घर का बिगड़ैल, जनप्रतिनिधि, हरकतें शातिराना
पटना : मजबूत कद काठी, ऊंचा कद, चौड़ा माथा, चमकता ओजपूर्ण चेहरा. एक खुशदिल इनसान और इरादा कुछ कर गुजरने का. छात्र जीवन में कड़ा संघर्ष, पढ़ाई के लिए साइिकल से यात्रा और पटना में मामूली डेरा. दृढ़ इच्छा शक्ति, कड़ा परिश्रम और नजरें धुनषधारी अर्जुन की तरह लक्ष्य की तरफ. तमाम जद्दोजहद के बाद […]
पटना : मजबूत कद काठी, ऊंचा कद, चौड़ा माथा, चमकता ओजपूर्ण चेहरा. एक खुशदिल इनसान और इरादा कुछ कर गुजरने का. छात्र जीवन में कड़ा संघर्ष, पढ़ाई के लिए साइिकल से यात्रा और पटना में मामूली डेरा. दृढ़ इच्छा शक्ति, कड़ा परिश्रम और नजरें धुनषधारी अर्जुन की तरह लक्ष्य की तरफ. तमाम जद्दोजहद के बाद एक शख्स निखर कर सामने आया. अपनी प्रतिभा की बदौलत सबका चहेता मेडिकल स्टूडेंट डॉ उत्पलकांत सिंह (55). पढ़ाई के उस दौर में पीएमसीएच कैंपस में बेहतरीन छवि, जबरदस्त मेधा की बदौलत एमबीबीएस की डिग्री मिली.
डॉक्टर की डिग्री हासिल करने के बाद उत्पलकांत और मजबूती से अपनी मंजिल की ओर बढ़ने लगे. पढ़ाई के लिए इंगलैंड गये. उन्होंने लंदन में एमडी, पीएचडी और एफआरसीपी की डिग्री ली. इसके बाद वे यूएसए से एफआइएपी और एफसीसीपी किये. अब एक सामान्य परिवार का बेटा, बिहटा के अमहारा का लाल शिशु रोग विशेषज्ञ बन कर भारत लौटा. बिहार जन्मभूमि थी और कर्मभूमि भी उन्होंने अपने प्रदेश को ही चुना. एनएमसीएच में प्रोफेसर हुए. बाद में बीआरएस ले लिये. पटना के राजेंद्रनगर में (रोड नंबर 8) आलीशान मकान और दिनकर गोलंबर के पास क्लीनिक.
कंकड़बाग में अपना नरसिंग होम. यहां से शुरू हुई डॉक्टर उत्पलकांत की मेडिकल प्रैक्टिस. शुरुआत में जद्दोजहद करना पड़ा, लेकिन वे कभी हिम्मत नहीं हारे. धीरे-धीरे हासिल ख्याति हासिल होती चली गयी. एक जाने-माने डॉक्टर की हस्ती पटना में कायम हो गयी. हालांकि डॉक्टर उत्पलकांत सिंह का पांव पटना में जमाने में उनके ससुर डॉ विजय सिंह का भी बड़ा योगदान था. वे उस समय पीएमसीएच के एचाेडी थे, जब उत्पलकांत एमबीबीएस कर रहे थे. पूत के पांव पालने में ही दिखते हैं, यहां पर यह कहावत चरितार्थ हुई और पढ़ाई के वक्त ही डॉक्टर वि जय सिंह ने उत्पलकांत की काबिलयत काे परखा, समझा और अपनाया.
