान कम होता जा रहा है. 18 वर्ष के खुदी राम बोस फांसी चढ गये, सरदार भगत सिंह को भी फांसी दे दी गयी. पर, हम आज उन्हें भूलते जा रहे हैं. गांधी की हत्या के आरोपी जिस विचारधारा से आते थे, उसी की आज दिल्ली में हुकूमत है. कुछ लेफ्ट वाले हैं जो भगत सिंह को याद करते हैं.
लेकिन, भगत सिंह, महात्मा गांधी किसी एक दल और विचारधारा के नहीं हैं, वह आजादी की लड़ाई के सिपाही थे और देश प्रेमी थे. उनकी याद में हम एक मिनट मौन भी नहीं रखना चाहते. महात्मा गांधी और शहीदों की याद में 30 जनवरी को दिन के 11 बजे साइरन बजाने की परंपरा रही है. हम बचपन से इसे देखते और सुनते आये हैं.
केंद्र की मौजूदा सरकार आरएसएस की सरकार है. आरएसएस विचारधारा के कुछ सज्जन लोगों को छोड़ दें तो उन्हें महात्मा गांधी पचते नहीं. दिल्ली से पटना तक गांधी के विचारधारा के खिलाफ राजनीति चल रही है. एक ओर गांधी के हत्यारे का अलंकरण किया जा रहा और भ्रष्टाचार और जातिवाद का बड़े वृक्ष के रूप में उभर रहा है. मौन व्रत नहीं रखना गांधी के विचारधारा से धीरे-धीरे पल्ला झाड़ने जैसा है. गांधी की शहादत भारत की एकता के लिए थी, हिंदुत्व के लिए नहीं.
डा रामजी सिंह, गांधीवादी विचारक