उन्होंने अपनी बेटी डॉ रीता सिंह की शादी कर उत्पलकांत को अपना दामाद बनाया. जब उत्पलकांत यूएसए से पढ़ाई करके लौटे, तो कदमकुआं इलाके में (बुद्ध मूर्ति के पास) रहनेवाले उनके ससुर से हर तरह की मदद मिली. हमेशा एक अभिभावक के रूप में उत्पलकांत ने अपने सिर पर अपने ससुर का हाथ महसूस किया. करीब 35 साल पहले उत्पलकांत शहर के मशहूर डॉक्टर बन चुके थे. रास्ता तैयार था. बस जरूरत थी जिंदगी की गाड़ी की सुरक्षित ड्राइव की. उनकी खुशहाल जिंदगी में एक और सितारा तब जड़ गया, जब उन्हें बेटी के बाद पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. डॉक्टर के घर से लेकर ससुराल तक बधाइयां गूंजी. घर का आंगन मुस्कुराया और काेना-कोना हर्षित हुआ.
डॉक्टर दंपती की लालसा पूरी हुई. खानदान को वारिस मिला. दिल की तमन्ना पूरी हुई. बेटी के बाद बेटा यानी एक संतुलित परिवार, जिसकी इच्छा हर किसी इनसान को होती है. बड़े लाड़-प्यार से लालन-पालन हुआ. इस परिवार को ससुराल से भी माेहब्बत मिलती रहती थी, इसलिए दोनाें बच्चों को नाना-नानी का भी प्यार खूब मयस्सर हुआ. बेटे के जन्म के बाद उसको लेकर महत्वाकांक्षाएं भी हिलोरें मारने लगीं. बेटा आगे क्या करेगा, इसकी चरचा परिवार में गाहे-बगाहे होती रहती. उससे कितनी अपेक्षाएं थीं और बेटे के प्रति इस दंपती का क्या सोच था, इसका प्रतिबिंब उसके नाम से दिखता है.
बेटे का नाम सिद्धार्थ रखा गया. शायद इसमें उस सिद्धार्थ का अक्स देखा गया, जिन्हें भगवान की मान्यता मिली और बिहार के बोधगया में उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई. दरअसल हर शख्स वही करता है, जो उसके दिल को अच्छा लगे, उसी पदचिह्न पर चलने की कोशिश होती है, जिसने करिश्मा किया हो, शुभ की ख्वाहिश में फैसले लिये जाते हैं, लेकिन आगे वक्त और किस्मत ने क्या तय कर रखा है यह कि से पता.
अच्छी पृष्ठिभूमि, शिक्षित परिवार, शिक्षित ननिहाल में पल रहा सिद्धार्थ आगे अच्छा करेगा, शायद यही सोच डॉक्टर उत्पलकांत की रही होगी. उत्पलकांत ने अपनी पढ़ाई के लिए भले ही संघर्ष किया हो, लेकिन बेटे-बेटी को पढ़ाने के लिए न पैसों की कमी थी और न ही संसाधन का अभाव. आगे चल कर बड़ी बेटी मेडिकल स्टूडेंट बनी और पीएमसीएच के प्रोफेसर डॉ वी शर्मा के बेटे से उसकी शादी हुई. दोनों लंदन में शिफ्ट हो गये.
इधर डॉक्टर को सिद्धार्थ के बाद दूसरा बेटा हुआ. अब इन दोनों की पढ़ाई और उन्हें केयर की जिम्मेदारी डॉ उत्पलकांत और उनकी पत्नी पर थी. लेकिन, सिद्धार्थ (वर्तमान उम्र 34) शुरू से ही शरारती था. शायद ज्यादा लाड़-प्यार ने उसे जिद्दी बना दिया. उसकी हर ख्वाहिश परिवार में पूरी होती रही, उसने जब-जिस चीज के लिए जिद किया, वह उसे हासिल हुआ. धीरे-धीरे यह आदत उसके व्यक्तित्व में शामिल हो गया.
जब वह कॉलेज लाइफ में पहुंचा तो उसका जिद्दी स्वभाव अपना असर दिखाने लगा. इसी वजह ने सिद्धार्थ और डॉक्टर उत्पलकांत के जीवन में टर्निंग प्वाइंट लाया. वर्ष 1998 में सिद्धार्थ साइंस कॉलेज पटना में 11वीं का छात्र था. कॉलेज आने-जाने की जो व्यवस्था थी, वह अन्य छात्रों से अलग. सिद्धार्थ दो चरपहिया वाहनों से कॉलेज जाता था. यहां बता दें कि उस दौर में क्राइम बढ़ा हुआ था. खास करके डॉक्टर के बेटों के किडनैप होने के चांस हुआ करते थे, इसलिए शायद डॉक्टर उत्पलकांत ने सुरक्षा के दृष्टिकोण से सिद्धार्थ को कॉलेज जाने और आने के लिए चार-पांच निजी गार्ड और दो गाड़ियां दे रखा था. लेकिन, इस सुविधा को सिद्धार्थ ने अपने रुतबे से जोड़ा और कॉलेज में धाक जमाने लगा.
घर से पैसा भी खूब मिल रहा था, वह दोनों हाथ से पैसा खर्च करता, जिससे कॉलेज में उसकी पहचान भी बनी और फ्रेंडसर्किल भी बढ़ती गयी. यहां किशोर मन में एक इच्छा ने जन्म लिया. इस इच्छा को पूरी करने के लिए सिद्धार्थ का वही जिद्दी स्वभाव सामने आकर खड़ा हो गया. हुआ यूं कि सिद्धार्थ के ही दोस्त अभिषेक कुमार की कॉलेज की एक छात्रा से दोस्ती थी. धीरे-धीरे दोनाें एक-दूसरे से प्रेम करने लगे. लेकिन सिद्धार्थ भी उसी छात्रा से प्रेम करता था, जो एकतरफा था.
जब उसने अभिषेक को समझा-बुझा कर बीच से हटाना चाहा तो अभिषेक और उसकी गर्ल फ्रेंड और करीब हो गये. लेकिन, सिद्धार्थ की हरकतें कम नहीं हुईं. उसने एक दिन लड़की को कुछ गिफ्ट दिया, जिसे तोड़ कर फेंक दिया गया. लड़की ने साफ कर दिया कि वह अभिषेक से ही दोस्ती रखना चाहती है. सिद्धार्थ को यह मंजूर नहीं था. उसने अभिषेक को धमकी दी. इस घटना के करीब एक सप्ताह बाद अभिषेक की गोली मार कर हत्या कर दी गयी.
इस हत्याकांड ने शहर में बड़ा बवंडर खड़ा कर दिया. हत्या में सिद्धार्थ और उसके सहयोगियों का नाम आया. मशहूर डॉक्टर उत्पल कांत का बेटा कातिल बन बैठा. गली-गली में चर्चा . मेडिकल कॉलेज से लेकर पूरे मेडिकल सर्किल में चर्चा. यहां तक अमेरिका और इंग्लैड तक पहचान रखने वाले डॉक्टर उत्पलकांत को काफी कुछ झेलना पड़ा. इज्जत, शोहरत, मान-प्रतिष्ठा सब पर आंच आयी.
उत्पलकांत खुद बहुत दुखी हुए. बेटे को बचाने के लिए कानूनी लड़ाई तो वह लड़ ही रहे थे, लेकिन समाज के सवाल उन्हें पीड़ित करते रहते. घर के कोने में रोते और बाहर सबका सामना करते. जब चर्चा चली, तो लोगों ने यहां तक कह डाला कि उत्पलकांत तो बच्चों के डॉक्टर हैं. उन्हाेंने बहुतों के बच्चे को नयी जिंदगी दी है, दवा-इलाज किया है, अपने हुनर से कइयों मां-बांप को खुशियां दी हैं, पर अपनी औलाद के पालन-पोषण में कहां कमी रह गयी.
कहां चूक हो गयी, कहां लापरवाही हो गयी, आखिर बेटा उनसे संभला क्यों नहीं. इन तमाम सवालों का वह हमला झेलते रहे. फिलहाल तमाम छानबीन के बाद हत्या के सात दिन बाद कदमकुआं थाने में सिद्धार्थ के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज हुआ. गहरी छानबीन चली, सभी अभियुक्त पकड़े गये. सिद्धार्थ को भी जेल हुई. इधर बेटे को बचाने क लिए डॉक्टर उत्पल कांत ने कोर्ट की शरण ली. लोअर कोर्ट, हाइकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट गये.
अथक प्रयास जारी रहा. इधर, जुबेनाइल एक्ट में संशोधन हुआ और सिद्धार्थ को 15 मई, 2009 को जेल से रिहा किया गया. जेल में रहते हुए सिद्धार्थ के ऊपर फुलवारी और बेऊर में भी आपराधिक मामले दर्ज हुए. मारपीट व हत्या की साजिश के मामले में शामिल रहे, लेकिन साक्ष्य के अभाव में आरोप सिद्ध नहीं हुए. एक मामले को पुलिस ने संज्ञान ही नहीं लिया.
बाद में विक्रम थाने में भी आपराधिक मामला दर्ज हुआ. करीब 10 सालों के भीतर सिद्धार्थ की पूरी छवि अापरधिक हो चुकी थी. मारपीट करना, कहीं भी उलझ जाना उसकी शगल बन गयी. जेल से छूटने के बाद उत्पलकांत ने एक बार फिर कोशिश की कि सिद्धार्थ को रास्ते पर लाएं. उन्होंने सिद्धार्थ की दिशा को राजनीति की तरफ मोड़ा. वर्ष 2010 में लोजपा के टिकट पर सिद्धार्थ विक्रम विधानसभा से मैदान में उतरे.
अच्छी फाइट हुई और वह भाजपा प्रत्याशी अनिल सिंह के सामने महज 2000 हजार वोट से हार गये. लेकिन, इस चुनावी लड़ाई ने सिद्धार्थ के जीवन में एक बदलाव लाया. सबकुछ पटरी पर आता दिखा. सिद्धार्थ का भी मन लग गया. वह विक्रम विधानसभा क्षेत्र में पूरी तरह से सक्रिय हो गया. मेडिकल क्षेत्र में पिता की कृपा थी ही, इसे हथियार बनाया और चुनावी क्षेत्र में फ्री मेडिकल कैंप के जरिये सिद्धार्थ पिछले पांच सालों में सबके चहेते बन गये. एक समाज सेवी के रूप में लोग उन्हें देखने लगे.
जब वर्ष 2015 का विधानसभा चुनाव आया, तो वह प्रबल दावेदार थे. इस बार लोजपा एनडीए के गठबंधन में शामिल हो गयी थी. टिकट का तालमेल नहीं बैठा. बाद में सिद्धार्थ को कांग्रेस पार्टी से टिकट मिला. उन्होंने चुनाव में जमकर प्रचार किया़ वहीं पिता डॉ उत्पलकांत की सेवा काम आयी. चुनाव हुआ और इस बार सिद्धार्थ ने एतिहासिक जीत हासिल की.
विक्रम की जनता ने उसे हाथों-हाथ लिया. मतगणना के दिन सबसे ज्यादा मतगणना स्थल पर किसी के समर्थक आये थे, तो वे सिदार्थ के थे. बड़ी जीत मिली, जनता भी खुश, सिद्धार्थ भी खुश और उत्पलकांत की तो बाछें खिल गयीं. एक बार फिर सबकुछ रास्ते पर आ गया. सिद्धार्थ में उम्मीदें दिखने लगीं. पुरानी बातें बासी हो गयीं और शुरू हुआ नया सफर.
सिद्धार्थ अपने विक्रम विधान सभा क्षेत्र में सक्रिय हो गये और उत्पलकांत अपने क्लीनिक में मशगूल हो गये. लेकिन यह सबकुछ ज्यादा दिन नहीं चला. विधायक बनने के तीन महीने के भीतर अंदरखाने क्या गुल खिल रहे थे, इसका पता 28 जनवरी को तब चला, जब मसौढ़ी थाने में विधायक अौर उनके सहयोगियों के खिलाफ लड़की के अपहरण का केस दर्ज हो गया. लड़की के पिता अभय कुमार ने आरोप लगाया कि विधायक ने उनकी बेटी निधि का अपहरण कर लिया है.
इस खबर ने एक बार फिर उस सिद्धार्थ को सुर्खियों में ला दिया, जो विधायक बनने के पहले था. टीवी चैनल और अखबार ने आरोपित विधायक को सवालों के कठघरे में खड़ा कर दिया. विधायक चौबीस घंटे लापता था. उनका ड्राइवर, गाड़ी, सरकारी अंगरक्षक सब अंडरग्राउंड. अगले दिन इसका पटाक्षेप हुआ. निधि और विधायक के साथ रहनेवाला पंकज सीधे सीनियर एसपी कार्यालय पहुंचे. उन्होंने खुद को बालिग बताया और अपनी मरजी से शादी करने की बात कही.
मामला पलट गया. दोनों से खुद से एक साथ घर से भागने की बात स्वीकार की और विधायक का इसमें हाथ नहीं होने का दावा किया. दोनों ने विधायक को पाक-साफ करार दिया. दोनों को सचिवालय थाने ले जाया गया. वहीं पर विधायक और उनके पिता उत्पलकांत भी पहुंचे. पुलिस ने लगभग इस पूरे मामले से विधायक को क्लीन चीट दे दी. इसके बाद लड़की का कोर्ट में 164 के तहत बयान कराया गया.
बयान में उसने वही बात कही, जो पुलिस के सामने स्वीकार चुकी थी. अब निधि के पिता अभय कुमार के आरोप को झुठलाया जाने लगा. उन्होंने बेटी को बरगला देने की बात कही और इस खेल के पीछे विधायक की शातिराना चाल बताया. उन्होंने ट्रेन का टिकट और त्रिशुल टूर एंड ट्रैवेल्स की रसीद पेश की, जो निधि के बैग से घर में मिली थी. उसमें एक चीज स्पष्ट थी कि 26 अप्रैल से लेकर 28 अप्रैल, 2014 को निधि और सिद्धार्थ एक साथ दिल्ली से पठानकोट और वहां से शिमला टूर पर थे.
होटल में भी ठहरने के प्रमाण है. अभय ने तब भी दावा किया था और अब भी दावा किया है कि निधि और विधायक के संबंध दो साल पुराने हैं. उन्होंने बताया कि निधि विक्रम में अपने ननिहाल में रहती थी. इस दौरान सिद्धार्थ की तरफ से आइ कैंप लगवाया गया था. निधि ने अपनी नानी की आंख का ऑपरेशन करवाया था. इसी दौरान वह सिद्धार्थ के संपर्कमें आ गयी. इसके बाद दोनों चोरी-चुपके मिलते रहे.
अभय उस समय पटना के चांदमारी रोड में रहते थे. जब इसकी जानकारी उनको हुई तो वह लड़की पर दबाव बनाने लगे. जब सिद्धार्थ को लड़की के माध्यम से पता चला तो अभय का आरोप है कि सिद्धार्थ विधायक रहते हुए उन्हें रात में हनुमाननगर में बुलाया और रायफल का भय दिखा कर रास्ते से हटने की बात कही. इससे वह डर गये थे. इसके बाद अभय के मुताबिक विधायक ने निधि को जनवरी माह में ही पटना के पार्वती गर्ल्स हॉस्टल में जबरदस्ती रख लिया था.
कंकड़बाग पुलिस की मदद से निधि उसे दोबारा मिली. इसके बाद अभय ने थाने में कोई शिकायत तो नहीं की, पर पटना से अपना डेरा समेट लिया. वह मसौढ़ी चले गये, लेकिन जब मसौढ़ी में निधि को लेकर हाइप्रोफाइल ड्रामा रचा गया तो वह मुखर हो गये. उन्होंने 28 जनवरी को विधायक के खिलाफ केस दर्ज कराया. लेकिन निधि के बयान ने सारे आरोप को खारिज कर दिया. अभय का कहना है कि विधायक की करतूत को दबाने और मैनेज करने में उनके पिता उत्पलकांत की बड़ी भूमिका है.
उत्पलकांत निधि के बरामद होने के बाद अपनी पत्नी और बहू के साथ अभय के घर मसौढ़ी पहुंचे थे. वहां पर माफी मांग रहे थे और सिद्धार्थ को बच्चा समझ कर माफ करने की बात कही थी, लेकिन उनके साथ मौजूद डीएसपी व स्थानीय पुलिस की भूमिका दूसरे तरह की थी. पुलिस ने अभय को हड़काया, अभद्रता भी की. उधर पता चला कि पंकज भी शादीशुदा है, लेकिन उसके घरवालों ने काेई कड़ा विरोध नहीं जताया. पंकज के बच्चे भी हैं, पर उसकी पत्नी ने भी कोई खास विरोध नहीं कि या.
अभय का आरोप है कि पुलिस-प्रशासन, पंकज और उसका परिवार सब मैनेज हो गया. वह अकेले पड़ गये. इस घटना ने उनकी बड़ी बेटी का होनेवाला रिश्ता तोड़ दिया. वह बीमार हैं और चारपाई पर हैं. अब उनका कहना है कि वह सीएम के दरबार में गुहार लगायेंगे. साक्ष्य के आधार पर कार्रवाई की मांग करेंगे.
उधर डॉक्टर उत्पलकांत बेटे की इसमें किसी प्रकार की भूमिका होने से इनकार कर दिया. उनकी तरफ से कहा गया है कि निधि और पंकज ने वाराणसी में शादी की है. उनके पास प्रमाणपत्र भी है. पंकज विधायक के साथ रहता है, पर इसमें विधायक की भूमिका नहीं है. फिलहाल पुलिस ने कोर्ट में बयान के बाद निधि को पंकज काे सौंप दिया है.
सिद्धार्थ के खिलाफ दर्ज मामले
– 1998 में कदमकुआं थाने में कांड संख्या 574/98 के तहत 302, 120 बी तथा 34 आइपीसी दर्ज हुआ.
-2000 में फुलवारी थाने में कांड संख्या 357/02 के तहत 147,148, 149, 341, 342, 323, 324, 325, 302 के तहत मामला दर्ज हुआ.
-2002 में फुलवारी थाने में कांड संख्या 258/02 के तहत 324, 307, 120 बी एंव 34 आइपीसी दर्ज
हुआ.
-2009 में बेऊर में कांड संख्या 49/09 के तहत 353, 323, 414, 188, 216, 34 आइपीसी दर्ज हुआ.
-2012 में विक्रम थाने में कांड संख्या 176/12 के तहत 147, 283, 353,186 दर्ज हुआ.
-2016 में मसौढ़ी थाने में कांड संख्या 046/2016 अभिषेक हत्या कांड में उम्रकैद.15 मई,
2009 को सि द्धार्थ जेल से बरी हो गये.
करीबियाें की मानें तो विधायक सिद्धार्थ शादीशुदा हैं, उनका बच्चा भी है. लेकिन, विस चुनाव के नामांकन फॉर्म के मैरिज वाले कॉलम में सिद्धार्थ ने खुद को कुंवारा बताया है. इसके पीछे क्या राज हैं, यह किसी को नहीं पता. यहां उस आरोप को थोड़ा बल मिलता है, जिसमें निधि के पिता ने कहा है कि दो साल पहले निधि और विधायक करीब आ गये थे. संकेत मिलते हैं कि विधायक ने निधि से शादी करने का शायद प्लान पहले ही बनाया था. आखिर विधायक ने चुनाव के नामांकन फाॅर्म में खुद को कुंवारा क्यों बताया